चीनी मीडिया में छाई भारत की बढ़ रही ताकत की चर्चा, खौफ में आया ड्रैगन का साम्राज्य

भारत की बढ़ रहा ताकत से चीन घबराया हुआ है. इन दिनों चीन में सिर्फ भारत को लेकर ही चर्चा होती है. भारत की लगातार बढ़ रही राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय ताकत से चीन खौफ में है. भारत और अमेरिका के बीच नई दिल्ली में होने जा रही 2+2 बैठक को लेकर चीन की हैरान है. दोनों देशों के बीच मजबूत हो रहे रिश्तों के मायने तलाशते हुए चीन ने कहा है कि भारत की राष्ट्रीय ताकत बढ़ रही है और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी उसकी स्थिति मजबूत हो रही है. हालांकि, उसने यह भी कहा कि अमेरिका की ताकत घट रही है और उभरता हुआ भारत इस स्थिति का पूरा फायदा उठाने की कोशिश करेगा.


चीन सरकार के मुखपत्र ग्लोबल टाइम्स ने भारत और अमेरिका के बीच होने जा रही है 2+2 बैठक और संभावित बेसिक एक्सचेंज एंड कोऑपरेशन अग्रीमेंट को लेकर विस्तार से लेख छापा है. फुदान यूनिवर्सिटी में साउथ एशियन स्टडीज सेंटर के डायरेक्टर और अमेरिकन स्टडीज सेंटर के प्रफेसर झांग जियाडोंग ने कहा है कि अमेरिका और भारत के बीच रिश्ते मजबूत हो रहे हैं और इस बैठक पर ध्यान देने को लेकर चार कारक अहम हैं.


लेख में कहा गया है कि यह महामारी के दौर में ऑफलाइन मीटिंग होने जा रही है. इस खतरनाक स्थिति में भी अमेरिका के विदेश मंत्री माइक पॉम्पियो नई दिल्ली में बैठक करेंगे. वह श्रीलंका, मालदीव और इंडोनेशिया भी जाएंगे. यह दिखाता है कि अमेरिका भारत के साथ रिश्तों और हिंद-प्रशांत रणनीति को बहुत महत्व देता है. दूसरी बात, यह बैठक ऐसे समय में होने जा रही है जब अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव चल रहे हैं. ऐसे समय में अमेरिका और भारत के बीच यह एक बड़ी कूटनीतिक गतिविधि है, जो अमेरिका के लिए भारत के महत्व को दिखाता है.


ग्लोबल टाइम्स के इस लेख में बैठक पर फोकस को लेकर तीसरी वजह बताते हुए कहा गया है कि यह बातचीत ऐसे समय में हो रही है जब भारत और चीन के बीच सीमा पर तनाव है. दोनों देशों के बीच करीब आधे साल से तनातनी है. अमेरिका और भारत के बीच 2+2 बातचीत राष्ट्रपति चुनाव और महामारी के बावजूद हो रही है, इसका स्पष्ट लक्ष्य चीन है. इसके जवाब में चीन अमेरिका और भारत के कूटनीतिक उद्देश्यों को लेकर नए फैसले करेगा. नई दिल्ली के साथ आगे की नीतियों को लागू करने के लिए नए रास्ते तलाशने होंगे.


मुखपत्र में भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के बीच होने जा रहे मालाबार नौसेना अभ्यास का भी जिक्र किया गया है. लेख में कहा गया है कि इसके जरिए इंडो-पैसिफिक समुद्री सुरक्षा ढांचा धीरे-धीरे आकार ले रहा है. लेखक ने कहा है कि अमेरिका और भारत के बीच सैन्य सहयोग जारी रहेगा. हालांकि, बातचीत के समय को देखकर कहा जा सकता है कि अमेरिका ट्रंप के चुनाव जीतने में भारत की मदद चाहता है. वॉशिंगटन उम्मीद कर रहा है कि नई दिल्ली चीन के साथ टकराव की वजह से अमेरिका और अधिक हथियार खरीदेगा. भारत और चीन के बीच तनाव में अमेरिका अपने लिए मौका देख रहा है.


लेख में कहा गया है कि इस मल्टीपोलर दुनिया में अमेरिका और भारत के बीच रिश्ते मजबूत होंगे और इसमें बदलाव भी आएगा. वॉशिंगटन के लिए नई दिल्ली के साथ उस तरह का गठबंधन मुश्किल होगा जैसा उसने टोक्यो के साथ किया. दूसरी, तरफ भारत खुद को वैश्विक ताकत मानता है, जो उसका अमेरिका के प्रति रुख तय करेगा. यह देश और अधिक शक्तिशाली होना चाहता है और ऐसे में भारत किसी अन्य वैश्विक प्रतिद्वंद्वी के अधीन नहीं होगा. कोल्ड वॉर के दौरान भी भारत अमेरिका और सोवियत रूस के बीच तटस्थ रहा था या कुछ हद तक रूस की ओर झुका हुआ था.
मुखपत्र कहता है कि भारत के हित में सबसे अच्छा यह है कि वह सभी बड़ी शक्तियों के साथ दोस्ती, सहयोग और निष्पक्षता रखे, नहीं तो भारत पावर गेम में शामिल हो जाएगा. इससे उसे नुकसान होगा. ग्लोबल टाइम्स आगे यह भी कहता है कि व्यावहारिक दृष्टिकोण से भारत की राष्ट्रीय ताकत बढ़ रही है और इसके अंतरराष्ट्रीय महत्व में भी सुधार हो रहा है, जबकि अमेरिका में अपेक्षाकृत गिरावट आ रही है. ऐसी परिस्थिति में भारत निश्चित तौर पर अमेरिका के लिए भारत के बढ़ते रणनीतिक महत्व का फायदा उठाने की कोशिश करेगा. लेकिन वह इस धीमे हो रहे जहाज पर पूरी तरह निर्भर नहीं होगा.

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