68 पुरुषों के बीच इकलौती महिला थीं तनुश्री, गजब है BSF की पहली फीमेल लड़ाकू की कहानी

68 पुरुषों के बीच वह इकलौती महिला थीं। उनके पुरुष साथी जहां हमेशा अपने अभ्यास में उनसे आगे निकल जाते। वहीं वह अपने हर प्रयास में चूकतीं, फिसलती और पीछे रह जाती। लेकिन ये वक्त हार मानने का नहीं था, उनके घायल पांव उन्हें रुक जाने के लिए विवश करते लेकिन पांव में पहने काॅम्बैट बूट्स आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करते। वह फिर उठती और आगे बढ़ती। जी हां, एक साल की कठिन ट्रेनिंग के बाद पासिंग आउट परेड के दौरान वह लड़की उन सभी 68 पुरुषों में सबसे आगे चल रही थी। जी हां उस दिन सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) को अपनी पहली महिला काॅम्बैट ऑफिसर मिली थी और उस अफसर का नाम था तनुश्री पारीक। आज तनुश्री पंजाब बाॅर्डर पर तैनात हैं लेकिन कितना मुश्किल था उनका यह सफर आइए जानते हैं –

बीएसएफ की पहली महिला काॅम्बैट अफसर

BSF के 51 वर्ष के इतिहास में यह पहला मौका था जब किसी महिला ने बंदुक उठाकर दुश्मनों को सावधान कर दिया कि अब महिलाएं भी उनसे दो-दो हाथ करने को तैयार हैं। मार्च वर्ष 2017 में बीएसएफ टेकनपुर के ट्रेनिंग सेंटर पर BSF के असिस्टेंट कमांडेंट्स के 40वें बैच की पासिंग आउट परेड के दौरान केंद्रीय गृहमंत्री  राजनाथ सिंह एक महिला अफसर के कंधों पर स्टार खोल रहे थे। यह दृश्य हर देशवासी को गौरवान्वित करने वाला था। क्योंकि इस दिन बीएसएफ के चालीसवें बैच द्वारा इतिहास रचा दिया गया। इस बैच में देश के सीमा सुरक्षा बल यानी बीएसएफ को तनुश्री पारीक के तौर पर पहली महिला काॅम्बैट अफसर मिली।

इस फिल्म ने पैदा किया बीएसएफ में जाने का जुनून

बीकानेर में सन् 1997 में फिल्म ‘बॉर्डर’ की शूटिंग चल रही थी, जिसमें सीमा सुरक्षा बल के जवानों की अहम भूमिका थी। एक चार साल की बच्ची इस फिल्म की शूटिंग देखने अपने पिता के साथ गई थी। इस दौरान फिल्म के कुछ सीन बच्ची के दिमाग में इस कदर दर्ज हो गए कि उसके मन में भी खुद को बीएसएफ के जवान के रूप में देखने का जज्बा पैदा हुआ और करीब दो दशक बाद इस लड़की ने बीएसएफ की पहली महिला काॅम्बैट अफसर बनकर इतिहास रच दिया। तनुश्री के मुताबिक जब वह बड़ी हुईं तो बीकानेर में बीएसएफ के कामकाज के तरीकों को काफी नजदीक से देखा तब एहसास हुआ कि सेना की ही तरह यह एक ऐसी फोर्स है जो 24 घंटे देश की सीमाओं को महफूज रखती है। तनुश्री बताती हैं कि उस दौरान यही लगता था कि मैं BSF में क्यों नहीं जा सकती हूं ?

एनसीसी का हिस्सा भी रहीं तनु

अपनी स्कूली पढ़ाई के दौरान तनुश्री एनसीसी का भी हिस्सा रहीं। तनुश्री के अनुसार स्कूल और काॅलेज के दौरान एनसीसी में कड़ी ट्रेनिंग ली थी। साथ ही वर्ष 2012 में बीई कर ली थी। लेकिन मैंने अन्य नौकरी नहीं की और अगले ही वर्ष बीएसएफ में आॅपरेशनल ड्यूटी के लिए महिलाओं की नियुक्ति को मंजूरी मिल गई।

मात्र 15 सेकेंड में पूरी की 100 मीटर की दौड़

बीएसएफ ने वर्ष 2013 में महिलाओं को भर्ती करना शुरु किया। अगले ही वर्ष 2014 में तनुश्री ने यूपीएससी के तहत असिस्टेंट कमांडेंट के लिए एप्लाई किया। अप्रैल 2014 को उन्हें फिजिकल टेस्ट के लिए दिल्ली बुलाया गया। इस टेस्ट को पास करने के लिए तनुश्री को 18 सेकेंड में 100 मीटर तथा ढाई मिनट में 400 मीटर दौड़ना था, जबकि तनुश्री ने मात्र 15 सेकेंड में ही 100 मीटर की दौड़ पूरी कर ली। बस कुछ ही दिनों के बाद उनका BSF के लिए सलेक्शन हो गया।

पूरे परिवार का रहा सपोर्ट

तनुश्री के मुताबिक एनसीसी की वर्दी ने मुझमें फोर्स में शामिल होने का जज्बा जगाया। तनुश्री अपनी कामयाबी का श्रेय अपने परिवार को देती हैं जिसमें कुल 30 सदस्य हैं। दरअसल, वह एक संयुक्त परिवार में रहती हैं और उनके परिवार ने उन्हें फोर्स में जाने के लिए प्रेरित किया। एक इंटरव्यू में उन्होंने बताया था कि जब परिवार को यह मालूम हुआ कि वह बीएसएफ की पहली काॅम्बैट आॅफिसर बनने जा रही हैं तो परिवार की खुशी का ठिकाना नहीं रहा और सभी ने दो दिन तक जश्न मनाया था।

68 पुरुषों के बीच इकलौती महिला कैडेट

अपनी 57 हफतों की ट्रेनिंग के दौरान 68 पुरुषों के बीच वह इकलौती महिला थीं। जहां उनके पुरुष साथी हमेशा अपने अभ्यास में उनसे आगे निकल जाते, वहीं वह अपने हर प्रयास में चूकीं, फिसलीं और पीछे रह जाती लेकिन ये वक्त हार मानने का नहीं था। सफर मुश्किल था मगर तनु ने हार नहीं मानी।

मुश्किल था सफर लेकिन हार नहीं मानी

वह बताती हैं कि बार बार हारने के बावजूद उनके इंस्ट्रक्टर उनसे पूछते, ‘क्या एक और कोशिश करना चाहोगी?’ तनु खुद फिर से उठने की कोशिश करती और ‘हां’ कह देती। पांव लड़खड़ाते, लेकिन उनके बूट्स उन्हें आगे बढ़ने का हौंसला देते। इसी तरह उनका सफर आगे बढ़ता जाता। वह बताती हैं कि मैं अपने पुरुष साथियों के बारे में सोचती थी कि उनकी ही तरह मेरे पास भी दो हाथ, दो टांगे हैं। जब वे कर सकते हैं तो मैं क्यों नहीं? बस फिर मैं आगे बढ़ जाती। और यह सफर चलता रहा।

और आखिर में पुरुष टुकड़ी में सबसे आगे थी तनु

तकरीबन एक साल के लंबे कठिन प्रशिक्षण के बाद पासिंग आउट परेड का दिन आया और ग्वालियर में उस दिन वही बहादुर लड़की सभी 68 पुरुषों की टुकड़ी का नेतृत्व कर रही थी। यहां एक इतिहास रचा जा रहा था। क्योंकि 51 साल के इतिहास में पहली बार कोई महिला इस परेड के दौरान कमान संभाल रही थी।

उनके नाम से मिली बैच को पहचान

अन्य प्रशिक्षु अफसरों की ही तरह उन्हें भी एक पहचान नंबर दिया गया। लेकिन यह कोई महिला प्रशिक्षु नंबर नहीं था। उन्हें पुरुषों की ही तरह एक सामान्य नंबर 13 मिला। उनके बैच-मैट देवेंद्र सिंह बताते हैं कि शुरुआत में ट्रेनिंग इतनी ज्यादा मुश्किल थी कि 20 लड़कों ने इसे बीच में ही छोड़ दिया, लेकिन पारीक ने दृढ़ता से आगे बढ़ने का फैसला लिया। वह बताते हैं कि अक्सर बल के जवानों को उनके कोर्स नंबर से ही पहचाना जाता है लेकिन तनुश्री की वजह से हमारी एक अलग पहचान बनी है।

महिला या पुरुष नहीं बल्कि स्टार से आंकते हैं लोग

तनु की पहली पोस्टिंग पंजाब बाॅर्डर पर मिली, जहां वह 136 पुरुषों की कमान संभाल रही हैं। तनुश्री 27 साल की हैं और उनकी बटालियन में 57 वर्ष तक के जवान हैं। जिनमें से कई के लिए वह उनकी खुद की बेटी से भी छोटी हैं लेकिन ऐसा पहली बार हो रहा था जब ये जवान एक महिला अफसर से आदेश प्राप्त कर रहे थे। ये जवान तनु को ‘सर’, ‘साहिब’ और ‘मैडम’ कहकर संबोधित करते हैं।

तनु कहती हैं कि जब आप किसी देश के सुरक्षा बल का हिस्सा बनते हैं तो आप पुरुष या एक महिला अथवा एक लड़की के तौर पर ट्रीट नहीं किए जाते, बल्कि आपके कंधों पर लगे ‘स्टार’ से आपको ट्रीट किया जाता है। तनुश्री पारीक ने भी इसी कहावत को हकीकत में बदलकर दिखाया है।

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