यूपी से हाथ धो बैठी बसपा अब राजस्थान में जनाधार को बचाने में जुटी

जयपुर। यूपी में अपने ‘जनाधार’ को गंवाने के बाद बहुजन समाज पार्टी अब राजस्थान में एक बार फिर से अपने जनाधार को बचाने में जुटी हुई है। पार्टी ने अपने दलित वोटबैंक को लेकर अपनी कवायद शुरू की है। इसकी शुरुआत 23 मार्च को सभी जिलों में प्रदर्शन करके की जाएगी। पार्टी ने राजस्थान में दलित अत्याचारों को रोकने का मुद्दा हाथ में लिया है।

राष्ट्रपति के नाम का ज्ञापन दिया जाएगा

राष्ट्पति के नाम ज्ञापन -पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष भगवान सिंह रोलसाहबसर ने बताया कि पार्टी की ओर से दलित अत्याचारों के विरोध में जिला कलेक्टरों को राष्ट्रपति के नाम का ज्ञापन दिया जाएगा। जयपुर में वे खुद प्रदर्शन का नेतृत्व करेंगे और बाकी जिलों में स्थानीय नेता प्रदर्शन की कमान संभालेंगे। इसके लिए सभी जिला इकाइयों को निर्देश दिए जा रहे हैं कि वे ज्यादा से ज्यादा लोगों को साथ लेकर प्रदर्शन करें।

जितेंद्र पाल मेघवाल के हत्या मामले को भी उठाएंगे

23 के प्रदर्शन में वो हाल ही में पाली में एक दलित युवक की हत्या के मामले को भी उठाएंगे। मृतक कोविड हेल्थ सहायक जितेंद्र पाल मेघवाल बाली के बारवा गांव का रहने वाला था। उसने सोशल मीडिया पर अपने कई फोटो और पोस्ट अपलोड कर रखे थे। उसने नाम से एकाउंट बना रखा था। मामले में सामने आया था कि आरोपी मृतक युवक की गुड लुकिंग पर्सनैलिटी से चिढ़ता था। सोशल मीडिया पर दोनों के बीच कोल्ड वार चलता था।

मृतक परिजनों ने मांगों को लेकर किया धरना

मृतक जितेन्द्र ने लिखा था, ‘मैं अमीर नहीं हूं, लेकिन दिल से रॉयल हूं’। उसका यह रॉयल स्टाइल आरोपी सूरज सिंह के दिल में जलन का कारण बना गया। नफरत इतनी बढ़ गई कि चाकू से पीठ और सीने पर वार कर मौत के घाट उतार दिया। मृतक के परिजनों ने अपनी मांगों को लेकर धरना भी दे दिया था। बाद में मांगों के माने जाने पर मृतक के परिवार ने धरना खत्म कर दिया था। पुलिस ने पोस्टमाॅर्टम करवाकर शव परिजनों को सौंपा। चिता को अग्नि देते हुए मृतक के भाई ने हत्यारे को सख्त सजा दिलाने की मांग भी उठाई।

बसपा के कांग्रेस में विलय का मामला जा पहुंचा अदालत

दो बार बसपा विधायकों का कांग्रेस में हो चुका विलय-राजस्थान में 2008 और 2018 के विधानसभा चुनावों में बसपा के छह-छह विधायक जीत कर आए थे लेकिन दो बार ही इन विधायकों ने अपना विलय कांग्रेस में कर लिया था। 2008 में तो छह में तीन को मंत्री भी बनाया गया था लेकिन वर्तमान गहलोत सरकार में छह में से सिर्फ एक को ही मंत्री बनने का मौका मिला है। इसके अलावा तीन को बोर्ड निगम में जिम्मेदारी दी गई है।

बाकी दो विधायकों को संसदीय सचिव बनाने की उम्मीद है। हालांकि बसपा के कांग्रेस में विलय का मामला अभी अदालत में चल रहा है। बसपा अब 2023 में अपने दलित वोटबैंक के सहारे विधानसभा चुनाव की तैयारियां कर रही है।

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