योगेश श्रीवास्तव
लखनऊ। विगत कई चुनावों में हार का दंश झेल रही बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती अब अच्छे दिन की आस में अचानक सक्रिय हो गयी है। उन्होंने न सिर्फ भाजपा पर हमला तेज कर दिया है बल्कि असम के चर्चित एनआरसी को मुददा बना लिया है। इसके साथ ही अपने बेस वोट बैंक को में लगने वाली सेंध को रोकने के लिए विधानसभा स्तर पर उनकी निगरानी भी आरंभ कर दी है।
आम जनता के लिए भले ही अच्छे दिन का वायदा दूर की कौड़ी बन कर रह गया हो लेकिन बसपा सुप्रीमों मायावती को अच्छे दिन ही आहट सुनायी देने लगी है। मसलन उन्हें 2019 के लिए प्रधानमंत्री उम्मीद्वार घोषित करने की कवायद आरंभ हो गयी है। इसके समर्थन में राजनीतिक दलों के आने का सिंलसिला आरंभ हो गया है। इसमें सपा मुखिया अखिलेश यादव, एनसीपी प्रमुख शरद पवार, रालोद मुखिया चौअजित सिंह सहित कई नेता शामिल है। इसीलिए मायावती इन दिनों राष्टï्री मामलों को लेकर सक्रिय हो गयी हैं।
उन्होंने असम के नेशनल रजिस्टर आफ सिटीजेंस को लेकर 40 लाख से अधिक लोगों की नागरिकता समाप्त करने के फैसले का डटकर विरोध करने लगी है। इसे लेकर उन्होंने दो टूक कहा कि किसी कारण से वह यहां अर्से से रहने के बावजूद नागरिकता नहीं ले सके इसका मतलब यह नहीं कि उन्हें देश के बाहर खदेड़ दिया जाए। चर्चा है कि इसे लेकर वह बड़े आदोलन करने की तैयारी कर रही है। इस मामले को लेकर उन्होंने बंगाल की सीएम ममता बनर्जी को भी पीछे छोड दिया है। कारण इन लोगों में अधिकांश बंगाली एवं मुसलमान है। इनका समर्थन कर विरोधी दल मुस्लिमों के और करीब पहुंचना चाहते हैं।
इस समय यूपी ही नहीं बििल्क पूरे देश की सियासत दो भागों में बटकर रह गयी है। पहला तो भाजपा और दूसरा विरोधी का गठजोड़। पीएम मोदी के खिलाफ विपक्ष के एक नेता का चयन होना है जिसे पीएम प्रत्याशी घोषित किया जा सके। इसके लिए कांग्रेस ने पूर्व में राहुल गांधी को घोषित करना चाहा पर क्षेत्रीय दलों के विरोध के कारण वह बैकफुट पर आ गई । इसके बाद से बसपा सप्रीमों मायावती का नाम उछला। इसीलिए उन्होंने अपनी सक्रियता बढ़ा दी है। उन्हें यह उम्मीद बंधी है कि शायद उन्हेंं ही सभी विपक्षी दल नेता मान ले। इसकी वजह यह भी है कि बसपा का बेस दलित वोट बैंक है जिसकी आबादी देश में करीब 24 प्रतिशत है। लगभग हर सीट पर यह वर्ग प्रत्याशी को हराने एवं जिताने का दम रखता है। मायावती भी इसी समाज से आने के साथ ही एक महिला है। मायावती की छवि कुशल शासक, एक सख्त नेता एव गंभीर प्रशासक के रूप में जानी जाती है।
मायावती पीएम कडीडेट के रेस में इसलिए भी भारी है वह भाजपा के खिलाफ आक्रमकता से मुकाबला कर सकती है। दूसरा यह भी है कि वह एक दलित महिला हैं। ऐसा होने पर पीएम मोदी जिस तरह से कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी पर तीखा वार करते हैं। उसी तरह से मायावती के खिलाफ तंज नहीं कस पायेंगे। क्योंकि यदि वह ऐसा करते है तो दलितों में गुस्सा बढ़ेगा और वह भाजपा से और दूर हो जायेगा। इसी तरह भाजपा द्वारा यदि एक महिला के खिलाफ हमला बोला जाता है तो भी आधी आबादी के बीच गलत संदेश जायेगा।
इसके अलावा मायावती का जनाधार यूपी के अलावा अन्य प्रदेशों में भी है। क्योकि वह चुनाव जीते या फिर हारे लेकिन हर चुनाव में अपना प्रत्याशी अवश्य उतारती है। इस तरह पीएम मोदी के खिलाफ 2019 के लिए प्रधानमंत्री की उम्मीद्वारी को लेकर मायावती का पलड़ा भारी है। इस तरह मायावती ने हवा का रुख भांप कर अपनी सक्रियता को बढ़ा दिया है।