अब हर वार का जवाब मिलेगा’, जापान के बदले तेवर से ड्रैगन का अब डरना जरुरी है

कुछ हो न हो, तुलसीदास ने रामचरितमानस में एक बात बहुत सही लिखी है – ‘भय बिनु होई न प्रीति’, अर्थात बिना भय के संसार में कोई काम नहीं होता। यह बात जापान भली-भांति समझ चुका है, और अब वह अपने शान्तिप्रिय देश वाले छवि का पूर्ण परित्याग करने के लिए पूरी तरह तैयार है। जिस प्रकार से चीन की गुंडई ने जापान को अपने आक्रामक स्वरूप को पुनः धारण करने के लिए विवश किया है, वो अब चीन के लिए आगे बहुत मुसीबतें खड़ी कर सकता है।1945 के परमाणु हमले के बाद से जापान को शांतिपूर्ण छवि अपनानी पड़ी थी। उन्हें अपने संविधान में भी कई अहम बदलाव करने पड़े थे, ताकि उनकी छवि आक्रामक न लगे। लेकिन 21वीं सदी आते-आते जापान को आभास होने लगा कि शायद उनका यह निर्णय इतना भी क्रांतिकारी नहीं था। पर फिर भी उन्होंने अपनी शान्तिप्रिय छवि में कोई बदलाव नहीं किया।

तो फिर ऐसा क्या हुआ, कि अब जापान अपनी शान्तिप्रिय देश की छवि त्यागने को पूरी तरह तैयार है? इसके दो प्रमुख कारण है – वुहान वायरस और उसके जनक चीन की बढ़ती गुंडई। एक ओर चीन द्वारा उत्पन्न वुहान वायरस के कारण जापान को स्वास्थ्य और अर्थव्यवस्था, दोनों ही मोर्चों पर काफी बड़ा नुकसान उठाना पड़ा, तो दूसरी ओर पूर्वी चीन सागर में चीन की गुंडई दिन प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही थी, जिसका सबसे प्रत्यक्ष उदाहरण है चीन द्वारा सेंकाकू द्वीप समूह पर दावा, जिसके कारण वह कई बार जापान के समुद्री क्षेत्र में घुसपैठ कर चुका है।ऐसे में जापान के पास अब चीन के विरुद्ध शस्त्र उठाने और उसे उसकी औकात दिखाने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा था। जापान ने सर्वप्रथम ये संकेत देने शुरू किए कि चीन जापान के संयम की परीक्षा न ले, अन्यथा चीन के लिए बहुत बुरा होगा। लेकिन चीन मानो कानों में तेल डालकर मीठी नींद सोता रहा। जब स्वास्थ्य कारणों से शिंज़ो आबे को त्यागपत्र सौंपना पड़ा, तब चीन के हौसलों को मानों पर ही लग गए। यहीं पर वो गलती कर बैठा।

शिंज़ो आबे की जगह ली योशिहीदे सुगा ने, जो शिंज़ो के सामान आक्रामक और कट्टर चीन विरोधी निकले। उन्होंने जापान को पूर्णतया आक्रामक छवि देने की ठान ली, जिसके लिए उन्होंने कूटनीतिक स्तर पर धमाकेदार शुरुआत की। उन्होंने न केवल QUAD में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई, बल्कि भारत, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चीन को सबक सिखाने के अभियान में भागीदारी करने का निर्णय लिया। चीन को उसी के तरीके से पटखनी देते हुए जापान ने चीन से बांग्लादेश में स्थित उसके प्रिय प्रोजेक्ट [सोनाडिया में स्थित बन्दरगाह] पर लगाम लगाने में सफलता पाई, अपितु वहाँ से थोड़ी दूर पर स्थित माताबाड़ी में प्रोजेक्ट को स्थानांतरित कराकर उसे अपने नाम भी किया। इसके अलावा कभी कट्टर दुश्मन रहे दक्षिण कोरिया से अपने संबंध सुधारने की पहल कर जापान सम्पूर्ण दक्षिण पूर्वी एशिया को चीन विरोधी बनाने के लिए एक सशक्त मार्ग पर चलने लगा है।

लेकिन जापान केवल वहीं पर नहीं रुका। अपनी आक्रामकता को जगजाहिर करते हुए सितंबर में नए जापानी प्रधानमंत्री योशिहीदे सुगा के नेतृत्व में जापान इस बार का सबसे बड़ा रक्षा बजट तैयार कर रहा है, जिसका मूल्य सरकारी सूत्रों के अनुसार लगभग 52 बिलियन अमेरिकी डॉलर यानि 5.4 ट्रिलियन जापानी येन होगा। जापान ने यह निर्णय निस्संदेह चीन की बढ़ती गुंडई को ध्यान में रखते हुए किया, और ऐसे में जापान आक्रामक रक्षा नीति अपनाने से पीछे नहीं हटेगा।

जापान टाइम्स के रिपोर्ट के अनुसार, बजट को बढ़ाने की यह प्रक्रिया सितंबर के अंत तक आधिकारिक रूप से संसद में पेश होगी, जिसमें शिंजों आबे द्वारा अत्याधुनिक एलेक्ट्रोनिक युद्धनीति के लिए एक विशेष यूनिट का गठन होगा। इसके अलावा जापानी सरकार जापान द्वारा पाँचवी जेनरेशन के फाइटर जेट्स को विकसित करने के लिए विशेष रूप से वित्तीय सहायता देगी, जिन्हें 2035 तक जापान की सेवा में प्रस्तुत किया जाएगा। इससे स्पष्ट पता चलता है कि नए जापानी प्रधानमंत्री भी शिंजों आबे की नीति पर चलते हुए जापान को एक शान्तिप्रिय, पर युद्ध थोपे जाने पर एक आक्रामक राष्ट्र के तौर पर तराशना चाहते हैं।

इसके अलावा जापान ने चीन के दुश्मनों से अपने संबंध प्रगाढ़ करने हेतु उन्हें अपने शस्त्र बेचने का भी मार्ग प्रशस्त किया है। इस पर टीएफ़आई पोस्ट ने प्रकाश डालते हुए एक पोस्ट लिखा था, जिसके अंश अनुसार, “शिंजों आबे ने अपने इस्तीफे से कुछ दिनों पूर्व ही यह फैसला किया है कि जापान शत्रु देशों की बैलेस्टिक मिसाइल से बचने के लिए अपने मिसाइल प्लान पर काम करेगा।  इसके तहत बैलेस्टिक मिसाइल को हवा में मार गिराने के साथ ही शत्रु देश पर मिसाइल हमले की क्षमता का विकास किया जाएगा।

यही नहीं, चीन के युद्धपोतों से बढ़ते खतरे को देखते हुए हाइपरसोनिक स्पीड़ से मार करने में सक्षम एंटी शिप मिसाइल भी जापान बना रहा है। इसके साथ ही वह अपने Izumo-class हेलीकॉप्टरों को अपग्रेड करने तथा Next Gen हाइपरसोनिक मिसाइलों पर काम भी कर रहा है। जापान अपने हवाई ईंधन भरने और सैन्य परिवहन क्षमताओं में वृद्धि कर रहा है, तथा एंटी-सैटेलाइट हथियारों का निर्माण करने पर विचार कर रहा है। अगर जापान इन मिसाइल को विकसित कर लेता है तो इसका एक्सपोर्ट भी होना शुरू हो जाएगा।”

ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि जापान ने अब एक चांटा खाने पर दूसरा गाल आगे करने की नीति का पूर्ण परित्याग कर दिया है, और वह किसी भी कीमत पर चीन को नहीं छोड़ेगा। यदि चीन को इतिहास का तनिक भी ज्ञान है, तो उसे इस बदलाव से भयभीत होने की बहुत अधिक आवश्यकता है, क्योंकि द्वितीय विश्व युद्ध में जापान ने चीन का कैसे भरता बनाया था, इसके लिए किसी विशेष शोध की आवश्यकता नहीं।

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