लखनऊ : एसजी पीजीआई में कार्यशाला का आयोजन, ट्रान्सप्लांट के बाद होने वाले संक्रमण पर चर्चा 

दैनिक भास्कर ब्यूरो ,

लखनऊ। एसजीपीजीआई में मंगलवार को एक सीएमई,कार्यशाला का आयोजन किया गया।कार्यशाला में किडनी और लीवर के ट्रान्सप्लांट के बाद होने वाले संक्रमण और रोकथाम पर विस्तृत चर्चा हुई। किडनी और लिवर ट्रांसप्लांट के बाद मरीज में संक्रमण की आशंका 50 से 80 फीसदी रहती है।

संक्रमण का पता सही समय पर लग जाए तो दवाओं से संक्रमण को खत्म किया जा सकता है। इनमें वायरल फंगल संक्रमण की आशंका सबसे अधिक होती है साथ ही इसमें  बैक्टीरियल और पैरासाइट के संक्रमण की आशंका भी रहती है। विभाग द्वारा ट्रांसप्लांट एसोसिएटेड इंफेक्शन पर आयोजित सीएमई एवं वर्कशाप में विभाग की प्रमुख प्रो० रूंगमी एसके मर्क,एरा मेडिकल कालेज की प्रो०  विनीता खरे, एसजीपीजीआई के प्रो०  चिन्मय शाहू और डा० आशिमा ने आफ्टर ट्रान्सप्लांट होने वाली दिक्कतों के बारे में विस्तार से बताया प्रो० चिन्मय साहू ने बताया कि ट्रांसप्लांट के मरीजों में इम्यूनोसप्रेसिव चलता है जिससे प्रत्यारोपित अंग शरीर को एंटीबाडी न बनाए और शरीर अंग को स्वीकार करले।

इण्यूनोसप्रेसिव की वजह से इण्यून सिस्मटम कमजोर रहता है। न्यूरोट्रफिल की कमी हो सकती है जिसके कारण वारयल और फंगल इंफेक्शन की आशंका अधिक रहती है। संक्रमण के लक्षण बुखार, कमज़ोरी और थकान महसूस होती है या कम भूख की परेशानी होने पर तुरंत अपने ट्रासप्लांट विशेषज्ञ से संपर्क करना चाहिए।

प्रो० मर्क ने कहा कि डाक्टर को भी संक्रमण के बारे में सोचना चाहिए।देखा गया है कि ट्रासप्लांट कर चुके लोगों में टीबी संक्रमण की भी आशंका रहती है।सही समय पर संक्रमण के कारण का पता लगा कर सही इलाज से काफी हद तक इन्हें बचाया जा सकता है।

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