देश की सीमाओं पर कुर्बान होने वाले योद्धाओं की आत्मिक शांति के लिए महा श्राद्ध शुरू

एक पखवाड़े तक चलेगा महा श्राद्ध, योद्धाओं की कुर्बानियों के बारे में भी दिया जाएगा व्याख्यान

गाजियाबाद। देश की आजादी और सीमा पर अपनी जान की कुर्बानी देने वाले योद्धाओं की आत्मिक शांति के लिए शहीद मंदिर ट्रस्ट के तत्वावधान में आज से महा श्राद्ध विधि विधान के साथ शुरू हो गया है । खास बात यह है कि इसका समापन आगामी 5 अक्टूबर को संपन्न होगा। वैसे तो सनातन धर्म के मुताबिक प्रत्येक व्यक्ति अपने पूर्वजों की आत्मिक शांति के लिए श्राद्ध क्रिया का आयोजन करते हैं लेकिन शहीद मंदिर ट्रस्ट के संस्थापक स्वामी बाल नाथ ने सीमाओं पर कुर्बान होने वाले शहीदों की याद में पूरे 16 दिन महा श्राद्ध का आयोजन किया है। दिल्ली मेरठ रोड सेवानगर स्थित स्वामी बालनाथ आश्रम परिसर में आर्य समाज से जुड़े पुरोहितों ने विधि विधान के साथ यज्ञशाला में मंत्रोचार के साथ हवन किया और शहीदों की आत्मिक शांति के लिए प्रार्थना की। इसके बाद सूक्ष्म भंडारे का भी आयोजन किया गया और भोजन प्रसाद के रूप में श्रद्धालुओं को यह प्रसाद वितरित किया गया। शहीद मंदिर ट्रस्ट के संस्थापक स्वामी बालक ने बताया कि देश की आजादी और सीमाओं पर कुर्बान होने वाले शहीदों की आत्मिक शांति के लिए वह इसलिए श्राद्ध का आयोजन करते हैं क्योंकि उनकी कुर्बानियों के कारण ही पूरा देश आज चैन की नींद सोता है। उन्होंने बताया कि प्रत्येक दिन हवन के बाद स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले शहीदों के बारे में लोगों को व्याख्यान भी दिया जाता है ताकि उनमें राष्ट्रभक्ति की भावना जागृत हो सके। आपको बता दें कि शहीदों की याद में इसी आश्रम परिसर में शहीदों का मंदिर बनाया जा रहा है जिसमें केवल शहीदों की मूर्ति होंगी किसी देवी देवता की मूर्ति यहां नहीं होगी। यह देश का पहला मंदिर है जहां शहीदों की कुर्बानियों को लेकर मंदिर का निर्माण किया जा रहा है।
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हर वर्ष श्राद्ध क्यों मनाया जाता है-
श्राद्ध पक्ष को पितृपक्ष और महालय के नाम से भी जाना जाता है ।सनातन धर्म की मान्यता के मुताबिक श्राद्ध पक्ष के दौरान हमारे पूर्वजों की आत्मा पृथ्वी पर सूक्ष्म रूप में आते है और उनके नाम से किए जाने जाने वाले तर्पण को स्वीकार करते हैं। इससे दिवंगत आत्मा को शांति मिलती है और घर में सुख समृद्धि आती है । खास बात यह है कि पितृपक्ष भाद्रपद की पूर्णिमा से शुरू होकर अश्वनी मास की अमावस्या तक चलते हैं। इस अवधि में सनातन धर्म के अनुयाई किसी भी प्रकार का कोई शुभ कार्य नहीं करते हैं केवल दिवंगत आत्माओं की शांति के लिए तप और भजन का आयोजन करते हैं और दिवंगत आत्मा की रूचि के अनुसार भोजन गरीब लोगों को वितरित करते हैं।

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