किन्नर बनते हैं एक रात की दुल्हन, अगली सुबह जो होता है वो कर देगा सन्न

हम सब जानते हैं कि किन्नर यानि तीसरा लिंग न तो मर्द होते हैं और न ही औरत। इसीलिए हम सबको यही लगता है कि ये अविवाहित ही रहते हैं। हमारे समाज में किन्नरों को लेकर बहुत सारे मिथ्य हैं जिनमें से एक ये भी है। मगर आज आपको किन्नरों की शादी की पीछे के रहस्य को इस पोस्ट के जरिए बताएंगे। यकीनन आपको जानकर ताज्जुब होगा कि किन्नरों की शादी होती है मगर आप ये जानकर और ज्यादा चौंक जाएंगे कि ये सिर्फ एक रात के लिए ही दुल्हन बनते हैं।

किन्नरों के भगवान

कहा जाता है कि किन्नरों की शादी इनके भगवान से होती है। जी हां किन्नरों को भी एक भगवान होता है। किन्नरों के भगवान हैं अर्जुन और नाग कन्या उलूपी की संतान इरावन जिन्हें अरावन के नाम से भी जाना जाता है।

क्या है पौराणिक कथा ?

मगर इरावन किन्नरों के भगवान कैसे बने? तो चलिए आपको बताते हैं कि इससे एक पौराणिक कथा जुड़ी है जिसका संबंध महाभारत के युद्ध से है। लेकिन इस कहानी से पहले आपको बता दें कि कहां होती है हिजड़ों की एक रात की शादी और फिर क्या होता है। कथा है कि महाभारत युद्ध में जब कौरवों और पांडवों के बीच युद्ध होने जा रहा था तो पहले पांडवों ने मां काली की पूजा की थी। इस पूजा में एक राजकुमार की बलि होनी थी। कोई भी राजकुमार जब आगे नहीं आया तो इरावन ने कहा कि वह बलि के लिए तैयार है। लेकिन इसने एक शर्त रख दी कि वह बिना शादी किए बलि नहीं चढ़ेगा।

पांडवों के पास समस्या यह आ गई कि एक दिन के लिए कौन सी राजकुमारी इरावन से विवाह करेगी और अगले दिन विधवा हो जाएगी। कोई भी सामान्य कन्या इसके लिए राजी नहीं होती। मगर फिर इस समस्या का समाधान श्री कृष्ण ने निकाला। श्री कृष्ण स्वयं मोहिनी रूप धारण करके आ गए और इन्होंनें इरावन से विवाह किया। अगले दिन सुबह इरावन की बलि दे दी गई और श्री कृष्ण ने विधवा बनकर विलाप किया। उसी घटना को याद करके किन्नर इरावन को अपना भगवान मानते हैं और एक रात के लिए विवाह करते हैं।

कैसे होता है विवाह ?

इसी के बाद से प्रथा चलती आ रही है कि किन्नर अपने भगवान इरावन से विवाह रचाते हैं और फिर अगले दिन विधवा बनकर विलाप करते हैं। अगर आप हिजड़ों की शादी का जश्न देखना चाहते हैं तो आपको तमिलनाडु के कूवगाम जाना होगा। यहां हर साल तमिल नव वर्ष की पहली पूर्णिमा से किन्नरों के विवाह का उत्सव शुरु होता है जो 18 दिनों तक चलता है। 17 वें दिन हिजड़ों की शादी होती है। सोलह श्रृंगार किए हुए हिजड़ों को पुरोहित मंगलसूत्र पहनाते हैं और इनका विवाह हो जाता है।

विवाह के अगले दिन इरावन देवता की मूर्ति को शहर में घुमाया जाता है और इसके बाद उसे तोड़ दिया जाता है। इसके साथ ही किन्नर अपना श्रृंगार उतारकर एक विधवा की तरह विलाप करने लगती है। तो इस प्रकार किन्नर भी विवाह करते हैं और फिर अगले ही दिन विधवा बन जाते हैं।

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