नई दिल्ली। सामान्य वर्ग के आर्थिक दृष्टि से कमजोर तबके के लोगों को सरकारी नौकरियों और शिक्षण संस्थानों में 10 प्रतिशत तक आरक्षण देने संबंधी ऐतिहासिक संविधान (संशोधन) विधेयक लोकसभा से भारी बहुमत से पारित हो गया। विधेयक के पक्ष में 323 और विरोध में 3 मत पड़े। मतविभाजन के बाद अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने घोषणा की कि संविधान (124वां संशोधन) विधेयक, 2019 सदन की कुल सदस्य संख्या के आधे और सदन में मौजूद सदस्यों के दो तिहाई से अधिक के बहुमत से पारित हो गया।
Lok Sabha passes Constitution (124 Amendment) Bill, 2019 with 323 'ayes'. The bill will provide reservation for economically weaker section of the society in higher educational institutions pic.twitter.com/mzsHxQoUva
— ANI (@ANI) January 8, 2019
विधेयक के पारित होते समय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सदन में उपस्थित थे
कांग्रेस समेत तमाम विपक्षी दलों ने भी विधेयक के पक्ष में मतदान किया और विधेयक में किसी तरह का संशोधन पेश नही किया गया। विधेयक पेश करते हुए और बाद में चर्चा का उत्तर देते हुए सामाजिक न्याय व अधिकारिता मंत्री थावरचंद गहलोत ने इस विधेयक को लाए जाने का श्रेय प्रधानमंत्री को देते हुए कहा कि यह सरकार की गरीब हितैषी नीति और नीयत का परिचायक है। गहलोत ने इस विधेयक के विभिन्न प्रावधानों के बारे में सदन को जानकारी दी।
उन्होंने विपक्ष की आशंकाओं को खारिज करते हुए कहा कि मौजूदा सरकार ने संविधान में संशोधन कर सामान्य श्रेणी के लिए यह प्रावधान किया है जो न्यायिक समीक्षा में खरा उतरेगा। उन्होंने कहा कि यदि आरक्षण की इस व्यवस्था को न्यायालय में चुनौती भी दी जाती है तो फैसला सरकार के ही पक्ष में जाएगा। गहलोत ने कहा कि पूर्व में प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हाराव के कार्यकाल में सामान्य श्रेणी के लोगों को आरक्षण देने की पहल इसलिए न्यायालय ने खारिज कर की क्योंकि उसमें संविधान सम्मत उपाय नही किए गए थे।
हर वर्ग की आकांक्षाओं को करती साकार…मोदी सरकार
देश के आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग को आरक्षण देने वाला ऐतिहासिक संविधान संशोधन बिल लोक सभा में पारित होने पर प्रधानमंत्री श्री @narendramodi जी और सभी सहयोगियों का ह्रदय से अभिनंदन।
— Amit Shah (Modi Ka Parivar) (@AmitShah) January 8, 2019
उन्होंने गरीबों के लिए आरक्षण की इस व्यवस्था को ऐतिहासिक बताते हुए कहा कि लंबे समय से इसकी मांग की जा रही है। इसे लेकर संसद में सदस्यों द्वारा निजी विधेयक भी पेश किए गए थे। मंडल आयोग ने भी ऐसे आरक्षण की सिफारिश की थी। अब मोदी सरकार ने समानता और सामाजिक समरसता कायम करने के लिए यह उपाय किया है।
यह सरकार की ‘सबका साथ, सबका विकास’ की नीति के अनुरूप है। गहलोत ने कहा कि विधेयक के जरिए संविधान के अनुच्छेद 15 और 16 में संशोधन किया गया है । इन अनुच्छेदों में आरक्षण के लिए आर्थिक आधार को शामिल किया गया है जिसके बाद सामान्य श्रेणी के आर्थिक दृष्टि से कमजोर लोग सरकारी नौकरियों और उच्च शिक्षण संस्थानों में अधिकतम10 प्रतिशत आरक्षण प्राप्त कर सकेंगे। सरकारी और निजी शिक्षण संस्थाओं में आरक्षण की व्यवस्था की गई है लेकिन यह व्यवस्था अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थाओं पर लागू नही होगी। उन्होंने कहा कि यह विधेयक पहले से लागू 49.5 प्रतिशत आरक्षण से अलग होगा। गहलोत कहा कि संविधान संशोधन के बाद केंद्र और राज्य सरकार आरक्षण देने संबंधी कानूनी उपाय कर सकेंगी।
इसके साथ ही केंद्र औऱ राज्य सरकारें आरक्षण का लाभ उठाने वाले लोगों के लिए आय सीमा का निर्धारण भी कर सकेंगी। इससे पूर्व, वित्तमंत्री और ख्यातिलब्ध अधिवक्ता अरुण जेटली ने चर्चा में हलस्तक्षेप करते हुए कहा कि उच्चतम न्यायालय द्वारा आरक्षण की अधिकतम सीमा 50 प्रतिशत तय किया जाना गरीबों को 10 प्रतिशत आरक्षण दिए जाने के रास्ते में बाधक नही है।
जेटली ने कहा
50 प्रतिशत की अधिकतम सीमा संबंधी रोक केवल जातिगत आरक्षण पर लागू होती है। उन्होंने उच्चतम न्यायालय के फैसले को उद्धृत करते हुए कहा कि आरक्षण की अधिकतम सीमा संविधान के अनुच्छेद 16 के खंड 4 के बारे में है जिसमें सामाजिक और शैक्षिक रुप से पिछड़े वर्ग के लिए आरक्षण का प्रावधान है। यह आरक्षण जाति आधारित है। जेटली का तर्क था कि 49.5 प्रतिशत आरक्षण के बाद शेष 50 प्रतिशत हिस्से में से यदि गरीबों को 10 प्रतिशत आरक्षण दिया जाता है तो यह गैर कानूनी नही है। जेटली ने कहा कि जातिगत आरक्षण की अधिकतम सीमा 50 प्रतिशत तय करने के पीछे उच्चतम न्यायालय की मंशा यह थी कि सामाजिक और शैक्षिक दृष्टि से पिछड़े वर्गों को समान अवसर प्रदान किए जाने के साथ ही यह भी सुनिश्चित किया जाए कि शेष लोगों के साथ कोई भेदभाव न हो।
वित्तमंत्री ने गरीबों को आरक्षण देने के संबंध में पहले किए गए प्रयासों के असफल होने का जिक्र करते हुए कहा कि इसके पीछे संविधान के मूल प्रावधानों से शक्ति न प्राप्त होना मुख्य कारण था। उन्होने कहा कि प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हाराव ने केवल अधिसूचना जारी कर ऐसा किया था। कई अन्य राज्य सरकारों ने भी कानून बनाए थे लेकिन संविधान का अनुच्छेद 15 व 16 उन्हें इसके लिए इजाजत नही देता था। जेटली ने कहा कि सदन में रखा गया यह संविधान संशोधन विधेयक गरीबों को आरक्षण की सुविधा प्रदान करने के लिए आवश्यक ठोस संवैधानिक ताकत प्रदान करता है।