नयी दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को एक ऐतिहासिक फैसले में केरल के सबरीमला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश की अनुमति दे दी। मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने 4:1 का बहुमत का फैसला सुनाते हुए कहा कि शरीर क्रिया विज्ञान (फिजियोलॉजी) के आधार पर 10 से 50 साल की उम्र की महिलाओं के सबरीमला मंदिर में प्रवेश पर पाबंदी संविधान प्रदत्त उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है।
संविधान पीठ में न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर, न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति रोहिंगट एफ नरीमन और न्यायमूर्ति इंदु मल्होत्रा शामिल हैं।
न्यायालय ने यह फैसला इंडियन यंग लॉयर्स एसोसिएशन की याचिका पर सुनाया।
Present judgement won't be limited to Sabarimala, it will have wide ramifications. Issues of deep religious sentiments shouldn't be ordinarily interfered into: Justice Indu Malhotra, dissenting judge. #SabrimalaVerdict
— ANI (@ANI) September 28, 2018
-प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्ना ने कहा कि महिलाएं पुरुषों से कहीं भी कमजोर नहीं हैं और शरीर के आधार पर उनके साथ भेदभाव नहीं किया जा सकता।
-सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों में से चार ने सर्वसम्मति से अपना फैसला सुनाया जबकि जस्टिस इंदु मल्होत्रा ने अपनी अलग राय रखी है।
-चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने कहा कि सभी श्रद्धालुओं को मंदिर में पूजा-अर्चना करने का अधिकार दिया जाता है। लैंगिक आधार पर मंदिर में प्रवेश से किसी को रोका नहीं जा सकता।
-प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि 10 से 50 की उम्र वाली महिलाओं को मंदिर में प्रवेश करने से रोकना संवैधानिक सिद्धातों का उल्लंघन है।
-सीजेआई ने कहा कि भगवान अयप्पा के श्रद्धालु हिंदू हैं। आप अपने रोक से एक अलग धार्मिक प्रभुत्व बनाने की कोशिश न करें। किसी भी शारीरिक एवं बॉयोलाजिकल कारण को रोक का आधार नहीं बनाया जा सकता। सबरीमाला मंदिर की ओर से लगाए गए प्रतिबंधों को जरूरी धार्मिक क्रियाकलाप के रूप में मान्यता नहीं दी जा सकती।
4 judges have the same opinion in the #Sabarimala temple case; one dissenting opinion by Justice Indu Malhotra. CJI Dipak Misra reading out the verdict pic.twitter.com/dklMutamwz
— ANI (@ANI) September 28, 2018
Supreme Court allows entry of women in Kerala’s #Sabarimala temple. pic.twitter.com/I0zVdn0In1
— ANI (@ANI) September 28, 2018
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला इंडियन यंग लायर्स एसोसिएशन और अन्य द्वारा दायर की गई याचिकाओं पर आया है। सुप्रीम कोर्ट में मंदिर के बोर्ड त्रावणकोर देवासम ने कहा था कि मासिक धर्म की प्रक्रिया से गुजरने वाली महिलाओं का प्रवेश मंदिर में देवता की प्रकृति की वजह से वर्जित है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि महिलाएं भी पुरुषों की तरह ही हैं।
पीठ ने कहा था कि महिलाओं के प्रवेश से अगल रखने पर रोक लगाने वाले संवैधानिक प्रावधान का लोकतंत्र में कुछ मूल्य है। माहवारी की उम्र वाली महिलाओं के सबरीमाला मंदिर में प्रवेश पर रोक के इस विवादास्पद मामले पर अपना रुख बदलती रही केरल सरकार ने 18 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट से कहा था कि वह उनके प्रवेश के पक्ष में हैं।
Supreme Court to pronounce verdict tomorrow in the case relating to the ban on entry of women in Kerala’s Sabarimala temple. pic.twitter.com/NokWP0pFWZ
— ANI (@ANI) September 27, 2018
सुप्रीम कोर्ट ने महिला और पुरुष को एक समान बताने की टिप्पणी के अलावा यह सवाल भी किया था कि महिलाओं को मंदिर में न आने देने के पीछे तार्किक कारण क्या है? इसके जवाब में त्रावणकोर देवासम बोर्ड के वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा था कि दुनिया भर में अयप्पा जी के कई मंदिर मौजूद हैं और वहां महिलाएं बिना किसी रोक टोक के जा सकती हैं लेकिन सबरीमाला में ब्रह्मचारी देव की मौजूदगी की वजह से एक निश्चित उम्र की महिलाओं के प्रवेश पर बैन लगाया गया है।
इस जवाब पर सवाल उठाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने पूछा था कि यह कैसे तय होगा कि 10 से 50 साल तक की उम्र की महिलाएं ही मासिक धर्म की प्रक्रिया से गुजरती हैं। 9 साल या 51 साल की महिला को भी मासिक धर्म हो सकते हैं। इसके जवाब में कहा गया कि यह उम्र सीमा परंपरा के आधार पर तय की गई है।
वहीं सुप्रीम कोर्ट में कोर्ट सलाहकार राजू रामचंद्रन ने मंदिर में महिलाओं पर लगे प्रतिबंध को छुआछूत से जोड़ा। उन्होंने कहा छुआछूत के खिलाफ अधिकारों में अपवित्रता भी शामिल है। यह दलितों के साथ छुआछूत की भावना की तरह है। गौर हो कि इससे पहले हाईकोर्ट में सुनवाई के दौरान कोर्ट ने महिलाओं पर लगे प्रतिबंध को सही ठहराया था और कहा था कि मंदिर में प्रवेश से पहले 41 दिन के ब्रह्मचर्य का पालन करना होता है और महिलाएं मासिक धर्म की वजह से ऐसा नहीं कर पाती हैं।