उत्तराखंड में धडल्ले से छलक रही जाम, शराब बिक्री से भर रही सरकारी जेबे

देहरादून। भारत सरकार से लेकर राज्य सरकारें भले ही शराब और मादक पदार्थों का सेवन ना करने के लिए लाखों करोड़ों रुपए विज्ञापनों और प्रचार-प्रसार में खर्च करते हैं. लेकिन हकीकत यही है कि शराब ही सरकारों की जेब भर रही है. इसका जीता-जागता उदाहरण छोटा सा राज्य उत्तराखंड है. जहां पर राज्य गठन के 22 साल बाद शराब बेचकर उत्तराखंड सरकार करोड़ों रुपए कमा रही है. आपको हैरानी होगी कि साल 2000 और साल 2002 में आबकारी विभाग का जो राजस्व था, वो 22 साल बाद बढ़कर 14 गुना हो गया है।

राज्यों में सबसे अधिक अंग्रेजी शराब का सेवन

उत्तराखंड सरकार का कुल राजस्व 6557.49 करोड़ रुपए है. हैरानी की बात यह है कि इसमें 18 से 19 फीसदी राजस्व अकेला आबकारी विभाग राज्य सरकार को दे रहा है. उत्तराखंड सदन में पेश हुई आर्थिक सर्वेक्षण रिपोर्ट में इस बात का खुलासा हुआ है. राज्य में सबसे अधिक अंग्रेजी शराब का सेवन किया जा रहा है. जिसकी बिक्री के चलते राज्य सरकार का खजाना भी खूब भर रहा है।

सदन में पेश हुई इस रिपोर्ट में बताया गया है कि सरकार ने साल 2021-22 में 3202 करोड़ रुपए सालाना लक्ष्य रखा था. जबकि 3260.35 करोड़ रुपए आबकारी विभाग को इस वार्षिक समय में प्राप्त हुए हैं. रिपोर्ट में खुलकर यह बात लिखी गई है कि आबकारी विभाग ने 2309.68 करोड़ रुपए अकेले अंग्रेजी शराब बेचकर कमाए हैं. इसके साथ ही इसमें कुछ राजस्व शराब की दुकानों के लाइसेंस से भी प्राप्त हुआ है।

देसी शराब से 578 करोड़ रुपए प्राप्त हुए हैं

राज्य में देसी शराब से 578 करोड़ रुपए प्राप्त हुए हैं. जबकि बीयर बेचकर आबकारी विभाग ने 261 करोड़ रुपए 1 साल में कमाए हैं. रिपोर्ट में हैरानी तो इस बात की भी हुई है कि कोरोनाकाल में भी आबकारी विभाग ने 3017 करोड़ रुपए का राजस्व प्राप्त किया है।

आंकड़ों के मुताबिक साल 2001 और साल 2002 के में आबकारी विभाग का कुल राजस्व 231 करोड़ था. जो आज बढ़कर 3260.35 हो गया है. यानी राज्य जितना पुराना हो रहा है शराब पीने के शौकीन उतने ही लगातार बढ़ रहे हैं. हर साल आबकारी विभाग की ना केवल आमदनी बढ़ रही है बल्कि राज्य सरकार के खजाने में भी शराब बेचकर खूब पैसा जमा हो रहा है।

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