…तो क्या 15 दिन बाद भी खदान में जिंदा होंगे फंसे 15 मजदूर, प्रशासन ने नहीं छोड़ी उम्मीद

नयी दिल्ली। 15 दिन से फंसे इन मजदूरों को अब तक बाहर नहीं निकला जा चुका है. बता दें इस कोयला खदान में 70 फीट पानी भरा होने के कारण  क्या अब तक सभी मजदूर जिन्दा होंगे।  अब तो तमाम लोगों ने उनके जीवित रहने की उम्मीदें भी छोड़ दी हैं. राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (एनजीटी) ने चार साल पहले ही ऐसी अवैध खदानों पर पाबंदी लगा दी थी. बावजूद इसके काले सोना माने जाने वाले कोयले के इस कारोबार में मोटा मुनाफा होने की वजह से कोयला माफिया पर अंकुश नहीं लगाया जा सका है. इस मामले में एक व्यक्ति को गिरफ्तार किया गया है और राज्य सरकार ने मजदूरों के परिजनों को एक-एक लाख रुपए की अंतरिम सहायता भी दी है. मेघालय में छह साल पहले भी ऐसे ही एक हादसे में 15 मजदूरों की मौत हो गई थी.

Indien | illegaler Kohleabbau in Meghalaya (DW/P. Mani)

‘रैट होल’ में कैसे फंसे

बीते 13 दिसंबर को मेघालय के ईस्ट जयंतिया हिल्स जिले की एक अवैध खदान में नजदीक से बहने वाली लीटन नदी का पानी भर जाने के कारण भीतर गए 15 मजदूर फंस गए थे. मजदूरों का कोई रिकार्ड नहीं होने की वजह से उनकी सही तादाद का पता लगाना मुश्किल है. उसके बाद से ही राज्य सरकार और राष्ट्रीय आपदा मोचन बल (एनडीआरएफ) की टीमों समेत बचाव दल के सौ से ज्यादा लोग उन मजदूरों को बचाने का प्रयास कर रहे हैं. कई पंपों से लगातार पानी बाहर निकालने के बावजूद खदान का जलस्तर कम नहीं हो रहा है. इस वजह से फिलहाल बचाव अभियान रोक दिया गया है. मेघालय के मुख्यमंत्री कोनरा संगमा कहते हैं, “तमाम कोशिशों के बावजूद उन मजदूरों का अब तक कोई पता नहीं चल सका है. परिस्थिति काफी जटिल है.” खदानों से इस तरह कोयला निकालने की प्रक्रिया को ‘रैट होल माइनिंग’ यानी चूहे के बिल के जरिए की जाने वाली खुदाई कहा जाता है. इसके लिए पांच से सौ वर्गमीटर वाला एक इलाका चुना जाता है. उसके बाद वहां सुरंग खोदी जाती है. वह इतनी संकरी होती है कि एक बार में एक आदमी ही भीतर जा सकता है. उसी से भीतर जाकर मजदूर कोयला निकालते हैं.

Indien | Illegaler Kohleabbau in Bengalien (DW/P. Mani)

कैसा चल रहा है बचाव अभियान

हादसे का पता चलते ही मुख्यमंत्री ने केंद्रीय गृह राज्य मंत्री किरण रिजीजू से बात कर उनसे अधिक पेशेवर टीमों और बेहतर उपकरणों को भेजने का अनुरोध किया था. संगमा ने कोल इंडिया को एक पत्र लिख कर उच्च क्षमता वाले पंप भेजने को कहा है ताकि खदान में भरे पानी को निकाला जा सके. एनडीआरएफ के सहायक कमांडेंट एसके सिंह बताते हैं, “खदान के भीतर अब भी लगभग 70 फीट पानी भरा है. इसके 30 फीट तक उतरने पर ही गोताखोर भीतर जा सकते हैं.” इस हादसे का स्वत: संज्ञान लेते हुए मेघालय मानवाधिकार आयोग ने भी राज्य सरकार को नोटिस जारी कर विस्तृत रिपोर्ट मांगी है.

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पाबंदी भी बेअसर

राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण ने चार साल पहले ही मेघालय में असुरक्षित तरीके से होने वाले कोयला खनन पर अंतरिम रोक लगा दी थी. इसके बावजूद मोटा मुनाफा होने की वजह से यह कारोबार गैर-कानूनी तरीके से जारी है. राज्य का ताकतवर कोयला माफिया इन खदानों के खिलाफ अभियान चलाने वाले गैर-सरकारी संगठनों के कार्यकर्ताओं पर कई बार जानलेवा हमले कर चुका है. यही वजह है कि विपक्षी कांग्रेस ने राज्य की संगमा सरकार पर अवैध कोयला खनन के कारोबार को संरक्षण देने का आरोप लगाया है.

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खदानों से इस तरह कोयला निकालने की प्रक्रिया को ‘रैट होल माइनिंग’ यानी चूहे के बिल के जरिए की जाने वाली खुदाई कहा जाता है. इसके लिए पांच से सौ वर्गमीटर वाला एक इलाका चुना जाता है. उसके बाद वहां सुरंग खोदी जाती है. वह इतनी संकरी होती है कि एक बार में एक आदमी ही भीतर जा सकता है. उसी से भीतर जाकर मजदूर कोयला निकालते हैं.

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बंगाल में भी जारी है धंधा

दानों की भरमार है. इस इलाके में भी जमीन में बिखरे काले सोने को निकालने की कीमत मजदूरों को अपनी जान देकर चुकानी पड़ती है. वह अपना पेट पालने के लिए रोजाना इन अवैध खदानों से कोयला निकालने के लिए जमीन के भीतर जाते हैं और उनमें से कुछ लोग अकसर उसी में दब जाते हैं. कोई बड़ा हादसा होने की स्थिति में ही दूसरों को इन मौतों के बारे में जानकारी मिलती है.

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राज्य के रानीगंज और आसनसोल इलाके में ऐसी सैकड़ों खदानें हैं जिन पर माफिया का राज है. वह कोयला यहां से ट्रकों के जरिए बनारस व कानपुर तक भेजा जाता है. अवैध खुदाई वहीं होती है जिन खदानों से ईस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड (ईसीएल) कोयला निकालना बंद कर चुका है.

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मजदूरों के साथ ही दबती उनकी मौत की खबरें

रानीगंज के वरिष्ठ पत्रकार विमल देव गुप्ता बताते हैं कि इलाके में लगभग पांच सौ अवैध खदानें हैं और वहां कोई 20 हजार मजदूर काम करते हैं. वह बताते हैं, “इन खदानों में अक्सर मिट्टी से दब कर या पानी में डूब कर दो-एक लोग मरते रहते हैं. लेकिन यह खबर भी उनके साथ ही वहीं दब जाती है.”

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ऐसी एक खदान में काम करने वाले सुखिया मुंडा कहते हैं कि “हमें पेट की आग बुझाने के लिए मौत के मुंह में जाकर काम करना होता है. लेकिन इसके सिवा कोई विकल्प नहीं है. दुर्घटनाएं अकसर होती रहती हैं. लेकिन जान के डर से तो भूखा नहीं रहा जा सकता.” वह आगे बताते हैं, “यह खदानें हमारी रोजी-रोटी का जरिया हैं और यही हमारी मौत की वजह भी बन जाती हैं.”

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कोयला उद्योग से जुड़े लोग बताते हैं कि इलाके में अवैध खनन एक समानांतर उद्योग है. इसका सालाना टर्नओवर करोड़ों में है. यही वजह है कि इस अवैध कारोबार पर अब तक अंकुश नहीं लग सका है. रोजाना इनसे हजारों टन कोयला निकलता है. कम समय में ज्यादा कोयला निकालने की होड़ ही हादसों को न्योता देती है. इन मजदूरों को न तो किसी तरह का प्रशिक्षण हासिल होता है और न ही वे किसी वैज्ञानिक तरीके का इस्तेमाल करते हैं.

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मजदूर संगठन ‘भारतीय कोयलरी मजदूर सभा’ के सोमाल राय कहते हैं, “ईसीएल व राज्य सरकार को अवैध खदानों पर अंकुश लगाने के लिए जल्दी ही कोई साझा योजना बनानी होगी. ऐसा नहीं होने तक इलाके की इन अवैध खदानों में मजदूरों की बलि की सिलसिला जारी रहेगा.”

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