औरैया : होली के रीति-रिवाज हुए दरकिनार, सिमट रही अब फगुआ रंगों की खूबसूरती

औरैया । पहले होली के त्यौहार पर लगभग 15 दिन तक पुराने गिले शिकवे मिटाने के लिए चैपालों में चलती थी पंचायतें। फाग के माध्यम से मिटाई जाती थी वैमनस्यता। होली के पूर्व गमी वाले लोगों के दरवाजों पर जाकर फाग गाई जाती थी। आधुनिकता की अंधी दौड़ में अब होली के रीति रिवाज हुए दरकिनार अब न राग रहा और न फाग। शराब के नशे में होली पर होता शराबियों का हुडदंग झगड़े। होली का त्योहार अब सिर्फ रस्म अदायगी तक सिमटा आता नजर। आधुनिकता की अंधी दौड़ में औरैया जिले में भी लगातार नैतिक मूल्यों का ह्रास होता जा रहा है भारतीय सांस्कृतिक परंपराओं त्योहारों को भी आघात लग रहा है।

फाग के माध्यम से पहले मिटाए जाते थे आपसी गिले-शिकवे

पहले होली के त्यौहार के लगभग 15 दिन पूर्व से ही पुराने गिले शिकवे मिटाने के लिए चैपालों में पंचायतें शुरू हो जाती थी और जिन घरों में पिछली होली के बाद में 1 साल के अंदर गमी हो जाती थी होली के पूर्व किसी शुभ दिन गमी वाले घरों के दरवाजों पर ढोलक मंजीरा झींका लेकर जाकर फगुआरे फाग के भजन गाकर फाग की शुरुआत करते थे। इसी को अनराहे उठाया जाना कहते थे। इन अनराहे उठाए जाने के समय गांव भर के लोग गमी वाले व्यक्ति के घर पर एकत्र भी होते थे और नाश्ता पानी बीड़ी तंबाकू का सेवन कर गम मिटाते थे। पूर्णिमा के दिन होलिका दहन के बाद होलिका स्थल पर सभी परिवारों के लोग एक दूसरे को गले मिलकर भी पुराने गिले-शिकवे मिटाते थे।

गमी वाले घरों में पहुंचकर पहले लोग करते थे फाग की शुरुआत

होलिका दहन के दूसरे दिन से हुरियारे दरवाजे दरवाजे पर फाग गायन करते थे जिसमें जमकर रंग गुलाल उड़ता था वही हर दरवाजे पर संबंधित परिवार द्वारा फाग में आने वाले लोगों को गुझिया लड्डू भी खिलाए जाते थे वहीं जगह जगह भंग की तरंग में मस्त होकर लोग मस्ती में जमकर झूमते भी नजर आते थे और कोई भी एक दूसरे की बात का होली पर बुरा नहीं मानता था और होली पर यह रंग गुलाल की बौछारें होलिका अष्टमी तक चलती थी। फागुआरों के बीच फाग प्रतियोगिताएं भी होती थी लेकिन अब रीति रिवाज हुए दरकिनार अब न राग रहा न फाग।

अब तो होली के त्यौहार पर शराब के नशे में धुत होकर फाग की जगह गाली गलौज मारपीट कर अधिकांश युवा आपस में बैर बढ़ाते ही नजर आते हैं। सबसे ज्यादा लड़ाई झगड़े अब होली के त्यौहार पर ही नजर आते हैं। होली का त्यौहार अब सिर्फ रस्म अदायगी तक ही सीमित नजर आ रहा है। होली के त्यौहार की पुरानी परंपराओं को पहुंच रहे आघात से जिले के बुद्धिजीवी बेहद चिंतित है।

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