Hartalika Teej :  मनोवांछित वर की प्राप्ति के लिए कुंवारी कन्याएं रखे ये व्रत …

वैसे तो हमारे देश में कई ऐसे व्रत है जिसमे पत्नी अपने सुहाग यानि पति की लंबी उम्र के लिए उपवास रखती है। उनमे से एक व्रत तो आपने सुना ही होगा वो है करवाचौथ का व्रत। लेकिन आपको बता दें कि करवाचौथ के व्रत के अलावा भी एक व्रत होता है जो पत्नियां अपने पति कि दीघार्यु के लिए रखती हैं। जी हां, इस व्रत को हरतालिका तीज कहा जाता है।

हरतालिका तीज भाद्रपद मास में शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को रखा जाता है। इस व्रत को तीजा भी कहते हैं। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि यह व्रत करवाचौथ से भी कठिन व्रत माना जाता है। जी हां, क्योंकि करवाचौथ में चंद्रमा को देखने के बाद व्रत खोला जाता है, वहीं इस व्रत में पूरे दिन निर्जल व्रत रखा जाता है। अगले दिन पूजन के बाद ही व्रत खोला जाता है।

इस दिन सौभाग्यवती स्त्रियां गौरी-शंकर की पूजा करती हैं। वही, इस दिन हरतालिका तीज से जुड़े कुछ विशेष नियमों का भी पालन करना होता है। जी हां, आज हम आपक्को बताने जा रहे है हरतालिका तीज से जुड़े कुछ निमयों के बारे में। तो आइए जानते हैं व्रतकथा और पूजा के नियम.

हरतालिका व्रत : सबसे पहले माता पार्वती ने रखा था ये व्रत

जानकारी के लिए बता दें कि पुराणों में बताया गया है कि हरतालिका तीज का व्रत सबसे पहले माता पार्वती ने रखा था। इसके फलस्‍वरूप भगवान शंकर पति के रूप में उन्‍हें मिले।

भगवान शिव का अपमान न देख सकी स‍ती

वही, बताया गया है कि पिता के यज्ञ में अपने पति का अपमान देवी सती सह न सकी। उन्‍होंने खुद को यज्ञ की अग्नि में भस्‍म कर दिया। अगले जन्‍म में उन्‍होंने राजा हिमाचल के यहां जन्‍म लिया और पूर्व जन्‍म की स्‍मृति शेष रहने के कारण इस जन्‍म में भी उन्‍होंने भगवान शंकर को ही पति के रूप में प्राप्‍त करने के लिए तपस्‍या की।

माता पार्वती का विवाह विष्‍णु से चाहते थे उनके पिता

आपको बता दें कि माता पार्वती ने तो मन ही मन भगवान शिव को अपना पति मान लिया था और वह सदैव भगवान शिव की तपस्‍या में लीन रहती थी। बेटी की यह हालत देखकर राजा हिमाचल को चिंता होने लगी। उन्‍होंने इस संबंध में नारदजी से बात की तो उनके कहने पर उन्‍होंने अपनी पुत्री उमा का विवाह भगवान विष्‍णु से कराने का फैसला किया।

तो इस वजह से व्रत का नाम पड़ा हरतालिका

वही, माता पार्वती को जब यह पता लगा कि उनके पिता उनका विवाह भगवान विष्‍णु से कराना चाहते हैं तो उनके मन को बहुत ठेस पहुंची। उन्‍होंने अपनी सखियों से कहा कि वह शिवजी के अलावा किसी और से कतई विवाह नहीं करेंगी। मां पार्वती के मन की बात जानकर उनकी सखियां उन्‍हें लेकर घने जंगल में चली गई। इस तरह सखियों द्वारा उनका हरण कर लेने की वजह से इस व्रत का नाम हरतालिका व्रत पड़ा। माता पार्वती तब तक भगवान शिव की तपस्‍या करती रही जब तक उन्‍हें शिव जी पति के रूप में प्राप्‍त नहीं हुए।

कुंवारी कन्‍याएं भी रख सकती हैं हरतालिका व्रत

आपको बता दें कि माता पार्वती की इस तपस्‍या से ही महिलाओं को हरतालिका तीज का व्रत करने की प्रेरणा मिली। ऐसे में कुंवारी कन्‍याएं भी सुयोग्‍य वर की प्राप्ति के लिए यह व्रत रख सकती हैं।

हरतालिका व्रत के नियम :

 आपकी जानकारी के लिए बता दें कि हरतालिका तीज का व्रत निर्जला किया जाता है, यानी पूरा दिन, पूरी रात और अगले दिन सूर्योदय के पश्‍चात अन्‍न और जल ग्रहण किया जाता है।

 हरतालिका तीज का यह व्रत कुंवारी कन्‍याएं और सुहागिन महिलाएं दोनों रखती हैं।

 ध्यान रहे कि इस व्रत को एक बार प्रारंभ करने के पश्‍चात छोड़ा नहीं जाता।

 वही, अगर कोई महिला खराब स्‍वास्‍थ्‍य के चलते यह व्रत नहीं रख पा रही है तो एक बार उद्यापन करने के पश्‍चात फलाहार के साथ हरतालिका व्रत रह सकती है।

 बता दें कि हरतालिका व्रत में रात में सोया नहीं जाता है बल्कि पूरी रात प्रभु का भजन कीर्तन करना शुभ माना जाता है।

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