देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए बहुत बडी चुनोती है चुनावों में धनबल व बाहुबल का प्रयोग

लेखक –: दीपक कुमार त्यागी एडवोकेट, अध्यक्ष, श्री सिद्धिविनायक फॉउंडेशन (SSVF)

मित्रों जैसा कि सर्वज्ञात है कि हमारा देश भारत एक लोकतांत्रिक व्यवस्था को मानने वाला सबसे बड़े देशों में से एक अतिमहत्वपूर्ण देश है । देश में लोकतंत्र की परिकल्पना को पूर्ण साकार करने के लिए किसी भी लोकतांत्रिक व्यवस्था में निष्पक्ष चुनावों का सबसे अधिक महत्व होता है । वैसे भी भारतीय लोकतंत्र में चुनाव ही हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था व शासन का मुख्य आधार होते है। किसी भी देश में चुनावों की प्रक्रिया जब तक बहुत अच्छी नहीं मानी जाती है जब तक उस देश में “स्वतन्त्र एवं निष्पक्ष” चुनावों की बहुत ही कारगर व मजबूत व्यवस्था ना हो जिसमें कि धनबल व बाहुबल का प्रयोग ना होता हो । क्योंकि ईमानदारी व लोकतांत्रिक ढंग से चुनी गयी सरकार ही देश में संवैधानिक व्यवस्था को स्थायित्व प्रदान करती है। वैसे तो लोकतंत्र में जनता के द्वारा चुनें गये प्रतिनिधि ही जनता के हक व सभी अधिकारों की सुरक्षा करते हुए देश के लिए जनहित की नीतियां बनाते है। जब से देश में राजतंत्र की जगह लोकतांत्रिक व्यवस्था लागू है तब से देश में जनसामान्य के द्वारा चुनें गये लोगों के द्वारा ही शासन की समस्त व्यवस्थाओं को देखा जाता है। वैसे भी एक अच्छी लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए “लोकतंत्र जनता का”, “जनता के लिए”, “जनता द्वारा शासन”, की जाने वाली उस शासन व्यवस्था को ही माना जाता है जिसके चयन पूर्ण ईमानदारी से बिना किसी धनबल व बाहुबल के हुआ हो । हमारे देश में लोकतंत्र की जड़े बहुत ही गहरी है आजादी के बाद ही जब देश का संविधान लिखा जाने लगा तो उस समय ही इस व्यवस्था को मजबूत रखने के लिए बहुत ही प्रभावी कायदे-कानूनों का प्रावधान करके इस व्यवस्था को संविधान निर्माताओं के द्वारा मजबूती प्रदान की गयी थी जिसमें समय-समय पर सुधार होता रहता है।

लेकिन अब बहुत ही दुखः की बात यह है कि हमारे देश में लोकतांत्रिक व्यवस्था तो जिंदा है। लेकिन आज हम मतदाताओं के व्यवहार के चलते “लोकतांत्रिक व्यवस्था में बढ़ते धनबल व बाहुबल का प्रयोग की बहुत बड़ी चुनौती देश के सामने खड़ी है। वर्तमान में इसके चलते ही हमारे देश की चुनाव प्रकिया बहुत ही गम्भीर परिस्थितियों से गुजर रही है। आज स्थिति यह हो गयी है कि हमारे देश में किसी भी प्रकार के चुनावों कि जब भी कोई घोषणा चुनाव होती है तो प्रत्येक बुद्धिजीवी व्यक्ति के मन में सर्वप्रथम यह बात आती है, कि वर्तमान में देश में चुनाव प्रक्रिया में एवं राजनीतिक व्यवस्था में धनबल और बाहुबल का प्रभाव बहुत ही अधिक बढ़ गया है। देश में आज चुनावी व्यवस्था इस हाल में पहुंच गयी है कि एक सीधे सच्चे ईमानदार इंसान जो कि बिना धनबल व बाहुबल के प्रयोग के ईमानदारी से चुनाव लड़ता है तो उस सच्चे इंसान को लोकतांत्रिक व्यवस्था में बढ़ते धनबल व बाहुबल का प्रयोग करने वाले ठेकेदारों के हाथों मूहँ की खानी पड़ती है क्योंकि आज राजनीति समाजसेवा का माध्यम ना होकर के बहुत बड़ा व्यापार बन गयी है जिसके चलते प्रत्याशी चुनाव जीतने के लिए जमकर धनबल व बाहुबल का प्रयोग करने लगें है।

जबकि दोस्तों हमारे देश में एक समय वह भी था जब प्रत्येक राजनैतिक व्यक्ति राजनीति को समाज की सेवा का सबसे बड़ा माध्यम मानता था और चुनाव की इस प्रक्रिया में वही लोग हिस्सा लेते थे जिनका सबसे बड़ा धर्म समाज सेवा होता था व उनका पूर्ण जीवन सामाजिक कार्यों के लिए निस्वार्थ भाव से समर्पित होता था । लेकिन बहुत ही दुर्भाग्य की बात है कि देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था में आज ऐसा नही है, आज मतदाताओं की सोच के चलते ईमानदार और समाज सेवा करने वाले वे लोग चुनाव ही नहीं लड़ते हैं जिनके पास धनबल या बाहुबल नहीं है, आज सच्चा व ईमानदार व्यक्ति पराजय के ड़र से राजनीति के इस दलदल में फंसना ही नहीं चाहता है। जिसके चलते आज देश में सियासत की सवारी करने वालों में झूठे, नौटंकीबाज, जुमलेबाज, भ्रष्टाचारी, दागी एवं अपराधियों का जबरदस्त बोलबाला है। इसके चलते ही आज लोकतांत्रिक व्यवस्था में चुनावों का जो परिणाम आता है वह निष्पक्ष नहीं होता है क्योंकि इसको धनबल एवं बाहुबल के प्रयोग से मतदाताओं को प्रभावित करके देश की सत्ता पर आपराधिक प्रवृत्ति लोग काबिज हो जाते है और सत्ता हासिल होने के बाद ये लोग सत्ता का जमकर दुरुपयोग करते है जनहित के मसलों को छोडकर ये तथाकथित जनसेवक हमेशा अपनी सेवा में व्यस्त रहकर राजनीति को व्यापार बना डालते है।

देश के लोकतंत्र के लिए सबसे घातक व सबसे बड़ी दुखः की बात यह है कि इन धनबल व बाहुबल का प्रयोग करने के लिए तैयार रहने वाले आपराधिक सोच वाले व्यक्तियों को चुनावों में भाग लेने के लिए सभी छोटे व बड़े राजनैतिक दलों में टिकट देने की होड़ लगी हूयी है । देश के अधिकांश दलों की हालाता आज किसी से छिपी नहीं है टिकट लेने के लिए आज सबसे बड़ी योग्यता व चुनाव जीतने की गारंटी यह है कि आप कितने बड़े धनपशु व बाहुबली हैं आपका टिकट व जीत पक्की है । आज समाज सेवी व ईमानदार व्यक्ति को राजनीति काँटों का ताज हो गयी है । इस सब के लिए राजनैतिक दलों का जितना दोष है उससे कई गुना दोष उन लालची व डरपोक मतदाताओं का है जो की धनबल व बाहुबल से प्रभावित होकर ही मतदान करते है। इस सभी का परिणाम यह होता है कि धनबल व बाहुबल के प्रयोग से गलत सोच रखने वाले आपराधिक प्रवृत्ति के लोग नेता बन सांसद, विधायक, मेयर, पालिकाध्यक्ष, जिलापंचायत अध्यक्ष आदि की कुर्सी पर काबिज हो जाते है एवं सच्चे ईमानदार और लोगों के लिए सेवाभाव रखने वाले अच्छे लोग बहुत ही पीछे रह जाते है। आज देश में लोकतांत्रिक व्यवस्था में धनबल व बाहुबल का चुनाव आयोग की शक्ति के बाद भी जमकर प्रयोग हो रहा है। जिसके चलते परिणाम यह हो रहा है कि अब सच्चे ईमानदार समाजसेवी बुद्धिजीवी लोग राजनीति की कठिन ड़गर पर चलने में डरने लगे हैं

 

ये लोग आज की राजनीति के लिए अपने आपको बहुत ही अनफिट मानने लगें है जो राजनीति कभी समाजसेवा का माध्यम थी आज वह गंदी सोच वाले लोगों की वजह से व्यापार बन गयी है जोकि देश व समाज के लिए बहुत ही घातक है। लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए दुख की सबसे बड़ी बात यह है कि पहले तो चुनावी राजनीति करने वाले लोगों ने, चुनाव लड़ते समय चुनावों में धनबल व बाहुबल के लिए अपराधियों का अपना चुनाव जीतने के लिए एक बहुत ही मजबूत व कारगर हथियार की तरह प्रयोग करना शुरू किया था । लेकिन अब तो देश की राजनीति के हालात ऐसा हो गये है कि अब देश सरकार किसी चाहें किसी भी राजनैतिक दल की हो उसमें धनबल व बाहुबल का प्रयोग इस हद तक होने लगा है कि इसके प्रयोग के चलते कोई न कोई अपराधी व आपराधिक सोच वाला व्यक्ति सरकार में शामिल होकर मंत्री तक बन जाता है, जो कि हमारे सभ्य समाज व देश के विकास के लिए बहुत ही घातक है। क्योकि जो व्यक्ति जितना धन चुनावों में खर्च करता है उससे कहीं ज्यादा धन वह चुनाव जीतने के बाद भ्रष्टाचार से या लोगों से वसूली करके वसूल लेता है लेकिन फिर भी हम लोग देशहित में एक देशभक्त मतदाता के रूप में ईमानदारी से सच्चे आदमी को चुनावों में जीता कर अपना फर्ज निभाने के लिए तैयार नहीं है ।

दोस्तों चुनाव आयोग की बेहद सख्ती के बाद भी हाल के वर्षों के चुनावों पर अगर ध्यान दे तो पिछले कुछ दशकों से देश की लोकतांत्रिक प्रक्रिया में धनबल व बाहुबल का प्रयोग बहुत ज्यादा बढ़ा गया है। देश में लोकतंत्र की बदहाली का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है, जो लोग चुनाव जीतने के लिए बाहुबल व इतना अधिक धनबल खर्च कर सकते है तो वो लोग चुनाव जीतने के बाद क्या करेंगे, सबसे पहले तो ये लोग अपनी जेबों को भरेंगे उसके बाद ये अपने आपराधिक प्रवृत्ति के मित्रों का ऋण उतारने के लिए उनको अपराध करने की अघोषित खूली छूट प्रदान करके देश व समाज का माहौल खराब करेंगे ।

मित्रों क्या हमने कभी यह शांत मन से सोचा है कि देश के महापर्व लोकतंत्र के इस बहुत बड़े उत्सव में यह सब धन कहाँ से आता है? कौन देता कौन देता है इतने भारी-भरकम रूपये , तो इसका जवाब है देश के बड़े-बड़े धनपशु, बहुत सारे व्यापारी व कम्पनियां है जो देश के सभी राजनैतिक दलों व राजनैतिक लोगों को चंदे के रूप में भारी धनराशि देती है। इस दी गयी धनराशि के बदले में जनता के द्वारा अपने हितों की रक्षा के चुना गया व्यक्ति जनहित के मुद्दों को छोडकर चन्दा देने वाले के हितों के अनुसार नीतियों के निर्माण में लग जाता है। देश में आज जितने भी राजनैतिक दल है लगभग सभी दल चुनावी सहयोग के नाम पर भारी भरकम धनराशि चन्दे में कम्पनियों से लेती है और फिर उसी धन को यह सभी राजनैतिक दल व लोग जनता के बीच जाकर चुनाव जीतने के लिए अपने चुनाव के प्रचार-प्रसार में पानी की तरह बहाकर के खर्च करते है जो कि लोकतांत्रिक व्यवस्था के नाम पर सबसे बड़ा धब्बा है।

देश की वर्तमान की राजनीति में आज धनबल व बाहुबल का प्रयोग चुनावों में बहुत बड़ी चुनौती है। सभी दल अपनी नीतियों की जगह इसके ही बलबूते पर चुनाव जीतना चाहते हैं। कोई भी राजनैतिक दल व अधिकांश व्यक्ति आज ईमानदारी और जनता के सेवाभाव के उद्देश्य के साथ चुनाव नहीं लड़ना चाहते है। आज हमारे देश में राजनीति के खिलाड़ी सत्ता के दौड़ में इतने व्यस्त है कि उनके लिए देशसेवा, जनसेवा, देश के विकास की बात, नये विकसित राष्ट्र के निर्माण की बात करना व्यर्थ हो गया है। आज सभी पार्टियां जनता को गुमराह करके केवल किसी भी मूल्य पर सत्ता हथियाने में व्यस्त नज़र आती है। आज सभी राजनैतिक दलों व अधिकांश राजनैतिक लोगों की सोच नोट के बदले वोट हथियाने की हो गयी है। जो कि एक लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए बहुत ही बड़ी चुनौती है ।

जो राजनीति देश में कभी सेवा का सबसे बड़ा माध्यम थी आज वो राजनीति एक बहुत ही जबरदस्त कमाई वाला व्यवसाय बन गई है एक-एक नेता की आय एक कार्यकाल में कितनी बढ़ जाये देश में काले धन के बहुत ज्यादा प्रचलन के चलते आज आकलन करना बहुत ही कठिन व चुनोती पूर्ण है। आज हालाता यह है कि देश में नेताओं ने अपने उधोगपति व अपराधी छ़ाट लिए है जो की लोकतांत्रिक व्यवस्था व देशहित के लिए बहुत ही चुनोती पूर्ण स्थिति है।

हमारे देश में पिछले कई दशकों से चुनाव आयोग ने प्रत्येक चुनावों में बहुत सख्ती कर रखी है और चुनाव के धनराशि की अधिकतम सीमा तय कर रखी है । उसके बाद भी हम अपने आसपास किसी भी चुनाव पर नज़र दौडा कर देखे तो चुनावों में खड़ा होने वाला एक-एक प्रत्याशी चुनाव जीतने के लिए वोटरों पर धन पानी की तरह बहाता है व अपने अपराधी मित्रों के बाहुबल व धनबल के सामंजस्य के आधार पर वोटरों को अपने प्रभाव में लेकर चुनावी आदर्श आचार संहिता की धज्जियां उड़ा कर चुनाव को अपने पक्ष में करता है।

 

हम देखते है तो यह बहुत ही चौकाने वाला तथ्य होता है कि चुनावों में राजनैतिक दल व लोगों के द्वारा खर्च किये जाने वाले करोड़ों का कोई भी हिसाब-किताब नहीं होता है और जगजाहिर बात है कि जो चुनाव जीतने के लिए करोड़ों रुपए खर्च करेगा, वह चुनाव जीतने के बाद उसकी भरपाई तो वह जनता के रुपयों से ही करेगा। आज भारतीय लोकतंत्र के गलियारों में जो चन्द ईमानदार लोग बचे है व ईमानदार मतदाताओं के बीच एक गम्भीर चर्चा यह है कि देश की चुनावी व्यवस्था के लिए चुनौती बन चुके धनबल व बाहुबल की व्याप्त समस्या का समाधान कैसे किया जाये। और इसके समाधान करने लिए जल्द से जल्द क्या प्रभावी कदम उठाए जाए । जिससे कि अच्छे, सच्चे, ईमानदार व गरीब लोग धनबल व बाहुबल का अखाड़ा बन चुकी चुनाव प्रक्रिया में भाग लेकर विजयी होकर देश व समाज की सेवा कर सकें। क्योंकि धनबल व बाहुबल की चुनावी प्रक्रिया के चलते अच्छे व ईमानदार लोगों पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ रहा है। वो चुनावी समर में कही ठहर ही नहीं पा रहे है और इससे देश व समाज पिछ़ड रहा है आज देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए सबसे बड़ी चुनौती है कि तत्काल धनबल व बाहुबल पर पूर्ण रोक लगाकर लोकतंत्र के लिए चुनौती पैदा कर रहे लोगों पर अंकुश लगाया जाये। जिससे कि अच्छे ईमानदार व समाजसेवी लोगों को ही केवल राजनीति में आने का मौका मिले ।

देश में चुनाव आयोग की बेहद सख्ती के बाद भी होने वाले चुनावों में धनबल व बाहुबल के प्रयोग को रोकना आज समय की बहुत बड़ी मांग हो गयी है। क्योंकि जिस तरह से बड़े पैमाने पर हमारे देश की चुनावी प्रक्रिया में धनबल व बाहुबल का प्रयोग होता है उससे किसी भी ईमानदार व्यक्ति की चुनावों में भाग लेने कि हिम्मत नहीं होती हैं। इसलिए चुनाव प्रक्रिया में तत्काल सुधार के लिए हम सभी को ईमानदार लोगों को चुनावों में भाग लेने के लिए प्रेरित करना होगा क्योंकि जब इस तरह के लोग आगे आयेंगे तो स्वतः ही चुनावों में ईमानदारी होगी और व्यक्ति नियम कायदे कानून से चुनाव लड़ेगा तो धनबल वह बाहुबल पर धीरे-धीरे अंकुश लग जायेगा । जिसका प्रभाव यह होगा कि भविष्य में होने वाले चुनावों में फिजूलखर्ची तो रुकेगी ही साथ साथ ईमानदार, समाजसेवी स्वभाव वाले लोग भी चुनाव में बढ़चढ़ कर हिस्सा लेना शुरू करेंगे इससे लोकतांत्रिक व्यवस्था के साथ-साथ हम सभी देशवासियों को भी लाभ होगा। वैसे तो चुनाव में हो रहे धनबल, फिजूलखर्ची व बाहुबल को रोकने हेतु चुनाव आयोग ने समय-समय पर बहुत सुधार किये है लेकिन उसमें अभी और भी सख्ती के साथ सुधार की जरूरत है।

चुनावों में सबसे पहले तो सुधार की जरूरत तो यह है कि हम सभी देशवासियों को संकल्प लेना होगा कि हम चुनावों में धनबल व बाहुबल का प्रयोग करने वाले नेताओं व प्रत्याशियों का पूर्ण रूप से बहिष्कार करके सच्चे व ईमानदार व्यक्ति को चुनाव जिताएंगे साथ ही साथ हम लोग चुनावों के दौरान प्रत्याशी से किसी भी तरह का लाभ नहीं लेगें जिससे की चुनावी कुरीतियों पर धनबल व बाहुबल पर अंकुश लगाया जा सके ।

वैसे हमारे देश में लोगों की जागरूकता व चुनाव आयोग के प्रयासों से मतदान प्रक्रिया में काफी सुधार आया है। मतदान को एक महत्वपूर्ण जिम्मेदारी मानकर के वोट करने वाले लोगों की तादात दिन-प्रतिदिन बढ़ रही है। लेकिन फिर भी एक तथ्य यह है कि चुनाव आयोग की बेहद सख्ती के बाद भी अब चुनावी प्रक्रिया बहुत अधिक खर्चीली हो गयी हैं और बाहुबलियों के प्रभाव पर भी कोई कारगर अंकुश नहीं लग पाया है। इसका कारण पार्टी स्तर पर सच्चे लोकतंत्र का अभाव भी है, जिसका असर प्रत्याशी के चयन पर भी पड़ता है। यही कारण है कि लगभग सभी दलों में सत्ता का केन्द्रीकरण बड़ी समस्या बन चुका है। परिवारवाद अपने चरम पर है। राजनीतिक पार्टियों में आंतरिक तौर पर लोकतंत्र की कमी है। ऐसे में वह पार्टियां सशक्त लोकतंत्र कैसे स्थापित कर सकती हैं, जिनमें खुद ही लोकतंत्र नहीं है। चुनाव आयोग के पास इस समस्या से निपटने के लिए कोई कारगर तरीका नहीं है। जिसके लिए आयोग के पास अधिकारों की भी बहुत कमी जान पड़ती है। चुनावों से धनबल व बाहुबल पर लगाम लगाने के लिए कुछ कड़े उपाय करने की आवश्यकता है।

राजनीतिक दलों व राजनैतिक लोगों के द्वारा किया जाने वाला निजी चन्दे के संग्रहण पर पूर्ण प्रतिबंध लगा देना चाहिए, किसी भी अन्य प्रकार से आने वाले धन का विवरण सार्वजनिक कर देना चाहिए।
धनबल के प्रयोग की समस्या बहुत ही विकट समस्या है इस समस्या का हल इस तरह से हो सकता है कि पार्टियों को मिलने वाले स्त्रोत को ही सख्ती से बंद कर देना चाहिए, साथ ही उस पर आयोग का ठोस नियंत्रण हो ।राजनीतिक दलों को मिलने वाले चन्दे एवं धन से सम्बंधित कानून को और सशक्त बनाते हुए चुनाव आयोग को विशेषाधिकार देने चाहिए, जिससे की चुनावों में कालेधन के प्रयोग एवं वोटरों को लुभाने के तरह-तरह के गलत तरीकों पर सख्ती से लगाम लगायी जा सके।

आयोग को सभी राजनीतिक दलों व प्रत्याशियों से तय समय पर अपने आय-व्यय का ब्यौरा लेना चाहिए । जिसे अभी सियासी दल समय पर देने से कतराते हैं, की कही उनकी कलई न खुल जाए। हालात यह है कि कई राजनीतिक पार्टियां वर्षों से अपने आय-व्यय का विवरण फॉर्म 24A भरते ही नहीं हैं जिनकी तत्काल मान्यता खत्म कर देनी चाहिए । धनबल को रोकने के लिए इस नियम को अधिक कड़ाई के साथ लागू किया जाना चाहिए। साथ ही साथ आज समय की आवश्यकता है प्रत्याशियों के नामांकन डिजिटल तरीकों से होने चाहिए जिससे की सरकारी मशीनरी का उपयोग निष्पक्ष चुनाव सम्पन्न कराने में हो ना कि केवल नामांकन करवाने की व्यवस्था में हो । धनबल व बाहुबल को रोकने के लिए आज समय की मांग है कि चुनाव आयोग को और अधिक अधिकार मिलने चाहिए जिससे की चुनाव आयोग केवल चेतावनी ही न दे बल्कि कायदे कानूनों का उल्लंघन करने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करके उनको सजा भी दे सके।

*जय हिन्द जय भारत ।।
मेरा भारत मेरी शान मेरी पहचान ।।*

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