तुर्की बना पाकिस्तान का रणनीतिक साथी, क्या भारत के खिलाफ रची जा रही साजिश?

22 अप्रैल को पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले के बाद पाकिस्तान की हालत बुरी तरह से डगमगा गई है. भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और फिर रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की सख्त चेतावनी के बाद इस बार मामला सिर्फ बयानबाज़ी तक सीमित नहीं है. पाकिस्तान को आशंका है कि भारत किसी भी वक्त निर्णायक कार्रवाई कर सकता है, और इसलिए वह अपने पोर्ट शहर कराची और लाहौर को सबसे अधिक बचाने की फिराक में है.

ऐसे संवेदनशील वक्त पर तुर्की का एक युद्धपोत कराची बंदरगाह पर लंगर डालता है, जिसे ‘गुडविल विज़िट’ कहा जा रहा है. लेकिन यह सिर्फ कूटनीतिक लफ्ज़ों की आड़ है. हकीकत यह है कि यह वही तुर्की है जिसे भारत ने भूकंप के दौरान भारी मानवीय सहायता दी थी और अब वही पाकिस्तान की पीठ ठोकने के लिए युद्धक सामग्री भेज रहा है. तुर्की की इस चौंकाने वाली हरकत को भारत सिर्फ “संयोग” नहीं मान सकता. 

भारत की नजरें कराची पर

तुर्की का जहाज़ TCG BÜYÜKADA, जो एंटी-सबमरीन तकनीक से लैस है, अब कराची में पाकिस्तान के नौसैनिकों के साथ अभ्यास करेगा. सवाल उठता है कि क्या यह अभ्यास सिर्फ प्रशिक्षण के नाम पर है, या फिर भारत के खिलाफ किसी बड़े सैन्य गठजोड़ की तैयारी? दोनों देशों के बीच लंबे समय से सामरिक सहयोग रहा है, और कश्मीर मुद्दे पर तुर्की हमेशा पाकिस्तान का पक्ष लेता रहा है.

भारत-तुर्की संबंधों पर पड़ सकता है असर

जिस तरह तुर्की अब खुलकर पाकिस्तान की मदद कर रहा है, भारत के लिए यह एक चेतावनी है. विदेश मंत्रालय में इस समय तुर्की के इस व्यवहार पर गंभीर चर्चाएं चल रही हैं. कई रणनीतिक विशेषज्ञ यह मान रहे हैं कि अगर तुर्की ने यह रुख जारी रखा तो भारत को भी अपनी नीतियों में बदलाव करना पड़ेगा. चाहे वह सैन्य खरीद में कटौती हो या अंतरराष्ट्रीय मंचों पर तुर्की के खिलाफ कड़ा रुख अपनाना. 

तुर्की बना पाकिस्तान का ‘रणनीतिक हथियार डिपो’

रिपोर्टों के मुताबिक, तुर्की पाकिस्तान को हथियारों का दूसरा सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता बन चुका है. ड्रोन से लेकर युद्धपोत और एंटी-टैंक मिसाइल तक. इतना ही नहीं, तुर्की पाकिस्तान के एफ-16 फ्लीट को भी तकनीकी सपोर्ट दे रहा है. ऐसे में यह स्पष्ट है कि तुर्की न सिर्फ पाकिस्तान के साथ खड़ा है, बल्कि भारत विरोधी सैन्य नेटवर्क को भी मज़बूत कर रहा है. भारत के लिए अब यह सिर्फ एक आतंकी हमले का जवाब देने की बात नहीं, बल्कि एक नए कूटनीतिक मोर्चे को संभालने का वक्त है.

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