अमर भारती साहित्य संस्कृति संस्थान के “वसंतोत्सव” में याद किए गए शायर ” दरवेश “

विरोध जताने का तरीका है पेड़ का, जहां से शाख काटी थी कोंपलें वहीं से निकली: कमल

संवादाता

गाजियाबाद। अधिकांश रचनाकारों और संस्थानों की पहचान आज जहां बाड़ेबाजी और खेमेबाजी के तौर पर हो रही है, ऐसे में अमर भारती साहित्य संस्कृति संस्थान के आयोजन तमाम बंधनों को खोलने का काम कर रहे हैं। वरिष्ठ रचनाकार कमलेश भट्ट कमल ने उक्त उद्गार रविवार को आयोजित “वसंतोत्सव यादे ए दरवेश” में व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि बीते कुछ सालों से अमर भारती संस्थान उभरती प्रतिभाओं को संवारने के साथ साथ वरिष्ठ रचनाकारों को भी मंच साझा करने का अवसर प्रदान कर रहा है।

उन्होंने कहा कि महानगर में तमाम तरह की साहित्यिक गतिविधियां हो रही हैं, बावजूद इसके इस शहर को थोड़ा सा और खोलने की जरूरत है। उन्होंने इस बात पर भी अफसोस प्रकट किया कि इस शहर में रहने के बावजूद वह शायर अनिल दरवेश से कभी मिल नहीं पाए। कार्यक्रम के अध्यक्ष श्री कमल ने बेहतरीन शेर भी पढ़े। उन्होंने कहा “और सब तो छोड़िए हम तो उससे भी महरूम हैं, एक अच्छे आदमी में जितना गुस्सा चाहिए।” “विरोध अपना जताने का तरीका है पेड़ का, जहां से शाख काटी थीं कोंपलें वहीं से निकली।”

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि सुप्रसिद्ध कवि राकेश रेणु ने “स्त्री” को केंद्र में रखकर कई कविताएं पढ़ीं। “अनुनय” कविता में उन्होंने कहा “उदास किसान के गान की तरह, शिशु के मुस्कान की तरह, तुम बढ़ो आगे बढ़ो।” नेहरू नगर स्थित सिल्वर लाइन प्रेस्टीज स्कूल में दो सत्रों में चले इस कार्यक्रम के पहले सत्र में शायर अनिल दरवेश को श्रद्धांजलि अर्पित की गई। गोविंद गुलशन, डॉ. जकी तारिक, आलोक यात्री, सुधीर शर्मा, डॉ. माला कपूर, परवीन कुमार ने दरवेश से जुड़े संस्मरण सुनाए। उनके पुत्र रूद्र ने उनकी रचनाओं का पाठ किया।

उनकी पुत्री प्रियदर्शनी द्वारा निर्मित डॉक्यूमेंट्री दरवेश का प्रदर्शन भी किया गया। अति विशिष्ट अतिथि मकरंद प्रताप सिंह ने कहा कि वह पूरब की जिस भूमि का प्रतिनिधित्व करते हैं वह अनेक साहित्यकारों की जन्म स्थली रही है। लेकिन इस मंच पर उपस्थित कवियों की जमात बताती है कि यह शहर साहित्य की राजधानी का रूप ग्रहण कर रहा है। विशिष्ट अतिथि स्मिता सिंह ने अपने संबोधन में कहा कि तरक्की और विकास की हम आज क्या कीमत चुका रहे हैं, यह मौजूदा दौर की कविता हमें बता रही है।

डॉ. माला कपूर ने फरमाया “मेरी मिट्टी पर फिर रेत आई है, तरक्की आंधियां, ईंट भी लाई है, मिलेगा फर्श इतना कि बस पांव टिक सकें, झरोखा इतना कि सामने दूसरी दीवार दिख सके।” शायर जकी तारिक ने अपने शेरों “अहद ए माज़ी का कफन ओढ़े जमाने सो रहे हैं, घर की बोसीदा किताबों में फसाना जागता है।” शहर से दूर वीराना खित्ता जागता है, सो चुकीं आबादियां लेकिन खराबां जागता है।” पर जमकर वाह वाही लूटी। गोविंद गुलशन ने कहा “किसी की याद में नमनाक हो गई आंखें, चलो अच्छा हुआ पाक हो गई आंखें।”

डॉ. धनंजय सिंह ने अपने गीत “मन पर गिरा कुहासे वाला मौसम बीत गया, इंद्रधनुष रचती किरणों का फूटा गीत नया” पर सराहना बटोरी। कार्यक्रम की शुरुआत तरुण मिश्रा ने सरस्वती वंदना से किया। इस अवसर पर वी. के. शेखर, सुप्रिया सिंह, आशीष मित्तल, सोनम यादव, मीनाक्षी कहकशां, मजबूर गाजियाबादी, प्रतीक्षा सक्सेना, सुरेंद्र सिंघल, आलोक यात्री, सुरेंद्र शर्मा, डॉ. श्वेता त्यागी, डॉ. वीना मित्तल, अंजू गोस्वामी, नेहा वैध, कीर्ति रतन, बी. एल. बत्रा अमित्र, इंदु शर्मा, डॉ. तारा गुप्ता, तरुण मिश्रा की रचनाएं भी सराही गईं। कार्यक्रम का संचालन प्रवीण कुमार ने किया। इस अवसर पर सुशील शर्मा, कुलदीप, अशोक पंडिता, वीणा शर्मा, आर.के. बंसल, आर.के. भदौरिया, हिमांशु शर्मा, अनिल शर्मा, अमन प्रताप सिंह, मीनू कुमार, कमलेश संजीदा, मिथिलेश शर्मा, राजेश मेंदीरत्ता समेत बड़ी संख्या में श्रोता मौजूद थे।

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