नई दिल्ली :दिग्गज कांग्रेसी नेता और उत्तर प्रदेश व उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी का गुरुवार को लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया। वह 93 साल के थे। आपको बता दें कि आंध्र प्रदेश के गवर्नर रह चुके एनडी तिवारी आज ही के दिन यानी 18 अक्टूबर 1925 को कुमाऊंनी परिवार में पैदा हुए थे। दिल्ली के साकेत स्थित मैक्स अस्पताल में उन्होंने अंतिम सांस ली।
Former UP and Uttarakhand CM ND Tiwari passes away at Max Hospital in Saket. #Delhi pic.twitter.com/tavfHc73Bp
— ANI (@ANI) October 18, 2018
पिछले कई महीनों से उनकी तबीयत काफी बिगड़ती जा रही थी। डॉक्टरों ने बताया कि मैक्स सुपर स्पेशिऐलिटी अस्पताल में भर्ती एनडी तिवारी ने दोपहर 2.50 बजे अंतिम सांस ली। हाल ही में उन्हें अस्पताल के ICU में शिफ्ट किया गया था। वह बुखार और न्यूमोनिया से पीड़ित थे। डॉक्टरों की एक टीम लगातार उनकी तबीयत पर नजर रख रही थी।
बीजेपी अध्यक्ष का ट्वीट, ‘…अपूरणीय क्षति’
बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने एनडी तिवारी के निधन पर शोक जताया है। उन्होंने ट्वीट कर कहा, ‘वरिष्ठ राजनेता नारायण दत्त तिवारी के निधन का दु:खद समाचार प्राप्त हुआ। उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अंग्रेजों के विरुद्ध संघर्ष किया था। उनका निधन भारतीय राजनीति के लिए एक अपूरणीय क्षति है।’
मैं नारायण दत्त तिवारी जी के परिवार व प्रियजनों के प्रति अपनी संवेदना व्यक्त करता हूँ और ईश्वर से दिवंगत आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करता हूँ । ॐ शांति शांति शांति
— Amit Shah (Modi Ka Parivar) (@AmitShah) October 18, 2018
लंबी सियासी पारी
आजादी के बाद यूपी में हुए पहले चुनाव में वह नैनीताल से प्रजा समाजवादी पार्टी के टिकट पर पहली बार विधायक बनकर विधानसभा पहुंचे। वह तीन बार- जनवरी 1976 से अप्रैल 1977, अगस्त 1984 से सितंबर 1985 और जून 1988 से दिसंबर 1989 तक उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे। वह 2002-07 तक उत्तराखंड के भी तीसरे मुख्यमंत्री रहे। इससे पहले 1980 में 7वीं लोकसभा के लिए वह निर्वाचित हुए थे और केंद्रीय मंत्री के तौर पर काम किया। 1985-1988 तक वह राज्यसभा के सदस्य भी रहे।
एक समय पीएम के थे दावेदार
1990 के दशक में एक समय उन्हें प्रधानमंत्री का दावेदार माना जा रहा था लेकिन पीवी नरसिम्हा राव को यह पद मिला। पीएम की कुर्सी न मिलने का एक कारण यह भी था कि वह महज 800 वोटों से लोकसभा का चुनाव हार गए थे। वह लंबे समय तक कांग्रेस पार्टी में रहे। 1994 में वैचारिक मतभेद के कारण उन्होंने कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया था और तिवारी कांग्रेस बनाई। उनकी छवि एक सर्वमान्य नेता की रही, जिन्हें सभी पार्टियों के लोग आदर और सम्मान देते थे।