बिहार चुनाव : जानिए कौन हैं मुकेश साहनी? जिनका खुला राजनीतिक भाग्य, बीजेपी के कोटे से मिली 11 सीटें

पटना:  बिहार विधान सभा चुनावों (Bihar Assembly Election) में गठबंधन के बनते-बिगड़ते खेल में इस विधान सभा चुनाव में एक पार्टी ने बाज़ी मारी वो है मुकेश साहनी की विकासशील इंसान पार्टी (Vikassheel Insan Party), जिसे सीटों के बँटवारे में भाजपा ने ना केवल ग्यारह सीटें दी बल्कि एक विधान परिषद की सीट देने की भी घोषणा की है. माना जा रहा है कि आप को ‘सन ऑफ मल्लाह’ कहने वाले मुकेश साहनी का मतदान पूर्व राजनीतिक भाग्य इस चुनाव में खुल गया है.

पाँच दिन पहले तक बिहार की राजनीति में महगठबंधन का हिस्सा रहे मुकेश साहनी राज्य के उन गिने-चुने नेताओं में से एक हैं, जो हर दल के शीर्ष नेताओं से मधुर संबंध रखते हैं. इसलिए जब वो तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री बनाने और ख़ुद स्वघोषित उप मुख्य मंत्री पद के उम्मीदवार थे तब भी भाजपा के नेताओं के साथ उनकी मुलाक़ात का दौर जारी रहता था.  लेकिन उनके राजनीतिक भाग्य का उदय चिराग़ पासवान के उस फ़ैसले के बाद हुआ, जब पासवान नीतीश कुमार को मुख्य मंत्री बनने से रोकने के अपने पूर्व के घोषणा पर क़ायम रहे.

हालांकि, इससे पहले ही मुकेश साहनी महगठबंधन के संवाददाता सम्मेलन में भाजपा के इशारे पर हंगामा कर अपना स्टैंड ले चुके थे. ‘मेरी पीठ में ख़ंजर घोंपा गया’ का सियासी डायलॉग ने उनकी एनडीए में वापसी और भाजपा की मेहरबानी का आधार बनाया. हालांकि, बिहार भाजपा के दिग्गज नेता उन्हें अपने साथ मिलाने को बहुत उत्सुक नहीं थे क्योंकि उनके अनुसार आज भी अति पिछड़े समाज के वोटर पर नीतीश कुमार का प्रभाव सर्वाधिक है.

2015 के विधान सभा चुनाव में जब साहनी भाजपा के साथ थे तब या 2019 के लोक सभा चुनाव में जब वो राष्ट्रीय जनता दल के नेतृत्व वाले महागठबंधन के साथ थे, तब भी वो अपनी जाति का वोट ट्रान्सफर नहीं करा पाये थे. हालांकि साहनी का कहना है कि चंपारण के इलाक़े में भाजपा को पिछले विधान सभा चुनाव में जो सफलता मिली, उसमें मल्लाह समाज के वोटरों की निर्णायक भूमिका रही है.

मुंबई में फ़िल्मों के सेट के निर्माण कार्य से अपनी क़िस्मत चमकाने वाले मल्लाह को इस बात का हमेशा मलाल रहा है कि मुख्य मंत्री नीतीश कुमार ने उन्हें कभी राजनीतिक भाव नहीं दिया. उसकी तुलना में पिछले विधान सभा चुनाव में वो तत्कालीन भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के साथ सबसे अधिक संयुक्त सभा करने वाले नेता थे लेकिन इस चुनाव में भाजपा उनके कोटे की सीटों पर भी अपने पार्टी के प्रत्याशी उतारने का मन बना चुकी है.

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