शौहर ने अपनी अय्याशी को बताया मर्दानगी, रोते-रोते हुआ बेहाल जब बीवी ने भेजी तलाक की मिठाई

स्कूल से घर आते हुए वो सब्ज़ियां और फल ले आई, शनिवार था, इसलिए स्कूल जल्दी बन्द हो गया था, वो हर शनिवार सब्ज़ियाँ और फल खरीद लाती, तीन-चार दिन तो निकल ही जाते, घण्टी बजाते ही रज्जो ने दरवाज़ा खोला..रज्जो… ये ले पकड़..,आपसे कितनी बार कहा है..मुझे साथ ले जाया कीजिये, इतना वज़न उठा कर क्यों लाती हैं, मैं ले आती..,बाबा.. ये भाषण बाद में दे, चाय पिला, लगता है बारिश होगी आज… वो खिड़की से बाहर देखती हुई बोली.. हाँ.. घने बादल घिर आये हैं, मैं चाय लाती हूँ, कुछ खाने को लाऊं..? नहीं… मैं फ्रेश होके आती हूँ..ठीक है… चाय पीते हुए उसकी नज़र एक लिफाफे पर पड़ी जो शायद रजिस्ट्री थी..य क्या है..?

उसने उसकी और इशारा किया.. अरे..बताने ही वाली थी, पोस्टमेन दे गया है, साइन भी लिए हैं मेरे… ओके…उसने खोल कर देखा और फिर टेबल पर रख दिया..,ये क्या है ..? रज्जो ने पूछा.. तुम्हारे साहब ने तलाक़ के पेपर भिजवाए हैं… क्या.. पागल हो गए हैं साहब.. रज्जो बिफर उठी..ये तो होना ही था.. गुस्से वाली क्या बात है, अच्छा ही हुआ ये मुझे नहीं करना पड़ा, उदित ने खुद ही कर दिया.. ये सब ठीक नहीं हो रहा… साहब को उनके मम्मी पापा कुछ समझाते क्यों नहीं… उदित ने कभी किसी की सुनी है क्या..? खैर जाने दे, मैं तो इसीमें ख़ुश हूँ..रज्जो अब क्या कहती, कुछ देर चुपचाप वहीं बैठी रही फिर चाय का कप उठा रसोई में चली गई..

रसोई में सब्ज़ियाँ और फल संभाल कर रखते हुए उसे वो दिन याद आ गए, जब शुभा और उदित बेहद खुशी खुशी अपने घर में व्यस्त थे, शुभा एक विश्व विद्यालय में साइंस की टीचर थी, और उदित भी एक बड़ी कम्पनी में एच आर था, दोनो की शादी को चार साल हो गए थे, तभी शुभा के माँ बनने की खबर ने शुभा और उदित के परिवार में खुशियां भर दीं, शुभा भी बहुत खुश थी, शुभा की मम्मी ने रज्जो को उसकी देखभाल के लिए उसके पास भेज दिया, रज्जो की माँ ने शुभा को अपने हाथों से पाला था, शुभा और उसके मम्मी पापा भी रज्जो की माँ कमली को घर का सदस्य ही समझते थे, रज्जो की शादी में भी शुभा के पापा ने सारा खर्च उठाया था,

पर रज्जो की खोटी किस्मत के शादी के तीन साल बाद ही उसका पति एक्सीडेंट में चल बसा, तब तक शुभा की शादी उदित से हो चुकी थी, शुभा के पास रज्जो का मन लगा रहेगा और शुभा को भी सहारा मिल जाएगा यही सोच कर शुभा की मम्मी ने ये फैंसला लिया था, वैसे भी दोनों बचपन से साथ ही रहा करतीं थी, शुभा के मम्मी पापा की लाख कोशिशों के बाद भी रज्जो पढ़ नहीं सकी, उसका पढ़ाई में मन ही नही लगता था, मुश्किल से आठवीं पास कर उसने पढ़ाई छोड़ दी, पर शुभा के साथ रहते रहते उसे इंग्लिश बोलना अच्छे से आ गया था, और समझ भी लेती थी, जब शुभा को आठवां महीना लगा तो उसने स्कूल से छह महीने की छुट्टी ले ली,

बच्चे के आने की तैयारियों में उसे और कुछ याद ही ना रहता, बाहर के काम अब रज्जो करने लगी थी, बैंक जाना, घर का सामान लाना, बाकी सब काम भी उसने अपने ऊपर ले लिए थे, एक दिन बैंक जाते हुए उसे उदित की गाड़ी नज़र आई, उदित के बगल की सीट पर कोई लड़की भी बैठी थी, पहले तो उसे लगा के उसे गलतफहमी हो गई है, पर गाड़ी तो उदित की ही थी, पर उसने शुभा से इस बारे में कोई बात नहीं की, इस हालत में शुभा का परेशान होना तक़लीफ़ पैदा कर सकता था, शुभा ने एक प्यारी सी बेटी को जन्म दिया, सभी बहुत खुश थे….दिन ब दिन उदित और बदलता गया, घर देर से आता, खाना भी बाहर ही खाता, ऑफिस की तरफ से उसके टूर भी बढ़ गए थे,

शनिवार और रविवार की छुट्टी के दिन भी ऑफिस का कोई ना कोई टूर निकल आता, एक दिन शुभा जब धोने के लिए कपड़े मशीन में डाल रही थी तो उदित की पेंट की जेब से फ्लाइट की दो टिकट मिलीं, एक उदित और एक किसी रोज़ी केनाम की थी, रोज़ी तो उदित के साथ काम करती थी, उसे लेकर उदित टूर पे क्यों जाएगा ये उसकी समझ में नहीं आया, पिछले साल उनकी शादी की सालगिरह की पार्टी में भी आई थी, एक अनजाने डर से शुभा का दिल ज़ोर-ज़ोर से धड़कने लगा, उदित के नहाने जाते ही उसने उसका मोबाइल चेक किया, रोज़ी और उदित की बातों के बहुत से मैसिज मिले, शुभा समझ गई के ये क्या चल रहा था, पर वो बहुत मजबूत लड़की थी,

उसने सीधे-सीधे उदित से बात करने की ठान ली, जैसे ही उदित नहा कर निकला उसके हाथों में अपना फोन देख कर चोंक गया.. ये मेरा फोन क्यों देख रही हो.. देख रही हूँ के कोई जब धोखा देता है तो कैसा लगता है.. क्या बकवास कर रही हो.. रोज़ी से क्या रिश्ता है तुम्हारा..? कोई रिश्ता नहीं है.. बेकार में खुद को परेशान मत करो…कोई रिश्ता नहीं तो फिर ये क्या है…उसने उसे मैसिज दिखाते हुए कहा, और ये टिकटें..?अरे ये सब ऐसे ही…तुम छोड़ो..नहीं उदित… तुम्हें जवाब तो देना होगा..देखो मेरी बात सुनो.. मैं तुम्हीं से प्यार करता हूँ, सच, मेरी बात का यकीन करो..तो ये सब क्यों किया…मुझे इसका जवाब दो…वो बात ये थी के मैं..आगे बोलो उदित… शुभा का धैर्य जवाब दे रहा था,

दरवाज़े के बाहर दीवार से लगी हाथों में चाय की ट्रे पकड़े रज्जो भी अचंभित खड़ी थी..शुभा.. वो बात ये है के तुम माँ बनने वालीं थी, मैं जब भी तुम्हारे पास आना चाहता तुम मना कर देतीं, बस इसी बीच मेरी रोज़ी से करीबी हो गई, हम दोनों एक दो दिन के लिए शहर से बाहर चले जाते, बाकी मुझे उससे कुछ लेना देना नहीं है, तुम बेबी के साथ इतना व्यस्त होती हो के मेरे लिए तुम्हारे पास अब भी समय नहीं है, तो मैं क्या करूँ..? आखिर मर्द हूँ, मेरी भी ज़रूरतें हैं, इसलिए हम शाम को थोड़ा बाहर चले जाते हैं बस, इससे तुम्हें तो कोई नुकसान नहीं है… शुभा को ऐसा लगा के उसके पाँव के नीचे की ज़मीन किसी ने खींच ली हो, उसकी सारी जिंदगी डगमगा उठी थी,

उदित इस हद तक गिर सकता है उसने सोचा भी नहीं था, कौन सी औरत ये सोच सकती है के वो जिसके बच्चे को जन्म दे रही है, उसे अहसास ना हो के उसकी पत्नी उसके बच्चे को जन्म देते हुए, अपना ही जीवन दांव पे लगाती है, शुभा टूट चुकी थी, उसे लगा था के उदित शर्मिंदा होगा, उससे माफ़ी मांगेगा, पर उदित की मर्दानगी भरी बेशर्मी उसकी बर्दाश्त से बाहर थी, शुभा के मुँह से आवाज़ तक ना निकली, वो बस फटी-फटी आँखों से उदित को देखे जा रही थी, उसे इतना भी होश ना था के उसकी बेटी के रोने की आवाज़ सुन कर उसके सास ससुर और रज्जो कमरे में आ चुके थे, और सब कुछ समझ भी गए थे, उसकी सास ने उदित को फटकार लगाते हुए उसे शुभा

से माफी मांगने को कहा.किस बात की माफी मांगु ..? मैं मर्द हूँ, अगर कुछ करता भी हूँ तो घर के बाहर, घर तो नहीं ले आया किसी को…इतना हंगामा करने की ज़रूरत नहीं है, इतना कह शुभा के हाथ से फोन छीन कर वो घर से बाहर चला गया..और सारी रात नहीं लौटा..शुभा के सास-ससुर उसे बहुत देर तक समझाते रहे, पर उसकी समझ में तो कुछ भी नहीं आ रहा था, अपने बर्बाद हुई घर के खंडहर उसकी आँखों के सामने घूम रहे थे, जिसकी हवा ज़हरीली हो चुकी थी… सुबह होते ही उसने बेटी और रज्जो के साथ उदित का घर छोड़ दिया, और अपने मायके चली आई, शुरू-शुरू में सबने उसे उदित को माफ़ कर देने को समझाया पर वो माफ़ करे भी तो किसे..?

उदित तो अपनी अय्याशी को मर्दानगी का नाम दे रहा था, उसने कभी ना लौटने का फैंसला कर लिया था, मायके आने के दो महीने बाद ही उसने एक छोटा सा घर किराए पर ले लिया था, रज्जो उसके साथ परछाई की तरह बनी रही, शुभा ने रज्जो को दूसरी शादी करने को कहा पर वो नहीं मानी, दोनों एक दूसरे का ध्यान रखतीं, शुभा के स्कूल जाने के बाद उनकी बेटी की सारी ज़िम्मेदारी रज्जो के पास होती, उसका नाम भी रज्जो ने रखा, सृष्टि, सृष्टि अब पांच साल की हो चुकी थी, और रज्जो को छोटी मम्मी कह कर बुलाती, शुभा अब स्कूल की वाइस प्रिंसिपल बन गई थी, शुभा ने कभी मुड़ कर उदित की और नहीं देखा, ना ही कभी उदित ने उससे और अपनी बेटी से मिलने की कोशिश की..

अचानक तलाक़ के पेपर देख कर शुभा को अफ़सोस हुआ के ये कदम उसने क्यों नहीं उठाया, उसने अपनी सहेली आरती को फोन किया जो पेशे से वकील थी, सारी बात सुनने के बाद आरती ने उसे, सृष्टि के खर्चे के तौर पर उदित से पैसे मांगने की बात रखी जो शुभा को पसन्द नहीं आई, वो बस इस रिश्ते को खत्म कर देना चाहती थी, उसने आरती से कह कर उदित के वकील से बात की और बिना किसी लेन- देन के फौरन म्युचल तलाक के बारे में कहा, उदित को और क्या चाहिए था, आखिर तलाक़ हो गया, उस दिन घर पहुंचते ही उसने रज्जो को आवाज़ लगाई…रज्जो..आई दीदी… शुभा की आवाज़ आते ही ये ले…ये क्या है..?मिठाई…अब चाय पिला दे प्लीज़ मसाले वाली…

पर ये मिठाई किस बात की है..? तलाक़ की मिठाई…आज़ादी की मिठाई, उसने टेबल पर रखा.. ओह…चल चाय बना ला.. सृष्टि कहाँ है..?वहीं..अपनी डांसिंग क्लास में, उसके बिना उसे कहाँ चैन है, अब तो घर पे भी कत्थक कर के दिखाती रहती है मुझे.. हा हा हा… तू भी कर लिया कर उसके साथ…एक बात पूछूँ.. सच सच बताओगी..पूछ बाबा..तलाक़ के बाद कैसा लग रहा है…सुकून सा भर गया है मन में…तलाक़ के पेपर में ये लिखवाया था के मुझे मेरे और सृष्टि के लिए कुछ नहीं चाहिए, पर वो कभी सृष्टि से नहीं मिल सकता, वो राज़ी हो गया और साइन कर दिए…साहब इतना गिर जाएंगे के बेटी को भी छोड़ देंगे.. ऐसा तो सोचा भी नहीं था…

ऐसे लोग हैं दुनिया में रज्जो.. चल छोड़ चाय तो बना….इस बात को बाइस साल हो गए, सृष्टि सताइस साल की हो गई, अब वो एक जानी-मानी कत्थक डांसर थी, और कई एवार्ड जीत चुकी थी, टीवी पर उसका इंटरव्यू आ रहा था..आप शादी कब करेंगी…पता नहीं.. करूँगी भी या नहीं..करना नहीं चाहतीं.. या कोई मिला नहीं…सही बात तो ये है के अभी इस बारे में सोचा नहीं…अगर कोई ऐसा मिल गया जो मुझे पसन्द हो तो ज़रूर करूँगी…कैसा पति चाहिए आपको..? अक्सर लड़कियां अपने पिता जैसा पति चुनना पसन्द करती हैं.. जी नहीं… मुझे उन जैसा पति तो क्या, पड़ोसी भी नहीं चाहिए..और उनके बारे में कोई बात नहीं करनी मुझे..ओह.. ठीक है..आपकी माँ क्या करती हैं..?

वो स्कूल की प्रिंसिपल हैं.. उन्होंने सारा जीवन बच्चों को शिक्षित किया है…क्या हम उनसे मिल सकते हैं..?बुलाती हूँ… वो रसोई में हैं..मम्मी.. छोटी मम्मी प्लीज़ इधर तो आइए… कैमरा रसोई की और मुड़ गया, दरवाज़े पर शुभा और रज्जो दोनों खड़ी थीं..सृष्टि उठ कर उनके पास आई और दोनों के कंधों पर हाथ रखते हुए बोली..ये है मेरी दोनों माँ.. ये शुभा मम्मी, स्कूल की प्रिंसिपल और ये छोटी मम्मी, इस घर की प्रिंसिपल…उधर शहर के दूसरे कोने में बसी एक बस्ती के, एक छोटे से कमरे में लेटा, एक वृद्ध पुरुष ये इंटरव्यू देख रहा था, शुभा के स्क्रीन पर आते ही वो चोंक गया, उसकी आँखों से आँसू की जो बरसात शुरू हुई तो फिर रुकी ही नहीं,

वो बार बार अपना सर पलंग की पुश्त से पटकता, तभी किसी के आने की आवाज़ सुन उसने जल्दी जल्दी अपने आँसू पोंछे….ये क्या भैंसे की तरह पसरे पड़ा है, जा जाकर बाज़ार से चिकन लेकर आ, बेटी के दोस्त आ रहे हैं आज..तुम्हें शर्म नहीं आती.. बेटी को भी ये सब सिखा रही हो..?अरे वाह रे वाह…तुझे तो बड़ी शर्म है, चल जा बाज़ार, किसी काम का तो है नहीं, चार पैसे तो दे नहीं सकता, बातें करवा लो बस..सब कुछ तो तुम्हेँ दे चुका रोज़ी.. अब मेरे पास बचा ही क्या है.. तो कौन सा एहसान किया… मज़े भी तूने ही किये थे, कोई ज़बरदस्ती थोड़ी थी के मुझसे शादी कर..चल अब जा… थैला उठा, घर से बाहर निकलते हुए उसका सर यूँ झुक गया जैसे

दुनियाँ की तमाम नज़रें उसे कोस रही हों, तमाम औरते उसपे थूक रही हों, पर अब यही सच था, वो अपने हाथों से अपना बाग उजाड़ चुका था.

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