
- सरकार को करेगा आगाह और जनता को करेगा जागरूक
-संघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रो जुयाल ने बनाई रणनीति
मेरठ, 30 मई। चीन द्वारा कब्जाई गई भूमि को मुक्त कराने के लिए 1962 में भारतीय संसद ने जो प्रस्ताव पारित किया था, आज संसद उसे भूल चुकी है। उसी प्रस्ताव को याद कराने और चीन से अपनी भूमि को मुक्त कराने के लिए भारत-तिब्बत समन्वय संघ देश भर में व्यापक आंदोलन छेड़ेगा। 1962 में लिए गए संकल्प को याद दिलाने के लिए देश के सभी सांसदों को ज्ञापन भी सौंपा जायेगा।
यह बात आज भारत-तिब्बत समन्वय संघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रो प्रयाग दत्त जुयाल ने कही। प्रो जुयाल आज स्थानीय सरदार वल्लभभाई पटेल विश्वविद्यालय के अतिथि गृह में पत्रकारों से बातचीत कर रहे थे।
प्रो जुयाल ने कहा कि तिब्बती परिक्षेत्र की प्राकृतिक संपदा और जल संसाधन के संरक्षण व मानव कल्याण के लिए इस क्षेत्र को “विश्व प्राकृतिक संपदा संरक्षित क्षेत्र” घोषित किया जाए।
उन्होंने भारत सरकार से मांग की कि कैलाश मानसरोवर के दर्शन के लिए जाने वाले तीर्थ यात्रियों की संख्या में वृद्धि कराए जाने का प्रयास किया जाए तथा देश में कुछ राज्य सरकारें अपने-अपने राज्य से इस यात्रा में शामिल हुए तीर्थयात्रियों को उनके खर्चे की भरपाई अलग-अलग अंशदान के रूप में करती हैं। इसके लिए भारत सरकार यह प्रयास करें कि या तो वह सभी राज्य सरकारों को निर्देशित करें कि प्रत्येक राज्य सरकार एक समान रूप से तीर्थयात्रियों के व्यय की प्रतिपूर्ति करें या फिर स्वयं भारत सरकार अपने स्तर से पूरी प्रतिपूर्ति की जाये।
प्रो जुयाल ने परम पावन दलाई लामा और संगठन के प्रणेता व राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पूर्व सरसंघचालक रज्जू भैया को भारत रत्न दिए जाने की मांग की।
राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रो जुयाल ने भारत सरकार से मांग करते हुए कहा कि जो भी तिब्बती भारत देश में निर्वासित जीवन जी रहे हैं, उनको भारत की नागरिकता दी जाय। यह नागरिकता दोहरे प्रकार की हो। जब तिब्बत स्वतंत्र हो जाए तो भारत की नागरिकता वापस ले ली जाय। लेकिन तब तक तिब्बती लोगों को भारत की नागरिकता मिलने से तिब्बती समाज इस देश के लिए और भी उत्तम प्रकार से योगदान कर सकेगा।
इस अवसर पर भारत तिब्बत समन्वय संघ के राष्ट्रीय महामंत्री विजय मान, राष्ट्रीय मंत्री नरेंद्र चौहान, मेरठ प्रांत के महामंत्री डॉ कुलदीप त्यागी, शोध व विकास प्रभाग मेरठ प्रांत के संयोजक पुष्पेंद्र झा मौजूद थे।