भास्कर समाचार सेवा
नई दिल्ली। दूध: यह शब्द हम लोगों में से कईयों के बचपन की यादें ताज़ा कर देता है और इसका महत्व हमारी कल्पानाओं से काफी अधिक है। इसे ‘तरल सोना’ या ‘प्रकृति का उत्तम भोजन’ भी कहा जाता है। मानव शरीर के विकास में अहम भूमिका निभाने वाला दूध, हमारे दैनिक आहार का एक ज़रूरी हिस्सा होने के साथ हमारी रसोई में एक मज़बूत आधार भी होता है। दूध में प्रोटीन, एमिनो एसिड्स, विटामिन (ए, डी, बी12) जैसे आवश्यक पौष्टिक तत्व होने के कारण भरपूर पोषण मिलता है और इसमें कैल्शियम जैसे मिनरल भी होते हैं। दूध से बने चीज़, मक्खन जैसी वस्तुएं हमारे व्यंजनों में चार-चांद लगाती हैं, वहीं दही से बने व्यंजन भी पारंपरिक रूप से हर परिवार के पसंदीदा रहे हैं। प्राचीन काल से ही दूध हमारी संस्कृति का अभिन्न अंग रहा है।
दूध की शुद्धता से जुड़ी हमारी यादें, इसमें होने वाली मिलावट की वास्तविकता से काफी भिन्न हैं। दूध में मिलावट का सिलसिला बेहद पुराना है। इसमें पानी, सिंथेटिक दूध या हानिकारक केमिकल मिलाकर दूध की संरचना बदली जाने से इसके पौष्टिक गुणों को पतन होता है, जो हमेशा से होता आया है। यह मिलावट ना केवल उपभोक्ताओं को धोखा देने जैसा काम है, बल्कि उनके लिए विभिन्न स्वास्थ्य जोखिम भी पैदा होते हैं। इसका सबसे बड़ा खतरा बच्चों और वृद्ध नागरिकों को होता है।
वहीं दूसरी तरफ, एक सुरक्षित और भरोसेमंद विकल्प के रूप में प्रचारित किया जाने वाला पैकेज्ड दूध, उपभोक्ताओं को विश्वसनीय गुणवत्ता वाला दूध उपलब्ध कराने का वादा करता है, जो आमतौर पर खुले बिकने वाले दूध की अशुद्धियों से मुक्त होने का दावा करता है। लेकिन यह विकल्प भी लोगों की उम्मीदों पर पूरी तरह खरा नहीं उतर पाया है। पैकेज्ड दूध को दुकानों पर भेजने से पहले जिस प्रकार से कठोर गुणवत्ता नियमों का पालन किया जाता है, उससे निश्चित रूप से मिलावट का खतरा कम होता है। लेकिन उपभोक्ता अगर खुद से दूध की गुणवत्ता को परखना चाहें, तब उनके लिए समस्या हो सकती है। यही पारदर्शिता की कमी दूध की विश्वसनीयता के लिए एक चुनौती बन जाती है। हम यहां दूध की गुणवत्ता और ताज़गी को परखने के लिए कुछ तरीके नीचे बता रहे हैं:
पैश्चराइजेशन एवं होमोजेनाइजेशनः पैश्चराइजेशन और होमोजेनाइजेशन नामक प्रक्रियाएं दूध के साथ करीब से जुड़ी हैं। यह प्रक्रियाएं हानिकारक बैक्टीरिया निकालने और दूध में वसा का एक समान वितरण सुनिश्चित करती हैं। इस तरह दूध का जीवनकाल और गुणवत्ता दोनों बढ़ती है।
अन्य परीक्षणः विशेषज्ञों द्वारा किए जाने वाले कुछ परीक्षण दूध की सघनता, पीएच स्तर और वसा की मात्रा की जांच करते हैं। इनके मानक स्तरों में बदलाव होने से दूध की गुणवत्ता को नुकसान हो सकता है।
केमिकल परीक्षणः दूध का केमिकल परीक्षण उसमें प्रोटीन, लैक्टोज़, मिनरल एवं विटामिन का आकलन करता है। इनके सामान्य स्तर में मामूली बदलाव होने पर भी दूध की गुणवत्ता खराब हो सकती है और उसे सेवन के लिए उपयुक्त नहीं माना जाता।
माइक्रोबायोलॉजिकल परीक्षणः यह एक महत्वपूर्ण परीक्षण होता है, जिससे दूध में हानिकारक सुक्ष्म जीवों एवं विभिन्न प्रकार के बैक्टीरिया की मौजूदगी की जांच की जाती है।
संवेदी परीक्षण (स्वयं से परीक्षण): उपभोक्ता खुद से भी दूध की गुणवत्ता परख सकते हैं। इसके लिए दूध का बाहरी स्वरूप, उसका स्वाद और उसकी गंध का आकलन करके तुरंत पता किया जा सकता है कि उसकी गुणवत्ता अच्छी है या नहीं। खराब या मिलावटी दूध का सेवन बिमारियों को बुलावा देने जैसा काम होगा।
दूध परीक्षण किट: उपभोक्ताओं के लिए अब बाज़ार में दूध परीक्षण किट भी उपलब्ध होने लगे हैं, जो उन्हें घर पर दूध की गुणवत्ता जांच करने में सक्षम बनाते हैं। इसके अलावा, दूध की शुद्धता को घर में कुछ खास परीक्षण के जरिये भी जांच सकते हैं, जैसे दूध में स्टार्च यानि मांड की मिलावट जांचने के लिए उसमें थोड़ा आयोडीन मिला सकते हैं, जिससे दूध में नीलापन आ जाता है।
उपभोक्ताओं को दूध का स्रोत, उत्पादन प्रक्रिया, गुणवत्ता जांच परिणाम आदि जानकारी प्रदान करने के लिए काफी कुछ किया जा सकता है। हमने इसी दिशा में एक पहल की है और दूध बेचने वाले विभिन्न अन्य ब्रांड्स को भी पारदर्शिता का पालन करना चाहिए। ऐसा करने से ही एक पोषण स्रोत के रूप में दूध का स्थान मज़बूत हो सकेगा और हमारी संस्कृति के साथ इसके रिश्ते को भी परिपूर्ण बना सकेंगे।