…तो इसलिए मिला कर्नल संतोष बाबू को ‘महावीर चक्र’


  • गलवान के बलवान ने जान दे दी लेकिन भारतीय सीमा में घुसने नहीं दिया
  • चीन से शाम 7 बजे शुरू हुआ खूनी संघर्ष तीन दौर में रात भर चला था


नई दिल्ली,। गणतंत्र दिवस पर देश के दूसरे सर्वोच्च युद्ध वीरता पुरस्कार ‘महावीर चक्र’ से नवाजे गए कर्नल संतोष बाबू की उस बहादुरी के बारे में भी जानना जरूरी है कि आखिर उन्हें यह सम्मान क्यों और किस लिए दिया गया? बीते वर्ष 15/16 जून की रात लद्दाख की गलवान घाटी में उन्होंने अपनी टीम के साथ उन चीनी सैनिकों का मुकाबला किया था जो भारत में घुसपैठ करने के लिए बेताब थे। चीन के सैनिकों के साथ हुई झड़प में कर्नल संतोष बाबू ने अपनी जान गंवाई थी लेकिन भारतीय सीमा में घुसने नहीं दिया।

इसी घटना में चीन के सैनिकों से मुकाबला करने वाले पांच और बहादुरों को ‘वीर चक्र’ दिया गया है जिनमें बिहार रेजिमेंट के नायब सूबेदार नंदू राम सोरेन, नायब सूबेदार दीपक सिंह, 81 फील्ड रेजिमेंट के हवलदार के.पलानी, पंजाब रेजिमेंट के सिपाही गुरतेज सिंह को मरणोपरांत यह सम्मान मिला है। इसके अलावा बहादुरी से लड़कर घायल होने वाले हवलदार तेजेंदर सिंह को भी वीर चक्र दिया गया है। गलवान संघर्ष में शहीदों को सम्मानित किये जाने से स्पष्ट है कि भारत लद्दाख में चीन के साथ मौजूदा गतिरोध को युद्ध के रूप में मान रहा है। भारत और चीन के बीच गलवान घाटी का यह हिंसक संघर्ष तीन दौर में हुआ था। पहला दौर शाम 7 बजे, दूसरा दौर 11 बजे तक चला। तीसरा दौर रात 11 बजे शुरू हुआ जो तड़के तक चला।

चीन ने बनाई थी भारतीय क्षेत्र में पोस्ट
गलवान में हिंसक झड़प से 10 दिन पहले ही दोनों देशों के बीच लेफ्टिनेंट जनरल स्तर की बात हुई थी। बैठक में पेट्रोलिंग प्वाइंट-14 से दोनों देशों की सेनाओं के पीछे हटने का फैसला इसलिए लिया गया था क्योंकि दोनों देश की सेनाएं एलएसी के काफी करीब आ चुकी थी। गलवान नदी के किनारे चीन की एक निगरानी पोस्ट भारत की सीमा में थी। बातचीत के कुछ दिन बाद चीन ने इस पोस्ट को हटा भी दिया था। उसी दिन 16 बिहार बटालियन के कमांडिंग ऑफिसर कर्नल बी संतोष बाबू ने अपने समकक्ष चीनी अधिकारी से इस बारे में बात भी की थी लेकिन 14 जून की आधी रात को चीन ने फिर उसी जगह अपनी पोस्ट बना ली। 15 जून को शाम 5 बजे कर्नल संतोष बाबू ने तय किया कि वे एक टीम के साथ खुद उस कैंप के पास जाएंगे और पूरी बात की जानकारी लेंगे कि आखिर यह पोस्ट दोबारा कैसे बन गई। इस दौरान 16 बिहार रेजिमेंट में गरमागर्मी का माहौल था। यूनिट के युवा सिपाही नाराज थे और वे खुद चीन की उस विवादित पोस्ट को उखाड़ फेंकना चाहते थे लेकिन कर्नल बाबू का विचार दूसरा था। अपनी यूनिट में बेहद सौम्य, शांत दिमाग से काम करने वाले ऑफिसर कर्नल बाबू ने तय किया वे खुद चीन की उस पोस्ट तक जाएंगे।

35 सैनिकों के साथ निकले कर्नल बाबू
सामान्य स्थिति में एक कंपनी कमांडर (मेजर रैंक का अधिकारी) ऐसे मौके पर भेजा जाता है लेकिन कर्नल बाबू ने तय किया कि ऐसे नाजुक मसले को वे यूनिट के युवा अफसरों के हवाले नहीं करेंगे। 15 जून की शाम को 7 बजे कर्नल बाबू अफसरों और जवानों की 35 लोगों की एक टीम के साथ पैदल ही उस पोस्ट की ओर गए जिसे चीनियों ने दोबारा बनाया था। अब तक भारतीय टीम में बिलकुल तनाव का माहौल जैसा नहीं था, बल्कि ऐसा था कि जैसे वे कुछ पूछताछ करने जा रहे हों। जब भारत की टीम चीनी कैंप के पास पहुंची तो भारतीय सैनिकों को महसूस हुआ कि चीन के सैनिकों का हाव-भाव अलग था। वहां मौजूद वह चीनी जवान नहीं थे, जिनकी ड्यूटी सामान्य तौर पर उस जगह पर हुआ करती थी। एक ही स्थान पर तैनाती की वजह से 16 बिहार रेजिमेंट के जवानों ने चीनी यूनिट के सैनिकों के साथ अच्छा व्यवहार बना लिया था। उन्हें उम्मीद थी कि वहां वही चीनी सैनिक और ऑफिसर मिलेंगे, जिन्हें वे जानते थे लेकिन यहां मौजूद चीनी सैनिकों के नए चेहरे भारतीय सैनिकों के लिए पहली हैरानी की बात थी।

चीनी सैनिक ने कर्नल बाबू को दिया धक्का
जब भारत की टीम उस विवादित पोस्ट तक पहुंची तो चीन के ये नए सैनिक अलग अंदाज में दिखे। जब कर्नल बाबू ने बातचीत शुरू की और पूछा कि उन्होंने फिर से उस पोस्ट को क्यों बना लिया है तो चीनी सेना का एक जवान सामने आया और उसने कर्नल बाबू को पीछे धक्का दे दिया। चीन के इस अभद्र सैनिक ने चीनी भाषा में अपमानजनक शब्दों का भी प्रयोग किया। एक आर्मी यूनिट में अपने कमांडिंग ऑफिसर की बेइज्जती देखना वैसा ही है, जैसे आपके माता-पिता के साथ किसी ने बेइज्जती या उनके साथ मारपीट की हो। भारत के कमांडिंग ऑफिसर को धक्का देने के बाद संयम की सीमा पहले ही खत्म हो गई थी। इस घटना के बाद भारत की ओर से तुरंत और तीव्र रूप से प्रतिक्रिया आई। भारतीय टीम चीनियों पर टूट पड़ी और यह लड़ाई मुक्के और घूंसों तक ही सीमित रही। इस दौरान किसी किस्म के हथियार का इस्तेमाल नहीं हुआ। पहले दौर की यह लड़ाई करीब 30 मिनट तक चली और दोनों ओर से सैनिक चोटिल हुए लेकिन भारतीय टीम इस दौरान बीस साबित हुई। 16 बिहार रेजिमेंट के शूरवीर जवानों ने उस पोस्ट को तोड़कर उखाड़ फेंका।

​​​चीनियों का मिजाज​ देख खतरा भांप गए कर्नल बाबू
इस घटना के तुरंत बाद कर्नल बाबू भांप गए कि ​​चीनियों का मिजाज दूसरा है और चीन के नए सैनिकों की मौजूदगी और एक शख्स की ओर से की गई गुस्ताखी से वे समझ गए कि कुछ बड़ा होने वाला है। उन्होंने भारत के जख्मी सिपाहियों को वापस पोस्ट पर भेज दिया और उन्हें कहा कि पोस्ट से और ज्यादा जवान भेजे जाएं। अब तक भारतीय खेमे में चीनियों के प्रति गुस्सा बढ़ चुका था लेकिन कर्नल बाबू ने खुद संयमित रहकर अपने जवानों को शांत किया। कर्नल बाबू और उनकी टीम ने जिन नए चीनी जवानों को हाथापाई में पकड़ा था, उन्हें वे एलएसी के पार चीनी सीमा की ओर निकल गए। भारत की टीम इन चीनी जवानों को न सिर्फ उनके सीनियर अफसरों को सौंपना चाहती थी, बल्कि ये जानना चाहती थी कि क्या और भी चीनी सैनिक तो नहीं आ रहे हैं।

…जब कर्नल बाबू को सिर पर लगी चोट
15 जून की उस शाम के पिछले कुछ घंटों के घटनाक्रम इशारा कर रहे थे कि यह आम दिनों जैसा मामूली टकराव नहीं है। अब तक गलवान घाटी अंधेरे में डूब चुकी थी। भारत के जख्मी सिपाहियों ने अपनी पोस्ट पर पहुंचकर चीन के सैनिकों से हुई भिड़ंत की जानकारी भारतीय खेमे को दी तो तत्काल एक टीम मौके पर पहुंची। कर्नल बाबू का अंदेशा तब सच साबित हुआ जब भारतीय सैनिक वहां पहुंचे तो चीन के नए सैनिक नदी के दोनों किनारों पर पोजिशन लेकर इंतजार कर रहे थे। इसके अलावा दाहिनी ओर भी एक रिज पर पोजिशन लेकर वे तैयार थे। चीनी खेमे से भारतीय सैनिकों पर बड़े-बड़े पत्थर बरसने लगे। रात को 9 बजे के करीब कर्नल बाबू के सिर से एक बड़ा पत्थर टकराया और वे गलवान नदी में गिर गए।

रात के अंधेरे में हुआ टकराव का दूसरा दौर
भारत और चीनी सैनिकों के बीच यह दूसरे दौर का टकराव 45 मिनट तक चला और यह संघर्ष एलएसी के आर-पार कई गुटों में हुआ जिसमें करीब 300 लोग एक-दूसरे से लड़ रहे थे। जब यह लड़ाई रुकी तो भारत और चीन दोनों ओर से कई जवान गलवान नदी में गिर चुके थे। इसमें भारत के 16 जवान ​भी ​शामिल थे। आमने-सामने की इस लड़ाई में चीनियों ने कील लगे रॉड और डंडों का इस्तेमाल किया। इसमें सिपाही कुंदन कुमार, हवलदार के.पलानी और नायब सूबेदार दीपक सिंह चीनियों के हमले में घायल होकर शहीद हो गए। इसके बाद दोनों देशों के सैनिक अलग-अलग हो गए और इस दौरान दोनों देश की सेनाओं ने नदी में गिरे अपने-अपने घायल ​​जवानों को ​बाहर निकाला और उन्हें इलाज के लिए भेजा।

भारतीय कैंप में भावनाएं ​थीं ​उफान ​पर ​
जब भारतीय जवान अपने घायल सैनिकों को नदी और अन्य स्थान से निकाल रहे थे, तभी रात के अंधेरे में उन्हें एक ड्रोन के आने की आहट सुनाई दी। यह एक नए खतरे का संकेत था गलवान घाटी में आधी रात को भारत और चीनी सैनिकों के बीच होने वाली तीसरी झड़प का। ड्रोन धीरे-धीरे घाटी की ओर आ रहा था और संभवत: वह इन्फ्रारेड कैमरा और नाइट विजन का इस्तेमाल कर रहा था, ताकि चीन अपने नुकसान का आकलन कर सके। इस दौरान कर्नल संतोष बाबू ​का शव गलवान ​नदी ​से बाहर निकालकर भारतीय कैंप की ओर ले जा​या गया। भारत के बाकी जवान हालात का जायजा लेने के लिए चीनी सीमा में ही मौजूद रहे। भारत के सैनिक अपने कमांडिंग ऑफिसर को अपनी आंखों के सामने शहीद होता देख आग बबूला थे और बदला लेने के लिए जवानों की भावनाएं उफान मार रही थीं।

मदद करने ​पहुंची घातक प्लाटून, फिर हुई तीसरी लड़ाई
भारतीय चौकी पर जब कर्नल संतोष बाबू ​का शव पहुंचा तो बड़ी संख्या में भारतीय सैनिक मौके पर पहुंच गए।​ ​इसमें 16 बिहार रेजिमेंट और 3 पंजाब रेजिमेंट के घातक प्लाटून भी शामिल थी। घातक प्लाटून में वे सैनिक शामिल थे जो हमले का नेतृत्व करते हैं। भारत की ओर से मौके पर पहुंचे सैनिक चीनी सीमा में अंदर तक चले गए ताकि चीन के ज्यादा सैनिक एलएसी के करीब न पहुंचे सकें और उन्हें पहले ही रोक दिया जाए। चीन और भारतीय सैनिकों के बीच तीसरा टकराव रात 11 बजे के तुरंत बाद शुरू हुआ और छिटपुट तरीके से आधी रात के बाद तक जारी रहा। अंधेरे में भारतीय सैनिक चीनियों पर टूट पड़ रहे थे, लेकिन घाटी संकरी और चढ़ाई खड़ी होने की वजह से कई सैनिक नदी में गिर गए और कई सैनिकों को गिरते वक्त पत्थरों से चोट लगी। सात बजे शुरू हुई इस लड़ाई के 5 घंटे गुजर जाने के बाद भारत और चीन दोनों ओर के स्वास्थ्यकर्मी वहां पहुंच गए। दोनों ओर से घायल सैनिकों का इलाज किया गया। अंधेरे में ही ​दोनों देशों के बीच ​घायल और मृत सैनिकों का आदान-प्रदान हुआ।

​चीन ने​​ भारत के 10 सैन्यकर्मियों को​ पकड़ा ​
इसी दौरान ​​भारत के 10 सैन्यकर्मियों को ​​चीन ने पकड़ लिया जिसमें 2 मेजर, 2 कैप्टन और 6 जवान शामिल थे।​ ​16 चीनी सैनिकों के शव सौंपे गए तीसरी लड़ाई के बाद चीन को उसके 16 सैनिकों के शव लिखत-पढ़त में सौंपे गए जिसमें चीन के 5 ऑफिसर भी शामिल थे। इस तरह से 16 चीनी सैनिक युद्ध क्षेत्र में ही मरे थे लेकिन इसके बावजूद चीन ने आज तक अपनी ओर के हताहत सैनिकों का खुलासा नहीं किया है। 16 जून को सुबह होते-होते भारतीय सैनिक वापस एलएसी पार कर अपने पोस्ट पर लौट आए। तब पाया गया कि अभी भी 10 सैनिक वापस नहीं लौटे हैं तो दोनों पक्षों के मेजर जनरल ने बात की। इसके बाद 19 जून को चीनी सेना ने चार भारतीय अधिकारियों समेत 10 सैनिकों को भारत को वापस लौटा दिया। 1962 के चीन-भारत युद्ध के बाद यह पहला मौका था जब भारतीय सैनिकों को चीनी पक्ष ने हिरासत में लिया था।

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