आखिर SYL क्यों बना विवाद का किस्सा, हरियाणा CM ने कहा-पंजाब CM निकालेंगे इसका हल

SYL को लेकर शुक्रवार को होने वाली बैठक से पहले CM मनोहर लाल खट्टर ने बड़ा बयान दिया है। उन्होंने स्पष्ट किया है कि सतलुज यमुना लिंक हरियाणा के पानी पर हरियाणा का हक है और वह इसे लेकर ही रहेगा। हरियाणा के सीएम ने कहा कि इस मुद्दे के लिए एक टाईम लाइन फिक्स होना बेहद जरूरी है। उन्होंने उम्मीद जताई कि पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान के साथ होने वाली मीटिंग में इस मुद्दे का हल जरूर निकलेगा।

चंडीगढ़ में 11.30 बजे होगी मीटिंग

सतलुज-यमुना लिंक (एसवाईएल) नहर के मुद्दे पर 14 अक्टूबर को हरियाणा और पंजाब के CM की बैठक होगी। चंडीगढ़ में सुबह साढ़े 11 बजे होने वाली इस बैठक में मामले के समाधान के लिए CM मनोहर लाल और भगवंत मान विचार-विमर्श करेंगे। बैठक से पहले मनोहर लाल के इस बयान के कई मायने निकाले जा रहे हैं।

किसानों के लिए जरूरी नहर का पानी

CM मनोहर लाल ने स्पष्ट किया है कि SYL हरियाणा वासियों का हक है और उन्हें पूरी आशा है की उन्हें उनका यह हक अवश्य मिलेगा। उन्होंने कहा कि हरियाणा के लिए सतलुज यमुना लिंक नहर का पानी अत्यंत आवश्यक है। ताकि प्रदेश के किसानों को पानी की उपलब्धता सुनिश्चित हो सके। उन्होंने उम्मीद जताई की शुक्रवार को होने वाली इस अहम बैठक से कोई हल जरूर निकलेगा।

पंजाब ने नहीं किया निर्माण पूरा

सुप्रीम कोर्ट के दो फैसलों के बावजूद पंजाब ने SYL का निर्माण कार्य पूरा नहीं किया है। सर्वोच्च न्यायालय के फैसलों को लागू करने की बजाए पंजाब ने वर्ष 2004 में समझौते निरस्तीकरण अधिनियम बनाकर इनके क्रियान्वयन में रोड़ा अटकाने का प्रयास किया।

1.9 MAF पानी प्रयोग कर रहा पंजाब

पंजाब पुनर्गठन अधिनियम, 1966 के तहत हरियाणा को रावी-ब्यास के फालतू पानी में से 3.5 MAF जल का आबंटन किया गया था। SYL कैनाल का निर्माण कार्य पूरा न होने की वजह से हरियाणा केवल 1.62 डेथ पानी का इस्तेमाल कर रहा है। पंजाब अपने क्षेत्र में सतलुज यमुना लिंक नहर का निर्माण कार्य पूरा न करके हरियाणा के हिस्से के लगभग 1.9 एमएएफ जल का गैर-कानूनी ढंग से उपयोग कर रहा है।

10.08 लाख एकड़ भूमि होती सिंचित

पंजाब-राजस्थान हर वर्ष हरियाणा के लगभग 2600 क्यूसेक पानी का प्रयोग कर रहे हैं। यदि यह पानी हरियाणा में आता तो 10.08 लाख एकड़ भूमि सिंचित होती, प्रदेश की प्यास बुझती और लाखों किसानों को इसका लाभ मिलता। इस पानी के न मिलने से दक्षिण-हरियाणा में भूजल स्तर भी काफी नीचे जा रहा है।

100-150 करोड़ का अतिरिक्त भार

SYL न बनने से हरियाणा के किसान महंगे डीजल का प्रयोग करके और बिजली से नलकूप चलाकर सिंचाई करते हैं, जिससे उन्हें हर वर्ष 100 करोड़ से लेकर 150 करोड़ रुपए का अतिरिक्त भार पड़ता है। पंजाब क्षेत्र में SYL के न बनने से हरियाणा में 10 लाख एकड़ क्षेत्र को सिंचित करने के लिए सृजित सिंचाई क्षमता बेकार पड़ी है।

42 लाख खाद्यान्न का नुकसान

हरियाणा को हर वर्ष 42 लाख टन खाद्यान्नों की भी हानि उठानी पड़ती है। यदि 1981 के समझौते के अनुसार 1983 में एसवाईएल बन जाती, तो हरियाणा 130 लाख टन अतिरिक्त खाद्यान्नों व दूसरे अनाजों का उत्पादन करता। 15 हजार प्रति टन की दर से इस कृषि पैदावार का कुल मूल्य 19,500 करोड़ रुपए बनता है।

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