सुल्तानपुर : शिक्षक श्रेष्ठ लक्ष्य को लेकर जीता हैं

सुल्तानपुर। अखिल भारतीय विद्या भारती के सह संगठन मंत्री यतीन्द्र ने शनिवार को यहां कहा कि जब विश्व के देश शिक्षा के क्षेत्र में कदम भी नहीं रखे थे तब भारत विश्व का शैक्षिक नेतृत्व कर रहा था। शिक्षक श्रेष्ठ लक्ष्य को लेकर जीता है। अपने देश में शिक्षा देने की परम्परा गुरूकुल और पाठशालायें थी। हम सब किस परम्परा के है, इसे हमें तय करना होगा। आत्मबोध कराने का गुरू का गुरूतर दायित्व है।

सरस्वती विद्या मन्दिर वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय विवेकानन्दनगर में चल रहे दस दिवसीय प्रान्तीय नवचयनित आचार्य प्रशिक्षण कार्यशाला को सम्बोधित करते हुए देश की सभी भाषाओं में विद्या का उल्लेख है। जीवन की शिक्षा के लिए शिक्षा या जीने के लिए शिक्षा है। हमारे आचार्यों ने श्रेष्ठ जीवन जिया है। सभी लोगों की दिनचर्या उनके काम के अनुरूप होती है।

कार्यशाला में राष्ट्रीय संगठन मंत्री ने बताये विद्यार्थियों के प्रति कर्तब्य

आचार्यों की जीवन शैली यहॉं जीवन दर्शन के अनुरूप है। उन्होने कहा कि सृष्टि का संरक्षण और उसके साथ तादात्म्य बनाना है। आचार्य को सतोगुणी जीवन जीने का अभ्यास होना चाहिए। इसमें क्रोध के लिए कोई स्थान नहीं हैं। काम, कोध, लोभ, मोह मद मत्सर से अपने को बचाना होगा।

मन को संतुलित एवं संयमित करने का अभ्यास सभी आचार्य को करना चाहिए। आचार्य सकारात्मक सोच वाला होना चाहिए। हमारी बुद्धि नये सद्विचारों की खोज करने वाली तथा मन और बुद्धि एक दिशा में कार्य करने वाली हो।

आचार्य का जीवन संयम युक्त होना चाहिए। जब ज्ञान देना होता है तब ब्रह्मर्शि बनना होता है। आचार्य के जीवन में ज्ञानार्जन की भूख बनी रहनी चाहिए। व्यक्ति से परिवार, परिवार से ग्राम, ग्राम से समाज, समाज से राश्ट्र, राश्ट्र से सृश्टि, सृश्टि से परमेश्टी तक की चिंता करना आचार्य का दायित्व है।

कार्यक्रम में डॉ. राम मनोहर, संगठन मंत्री विद्या भारती काशी प्रान्त, दिनेश कुमार सिंह, सचिव भारतीय शिक्षा समिति पूर्वी उ0प्र0 एवं प्रशिक्षण प्रमुख, संभाग निरीक्षक गोपाल तिवारी, प्रधानाचार्य राम सिंह, अवधेश सिंह, इन्द्रजीत त्रिपाठी, सुमन्त पाण्डेय आदि रहे।

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