असम व मिजोरम के बीच सीमा विवाद संग्राम देशहित में उचित नहीं!

दीपक कुमार त्यागी
स्वतंत्र पत्रकार व राजनीतिक विश्लेषक

देश की एकता अखंडता को बरकरार रखने के लिए व सामरिक दृष्टिकोण से नॉर्थ ईस्ट के सभी राज्य बहुत संवेदनशील और महत्वपूर्ण है। यहां के सभी प्रकार के मसलों का हमेशा प्राथमिकता के आधार पर निस्तारण समय रहते होना जरूरी है, इस क्षेत्र में कोई भी विवाद लंबे समय तक नहीं चलना चाहिए। लेकिन फिर भी पूर्वर्ती सरकारों के ढुलमुल व टालू रवैये के चलते भारत के पूर्वोत्तर के दो राज्य असम और मिजोरम आज एक दूसरे के खिलाफ सीमा पर आमने-सामने खड़े होकर के एकदूसरे पर संगीनों का इस्तेमाल कर रहे हैं। हालात को देखकर लगता है कि राज्यों के बीच इस तरह के विवाद का आजाद भारत के इतिहास में शायद ही कोई दूसरा उदाहरण हो, देश में कभी ऐसा गंभीर संकट उत्पन्न हुआ हो। हालांकि यह भी कटुसत्य है कि असम व मिजोरम के बीच अन्तरराज्यीय सीमाओं के बंटवारे को लेकर बहुत लंबे समय से विवाद की चिंगारी सुलग रही है और यह स्थिति देशहित में बिल्कुल भी उचित नहीं है। लेकिन फिर भी समस्या के स्थाई निदान ना होने के चलते 26 जुलाई 2021 सोमवार को फिर से इन दोनों राज्यों के सीमावर्ती क्षेत्रों में जबरदस्त हिंसक विवाद हो गया। सूत्रों के अनुसार सीमा बंटवारे के विवाद के कारण दोनों राज्यों की सीमा पर भड़की हिंसा में मिजोरम की ओर से उपद्रवियों की भारी भीड़ के द्वारा असम पुलिस पर जबरदस्त गोलीबारी व पथराव किया गया, जिसमें असम के कछार जिले के सीमावर्ती इलाके में छह पुलिसकर्मियों की मौत हो गई और 50 से अधिक घायल हो गए, हालांकि मिजोरम का आरोप है कि हिंसा की शुरुआत असम ने की, उसने तो बचाव के लिए आवश्यक कदम उठाए थे, खैर जो भी यह तो भविष्य में जांच का विषय है। लेकिन आप विवाद का अंदाजा इस बात से लगा सकते हैं कि इस गोलीबारी और पथराव में कछार के एसपी निंबालकर वैभव चंद्रकांत भी गंभीर रूप से घायल हो गये हैं, सभी घायलों का सिलचर मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल में इलाज चल रहा है। देश की अखंडता व एकजुटता को झकझोर देने वाले इस घटनाक्रम के बाद हिंसक घटना को लेकर असम और मिजोरम के बीच जमकर राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप का दौर शुरू हो गया था, खुद दोनों राज्यों के सर्वेसर्वा मुख्यमंत्री ही संवैधानिक व्यवस्था व दायरे को भूलकर सार्वजनिक रूप से सोशल मीडिया पर ही आपस में भिड़ गए हैं, जो देशहित में सरासर अनुचित है। हालांकि स्थिति की गंभीरता को समझते हुए गृहमंत्री अमित शाह ने दोनों राज्यों के मुख्यमंत्री से तत्काल बात की और उनसे इस हिंसाग्रस्त क्षेत्र में शांति व्यवस्था को तत्काल सुनिश्चित करते हुए और सीमा विवाद का मैत्रीपूर्ण ढंग से समाधान निकालने के लिए कहा है। इसके पश्चात दोनों राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने गृहमंत्री अमित शाह को विवाद का आपसी सहमति से हल निकालने का आश्वासन दिया है।

इस विवाद की बात करें तो असम के बराक घाटी के जिले कछार, करीमगंज और हैलाकांडी, मिजोरम के तीन जिले आइजोल, कोलासिब और ममित के साथ लगभग 165 किलोमीटर लंबी सीमा को साझा करते हैं। सीमावर्ती क्षेत्र में बढ़ते जनसंख्या घनत्व व बेहद दुर्गम पहाड़ी क्षेत्र होने के कारण इस क्षेत्र में भूमि का छोटा टुकड़ा भी आजकल बेहद अहमियत रखता है, जिसके चलते ही अक्सर इस क्षेत्र में सीमा विवाद हो जाता है। यहां वर्ष 2020 और इस वर्ष 2021 में भी दोनों राज्यों के सीमावर्ती इलाकों के लोगों के बीच कई बार छिटपुट विवाद की घटनाएं घटती हुई हैं। हाल के दिनों में दोनों राज्यों के बीच सीमा विवाद उस वक्त उत्पन्न हुआ जब असम पुलिस के जवानों ने अपनी जमीन पर कथित तौर पर अतिक्रमण हटाने के लिए अभियान शुरू किया था। तब से इस विवादित क्षेत्र में लगातार आयेदिन छिटपुट घटनाएं घटती हो रही थी, असम व मिजोरम की सरकार इन घटनाओं के लिए एक दूसरे को जिम्मेदार ठहरा रही थी। दोनों राज्यों के लोगों के बीच इस तनाव को कम करने के लिए शासन-प्रशासन के स्तर पर वार्ता का दौर भी निरंतर चल रहा था। लेकिन फिर भी बेहद अफसोस की बात यह है कि लंबे समय से लंबित विवाद ने कर्तव्यनिष्ठ असम पुलिस के 6 जाबांज जवानों की अनमोल जान को लील ही लिया। हालांकि हम इस विवाद की जड़ों की बात करें तो यह विवाद देश की आजादी से पहले से ही चला आ रहा है, राज्यों के सीमा बंटवारे के इस विवाद की जड़ें औपनिवेशिक काल से रही है, जिनका अभी तक निस्तारण ना होना देशवासियों को आश्चर्यचकित करता है।

वैसे तो असम का अपने सीमावर्ती राज्यों मेघालय, अरुणाचल प्रदेश व नागालैंड से भी सीमा बंटवारे के लिए विवाद चल रहा है, लेकिन उन राज्यों से सीमा विवाद इतना जटिल नहीं जितना की मिजोरम से है, मिजोरम की सीमाओं पर विवाद उस क्षेत्र को लेकर है जिस पर दोनों राज्यों के लोग अपना अधिकार लंबे समय से जताते आ रहे हैं। वैसे तो असम और मिजोरम की सीमा लगभग 165 किलोमीटर लंबी है, ब्रिटिश शासन काल में मिजोरम का नाम लुशाई हिल्स हुआ करता था और यह असम का एक जिला मात्र था। इस सारे विवाद की जड़ में मुख्य रूप से ब्रिटिश शासन काल का एक बहुत पुराना नोटिफिकेशन है, वर्ष 1873 के बंगाल “ईस्टर्न फ्रंटियर रेग्युलेशन एक्ट” के तहत वर्ष 1875 में एक नोटिफिकेशन अंग्रेजी हुकूमत के द्वारा जारी किया गया था, इस नोटिफिकेशन में लुशाई हिल्स को असम के कछार के मैदान से अलग कर दिया गया था, लेकिन फिर वर्ष 1933 में एक और नोटिफिकेशन जारी किया गया था, लेकिन यह दोनों नोटिफिकेशन राज्यों की सीमाओं को अलग-अलग दिखाते हैं, बस यहीं से विवाद की शुरुआत हो जाती है। इस स्थिति पर मिजोरम के लोगों कहते हैं कि राज्य की सीमाओं को वर्ष 1875 के नोटिफिकेशन के आधार पर तय किया जाना चाहिए, इसके लिए मिजोरम के मिजो नेता यह तर्क देते हैं कि वर्ष 1933 का नोटिफिकेशन मान्य नहीं है, क्योंकि उस नोटिफिकेशन के लिए मिजो समुदाय से तत्कालीन ब्रिटिश सरकार ने किसी भी प्रकार का कोई विचार-विमर्श नहीं किया था। वहीं असम की सरकार सीमा बंटवारे के लिए वर्ष 1933 के नोटिफिकेशन को मानती है, जिसकी वजह से इस क्षेत्र में विवाद की स्थिति निरंतर बनी रहती है।

वैसे भी हमारे देश के कुछ राजनेताओं के क्षणिक स्वार्थ सिद्धि के निरंतर चलने वाले राजनीतिक अभियानों ने देश में लंबे समय से लंबित इस तरह के जटिल सीमा विवाद के बेहद ज्वंलत मसलों का भी विशुद्ध रूप से राजनीतिकरण कर दिया है, इनको भी चुनावी वैतरणी पार करने के लिए वोट हासिल करने का बेहद कारगर हथियार बना दिया है। जिसकी वजह से राज्यों के बीच सीमा विवादों के बहुत ही ज्वंलत मसलों का भी अब तो पूर्ण रूप से राजनीतिकरण हो चुका है, जिसके चलते इन सीमा विवाद के मसलों का सर्वमान्य हल खोजना बेहद मुश्किल हो रहा है, जब भी इन विवाद को सुलझाने की ठोस पहल धरातल पर होनी शुरू होती है, तब ही कुछ राजनेताओं की कृपा से कुछ लोगों के द्वारा इन ज्वंलत मसलों पर व्यवधान करने के लिए ओछी राजनीति करना शुरू कर दी जाती है, राष्ट्रहित के मसले को पीछे छोड़कर क्षेत्रीय अस्मिता के मसले की बात को उठाकर इस विवाद को आम जनमानस के बीच भड़काने का कार्य किया जाने लगता है। प्रदेश स्तर पर भी बात-बात में राष्ट्रवाद की दुहाई देने वाले कुछ राजनेता अपने निहित स्वार्थ के लिए राष्ट्रीयता के भाव को पीछे छोड़कर क्षेत्रीय अस्मिता की बात करके सीमा विवाद को तूल देने लगते हैं। लेकिन अब केंद्र सरकार के पास एक बहुत बड़ा मौका है कि वह पूर्वोत्तर के इन सभी राज्यों के सामरिक महत्व को समझकर, इस क्षेत्र के हर तरह के विवादों का संबंधित राज्य सरकारों के साथ सामंजस्य करके जल्द से जल्द निस्तारण करके, ज्वंलत समस्याओं का स्थाई समाधान करके, देश के नॉर्थ ईस्ट भाग की सीमाओं को मजबूत बनाने का कार्य करें।।

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