उत्तराखंड के लोकपर्व फूलदेई पर महकीं घरों की चौखटें

स्कूलों में भी दिखाई दिया उत्साह, आसपड़ोस के घरों में फूल बिछा किया फूल संक्रांति का शुभारंभ

पौड़ी। पहाड़ों में लंबी सर्दियों के समाप्त होने और गर्मी के आगमन का अहसास दिलाने वाले चैत्र मास का देवभूमि में विशेष महत्व है। देवभूमि में चैत्र माह के इस पूरे महीने घरों की देहलियों पर रंगबिरंगे फूल बच्चे डालते रहेंगे। सोमवार को पौड़ी में बच्चों ने आस पड़ोस के घरों की देहरियों में फूल डालकर फूलदेई या फूल संक्रांति लोक पर्व का शुभारंभ किया।

देवभूमि उत्तराखंड में 14 मार्च से चैत्र मास फूलदेही या फूल संक्रांति का लोक पर्व मनाया गया। फूलदेही लोकपर्व  उत्तराखंड की प्राचीन संस्कृति से आज भी लोगों को जोड़े हुए है। पूरे एक महीने तक घरों की चौखटें रंगबिरंगी फूलों से महकती रहेंगी। विविधता के एकता को संजोए इस पर्व को उत्तराखंड के गढ़वाल मंडल में फूलसंग्राद तो कुमाऊं में फूलदेही के नाम से जाना जाता है। इस माह में भर भकार.., छम्मा देई, दैणी द्वार समेत कई प्रकार के  लोक गीत भी गाए जाते हैं।

उत्तराखंड में इस महीने राज्य पुष्प बुरांस, फ्यूंली, लाई, किनगोड़, हिंसर, गवीर्याल, कुंज आदि पुष्प जंगलों व खेत खलिहानों में खूब पाया जाता है, जिन्हें बच्चे तोड़कर लाते हैं और घर की देहरियों पर डालते हैं।

क्या है मान्यता

उत्तराखंड में इस लोक पर्व को भगवान शिव और माता पार्वती को समर्पित किया जाता है। माना जाता है कि भगवान शिव अपनी  समाधि में कई युगों से लीन थे। कई मौसम गुजरने के बाद भी माता पार्वती और शिवगणों को शिव दर्शन नहीं हो पाए। तब माता पार्वती ने शिवजी को समाधि से जगाने के लिए एक युक्ति निकाली। माता ने कैलाश के सबसे पहले खिलने वाले फ्योंली के फूलों से शिवगणों को सुसज्जित कर उन्हें अबोध बच्चों का रूप प्रदान किया। फिर माता ने सभी अबोध बच्चों को देवताओं की पुष्प वाटिका से सुंदर खुशबूदार फूल तोड़ लाने को कहा। इन पुष्पों को सबसे पहले भगवान शिव के तंद्रालीन मुद्रा को अर्पित किया गया, जिसे फूलदेई कहा गया। जिनसे पूरा कैलाश इन फूलों की मधुर सुगंध से महकने लगा, और शिवजी भी अपनी समाधि तोड़ प्रसन्न होकर इस पर्व में शामिल हुए। माना जाता है कि भगवान शिव को माता पार्वती द्वारा ये पुष्प आज भी अबोध बच्चों के रूप में समर्पित किये जाते हैं। जिसे उत्तराखंड में आज भी पूरे रीतिरिवाज के साथ मनाया जाता है।

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