यूं तो BSP ने यूपी-उत्तराखंड में खूब लड़ा चुनाव…मगर…मायावती का वजूद है उत्तर प्रदेश

लखनऊ। यूपी विधानसभा चुनाव को लेकर सु्प्रीमों मायावती ने काफी मेहनत की। यूं तो बसपा ने यूपी के साथ-साथ उत्तराखंड, पंजाब में भी चुनाव लड़ा है. मगर, पार्टी सुप्रीमो मायावती के राजनीतिक वजूद को कायम रखने के लिए उत्तर प्रदेश अहम है. यहां पर उन्होंने पांचवीं बार बसपा की सरकार बनाने का दावा किया है. मगर, एक्जिट पोल में उनका यह अरमान बिखर गया. हालांकि, बसपा हमेशा ही एग्जिट पोल को नकारती रही है. ऐसे में आज होने वाली मतगणना में मायावती के मुख्यमंत्री बनने के सपने को भी साफ हो जाएगा।

बसपा अकेले दम पर 403 सीटों पर लड़ी चुनाव

यूपी में विधानसभा की 403 सीटें हैं. यहां भाजपा-सपा अन्य दलों के साथ गठबंधन करके मैदान में हैं. वहीं, बसपा अकेले दम पर 403 सीटों पर चुनाव लड़ी. इसमें सामाजिक-जातीय समीकरण साधकर बसपा ने टिकट बांटे. इस दौरान दूसरे दलों से आए प्रभावशाली नेताओं को भी टिकट दिए. ऐसे में 25 के करीब टिकट लिस्ट जारी होने के बाद बदलने पड़े।

वहीं, कुल 69 ब्राह्मण, 88 मुस्लिम, 92 एससी-एसटी, 105 से अधिक ओबीसी व अन्य को मैदान में उतारा है. सोशल इंजीनियरिंग का यह फार्मूला एग्जिट पोल में धुंआ होता नजर आया. मगर, बसपा ने एग्जिटपोल को दरकिनार करते हुए सरकार बनने का दावा किया. वहीं, मायावती ने पांचवीं बार मुख्यमंत्री बनने का कई बार एलान कर चुकी हैं. ऐसे में आज शुरू हो रही मतगणना में मायावती के सपने पर सस्पेंस भी हटा देगा।

मायावती ने की मंडलवार 18 जनसभाएं

विधानसभा चुनाव में बसपा की तैयारियों पर भी नजर डालते हैं. चुनाव से पहले बसपा प्रमुख मायावती ने विधानसभावार समीक्षा की. इसके बाद दो फरवरी से खुद मैदान में निकलने का फैसला किया. पहली रैली आगरा में की. अंतिम रैली तीन मार्च को प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में की. इस दौरान मायावती ने मंडलवार 18 जनसभाएं कीं. वहीं, बसपा के राष्ट्रीय महासचिव सतीश चंद्र मिश्रा ने विधानसभावार करीब 125 जनसभाएं, रोड शो, रैली कर सोशल इंजीनियरिंग पर फोकस किया।

BJP-SP को दलित विरोधी करार दिया- बसपा .

मायावती ने भाजपा-सपा को दलित विरोधी करार दिया. इसके जरिये अपने बिखरे वोटों को एकजुट करने की कोशिश की. भाजपा को जहां आरक्षण मसले पर घेरा. वहीं, सपा द्वारा संसद में प्रमोशन में आरक्षण का बिल फाड़ने की घटना की याद दिलाई. मायावती ने हर चुनावी जनसभा में कानून व्यवस्था का मसला उठाया. इसमें लखीमपुर हिंसा, पुलिस कस्टडी में मौतें, एनकांउटर, मुस्लिम व महिलाओं के साथ हुई घटनाओं के जरिये भाजपा को घेरा।

वहीं, दंगा, लूट के जरिये सपा शासन काल की याद दिलाई.मायावती के एजेण्डे में बेरोजगारी, कर्मियों के मसले भी शामिल रहे. पुरानी पेंशन, पेपर लीक प्रकरण, विभागों में लाखों डंप भर्ती को लेकर सरकार को घरेंगी. इसके अलावा किसानों की आय दो गुना को लेकर भी सवाल उठाया. वहीं, सपा सरकार में नौकरी में भ्रष्टाचार को लेकर हमला बोला।

मायावती ने बसपा के शासनकाल की नीतियों को भी जनता के समक्ष रखा. इसमें प्रदेश में कायम रही कानून व्यवस्था का दावा किया. साथ ही दलित, महिला ,मजदूर, गरीब ,युवा,किसान, कर्मचारियों के हित को लेकर भी अपना पक्ष रखा. साथ ही घोषणा के बजाय काम करने का वादा किया. मायावती ने चुनावी जनसभा में भाईचारा नीति को धार दिया।

इसमें दलितों के साथ-साथ सवर्ण और मुस्लिम वोटरों को साधने की कोशिश की. खासकर सवर्णों में ब्राह्मणों को जोड़ने पर उनका खास फोकस रहा. इस नीति के जरिए 2007 वाली जीत हासिल करने का एलान किया।

खबरें और भी हैं...

अपना शहर चुनें