50 साल तक लिखी छोटी-छोटी कहानियां, हार्ट लैंप से बनी पहली कन्नड़ लेखिका, कौन हैं बानू मुश्ताक?

Banu Mushtaq : 77 साल की बुकर पुरस्कार विजेता बानू मुश्ताक ने साहित्यिक इतिहास रच दिया है। वह पहली कन्नड़ लेखिका बन गई हैं, जिन्होंने इस प्रतिष्ठित पुरस्कार को अपने नाम किया है। यह सम्मान उन्हें उनकी किताब हार्ट लैंप के लिए मिला है, जिसे उन्होंने अनुवादक दीपा भाष्थी के साथ साझा किया है। इस पुरस्कार का उद्देश्य अंग्रेजी में अनूदित श्रेष्ठ कथा को सम्मानित करना है।

बानू मुश्ताक की कहानी केवल व्यक्तिगत सफलता की कहानी नहीं है, बल्कि यह महिलाओं के जीवन, जाति, शक्ति और उत्पीड़न जैसे महत्वपूर्ण सामाजिक मुद्दों को उजागर करने का भी माध्यम है। 77 वर्ष की उम्र में उन्होंने अपने साहित्य के जरिए वैश्विक मंच पर भारतीय साहित्य का मान बढ़ाया है। उनकी किताब हार्ट लैंप में 12 कहानियां हैं, जो 1990 से 2023 के बीच प्रकाशित हुई थीं। यह संग्रह महिलाओं की जिंदगी की जटिलताओं, संघर्षों और उम्मीदों का ज्वलंत चित्रण करता है।

इस पल को साझा करते हुए बानू मुश्ताक ने कहा, “ऐसा लग रहा है जैसे हजारों जुगनू एक ही आसमान को रोशन कर रहे हों – संक्षिप्त, शानदार और पूरी तरह से सामूहिक।” उन्होंने यह भी बताया कि यह पुरस्कार उनके लिए एक बड़ी उपलब्धि है, जो भारत की सांस्कृतिक विविधता और साहित्यिक प्रतिभा को विश्व के सामने लाता है।

यह केवल दूसरी बार है जब किसी भारतीय कृति ने इस प्रतिष्ठित पुरस्कार को जीता है। इससे पहले, 2022 में गीतांजलि श्री और डेज़ी रॉकवेल ने टॉम्ब ऑफ सैंड के लिए यह सम्मान प्राप्त किया था। 25 फरवरी, 2025 को, जब बानू मुश्ताक ने यह पुरस्कार प्राप्त किया, तब वह नॉमिनेट होने वाली पहली कन्नड़ लेखिका भी थीं। उनके इस सफलता ने न केवल भाषा की बाधाओं को तोड़ा है, बल्कि भारतीय साहित्य की अमूर्त शक्ति का भी प्रमाण दिया है।

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