इस फोर्मुले से बुआ-बबुआ के वोटर्स को साधेंगे CM योगी…

लखनऊ :  आगामी लोकसभा चुनाव (2019) से पहले सियासत गरमा गयी है. यहाँ तीन राज्यों में कांग्रेस के सफलता के बाद जहा राहुल गाँधी एक्शन में है. वही अब भाजपा ने भी लोक सभा चुनाव के लिए अपनी कमर कस ली है. अब भाजपा के लिए ये चुनाव एक चुनौती के समान है. मगर इस बीच CM योगी के इस फोर्मुले ने बसपा, सपा में हडकंप मचने वाला है. बताते चेले यूपी में   गैर-यादव ओबीसी वोटरों को लुभाने के लिए योगी सरकार बड़ा दांव खेलने जा रही है। उत्तर प्रदेश सरकार ने चार सदस्यीय सामाजिक न्याय समिति का गठन किया था। अब समिति ने 27 फीसदी पिछड़ा आरक्षण को तीन हिस्सों पिछड़ा, अति पिछड़ा और सर्वाधिक पिछड़ा में बांटने की सिफारिश की है। पहली श्रेणी को 7%, दूसरी श्रेणी को 11% और तीसरी श्रेणी को 9% आरक्षण वर्ग में रखा जाना प्रस्तावित है। इसी समिति की रिपोर्ट में कहा गया है कि यादवों और कुर्मियों को 7 फीसदी आरक्षण दिया जा सकता है।

‘राजनीतिक रसूखवाले यादव और कुर्मी’
समिति की रिपोर्ट में कहा गया है कि यादव और कुर्मी न सिर्फ सांस्कृतिक रूप से बल्कि आर्थिक और राजनीतिक रसूखवाले हैं। यादव समाजवादी पार्टी का कोर वोटर है जबकि कुर्मी बीजेपी समर्थित अपना दल का कोर वोटर है।


रिपोर्ट लागू नहीं तो होगा आंदोलन
जस्टिस राघवेंद्र कमिटी की रिपोर्ट में ओबीसी को 79 उपजातियों में बांटा गया है। यह रिपोर्ट बीजेपी समर्थित पार्टी एसबीएसपी के मुखिया और पिछड़ा कल्याण मंत्री ओम प्रकाश राजभर इसी शीतकालीन सत्र की कैबिनेट में रख सकते हैं। ओम प्रकाश राजभर पहले ही सरकार को चेतावनी दे चुके हैं कि लोकसभा चुनाव से पहले अगर समिति की यह रिपोर्ट लागू नहीं की गई तो 24 दिसंबर को वह बड़ा आंदोलन करेंगे।

लोध, कुशवाहा और तेली अति पिछड़ी जातियां
इस रिपोर्ट में समिति ने सबसे ज्यादा आरक्षण की मांग अति पिछड़ा वर्ग के लिए की है, जो 11 फीसदी है। उन्होंने लोध, कुशवाहा, तेली जैसी जातियों को इस वर्ग में रखा है। 400 पन्नों की इस रिपोर्ट में कहा गया है कि अति पिछड़ा जाति के लोगों के लिए रोजगार की संभावनाएं उनकी जनसंख्या से आधी हैं। इस जाति की श्रेणी में आने वाले कुछ खास वर्ग हैं जिन्हें सबसे ज्यादा नौकरियां मिल रही हैं।

‘कुछ खास जातियों को ही मिला आरक्षण का लाभ’
अति पिछड़ा जाति में राजभर, घोसी और कुरैशी को 9 फीसदी आरक्षण दिए जाने की मांग की गई है। इसमें यह भी कहा गया है कि इन जाति के लोगों को या तो थर्ड और पांचवीं श्रेणी की नौकरियां मिलती हैं या फिर ये बेरोजगार रहते हैं। इसमें यह भी मुद्दा उठाया गया है कि ओबीसी की कुछ उपजातियों को आरक्षण का लाभ मिलने के बाद उनका सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक स्तर ऊंचा उठा है। उनकी शिक्षा और जनसंख्या में बढ़ोत्तरी होने के बाद से उनका राजनीति में हस्तक्षेप बढ़ा है। रिपोर्ट में लिखा है, ‘ऐसा देखा गया है कि सिर्फ कुछ उप जातियों को आरक्षण का लाभ मिला जबकि अधिकांश इसके लाभ से अछूते रहे।’

योगी सरकार ने गठित की थी समिति
इसी साल जून में यूपी सीएम योगी आदित्यनाथ ने एक समिति का गठन करके ओबीसी आरक्षण को अलग-अलग श्रेणियों में बांटे जाने के मामले में रिपोर्ट मांगी थी। योगी सरकार ने पिछड़ों के आर्थिक, सामाजिक, शैक्षणिक पिछड़ेपन और नौकरियों में उनकी हिस्सेदारी के अध्ययन के लिए हाई कोर्ट के रिटायर्ड जस्टिस राघवेंद्र कुमार की अध्यक्षता में चार सदस्यीय कमिटी बनाई थी। इसमें बीएचयू के प्रफेसर भूपेंद्र विक्रम सिंह, रिटायर्ड आईएएस जेपी विश्वकर्मा और सामाजिक कार्यकर्ता अशोक राजभर शामिल थे। विश्वकर्मा 2002 में राजनाथ सरकार में बनी सामाजिक न्याय अधिकारिता समिति में भी सचिव थे।

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