2007 लखनऊ कचहरी ब्लास्ट : 11 साल बाद तारिक और अख्तर दोषी करार, 27 को होगा सजा का ऐलान

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लखनऊ :  जेल में लगने वाली एक विशेष अदालत ने लखनऊ सिविल कोर्ट परिसर में 2007 में हुए बम ब्लास्ट मामले में तारिक काजमी व मोहम्मद अख्तर को गुरुवार को दोषी करार दिया। विशेष जज बबिता रानी ने इन दोनों की सजा पर सुनवाई के लिए 27 अगस्त की तारीख तय की है। इस मामले के तीन अन्य अभियुक्तों में से खालिद मुजाहिद की ट्रायल के दौरान मौत हो चुकी है। सज्जादुर्ररहमान बरी हो चुका है। वहीं आरिफ उर्फ अब्दुल कदीर अब भी फरार है।
सरकारी वकील एम.के. सिंह के मुताबिक अभियुक्तों के खिलाफ देशद्रोह, आपराधिक साजिश, हत्या के प्रयास, विस्फोटक पदार्थ अधिनियम व विधि विरुद्ध क्रियाकलाप निवारण अधिनियम के तहत चार्जशीट दाखिल हुई थी। विशेष अदालत ने तारिक व अख्तर को इन सभी आरोपों में दोषी करार दिया है।
तब केंद्र के रवैये पर योगी ने उठाए थे सवाल
23 नवंबर 2007 को यूपी में हुए सीरियल ब्लास्ट पर योगी आदित्यनाथ ने लोकसभा में बतौर सांसद कहा था कि हालात की गंभीरता को समझते हुए कदम उठाए गए होते तो जानमाल की क्षति इतनी नहीं होती। 26 नवंबर 2007 को लोकसभा में योगी ने कहा- प्रदेश के तीन प्रमुख जनपदों में जो बम विस्फोट हुए उस संबंध में गृह मंत्री ने सदन में संक्षिप्त व अधूरा वक्तव्य दिया है।

गृह मंत्री के वक्तव्य से इस संपूूर्ण घटनाक्रम पर भारत सरकार की गंभीरता का अंदाजा लगाया जा सकता है। वाराणसी, अयोध्या और लखनऊ, इन तीनों जगहों पर बम विस्फोट हुए। उप्र में पहली बार बम विस्फोट नहीं हुए। इसके पहले 22 मई, 2007 को गोरखपुर में तीन बम विस्फोट हुए थे। उसके दो दिन बाद सीतापुर में और फिर इलाहाबाद में बम फटे। इस तरह लगातार प्रदेश में बम विस्फोट हो रहे हैं। आज उप्र इस्लामिक आतंकवाद का अड्डा सा बन गया है।

वाराणसी कचहरी विस्फोट

सबसे पहले वाराणसी कचहरी में दोपहर 1.05 से 1.07 बजे तक ताबड़तोड़ दो विस्फोट हुए। कचहरी में खचाखच भीड़ थी। रोजाना की तरह वकील, वादी और स्टांप वेंङर अपने-अपने कार्यों में व्यस्त थे। दोनों विस्फोटों में 11 लोग मरे जबकि 42 से अधिक घायल हो गए थे।

फैजाबाद कचहरी ब्लास्ट : 
दोपहर 1.12 से 1.15 बजे के बीच विस्फोट हुए। यहां चार की मौत हुई थी जबकि 15 से अधिक घायल हुए। फैजाबाद के ब्लास्ट वाराणसी से कम तीव्रता वाले बताए गए थे।
लखनऊ कचहरी में टिफिन बम से धमाका: यहां एक बजकर 32 मिनट पर धमाका हुआ। साइकिल स्टैंड पर लावारिस खड़ी एक साइकिल के स्टैंड से लटके थैले में रखा गया एक टिफिन बम भी बरामद हुआ था। इसे फोरेंसिक विशेषज्ञों के हवाले कर दिया गया था।

आईएम ने पांच मिनट पहले मेल कर ली थी जिम्मेदारी
आतंकी संगठन इंडियन मुजाहिदीन ने इन विस्फोटों से पांच मिनट पहले ही कुछ समाचार चैनलों को मेल भेज कर विस्फोट की जिम्मेदारी ली थी। आईएम ने अपने मेल में इस कार्रवाई को अल्पसंख्यकों के खिलाफ  हो रही कार्रवाई, बाबरी मस्जिद के विध्वंस व गुजरात दंगों के खिलाफ  अपना जवाब बताया था।

वजीरगंज थाने में दर्ज हुआ था केस

लखनऊ में ब्लास्ट के दो आरोपी मो. तारिक काजमी निवासी सम्मोपुर, थाना रानी सराय, जनपद आजमगढ़ व मो. अख्तर उफ़ॱर  तारिक कश्मीरी निवासी बनकूब, जिला रामबन, जम्मू-कश्मीर को विशेष न्यायालय से सजा मिलने पर डीजीपी व एटीएस के अफसरों ने संतोष जताया है। इस मामले में लखनऊ के वजीरगंज थाने में अपराध संख्या 547/07 आईपीसी की धारा – 115,120 बी,121, 122, 123, 307 व 3/4/5/6  विस्फोटक पदार्थ अधिनियम आदि धाराओं के तहत केस दर्ज कराया गया था। इसकी विवेचना तत्कालीन क्षेत्राधिकारी चौक चिरंजीव नाथ सिन्हा ने प्रारम्भ की थी। बाद में एटीएस के डीएसपी राजेश श्रीवास्तव ने विवेचना पूरी की। एटीएस अफसरों के अनुसार अभियुक्त तारिक काजमी व अख्तर उर्फ तारिक कश्मीरी हूजी के सक्रिय सदस्य थे। एक अभियुक्त खालिद मुजाहिद की 18 मई 2013 को मृत्यु हो चुकी है।
यहां से हुई गिरफ्तारी
एटीएस के आईजी असीम अरुण के मुताबिक अभियुक्त खालिद मुजाहिद व तारिक काजमी को 22 दिसंबर 07 को जनपद बाराबंकी से व अख्तर को 28 दिसंबर 07 को जॉइंट इंट्रोगेशन सेंटर, जम्मू कश्मीर से गिरफ्तार किया गया।

यह साक्ष्य जुटाए गए थे
एटीएस अफसरों के अनुसार, गिरफ्तार आतंकियों के खिलाफ ये साक्ष्य एकत्र किए गए थे- मोबाइल सिम, मोटर साइकिल की रसीद, घटनास्थल से प्राप्त फिंगर प्रिंट। इलेक्ट्रॉनिक सर्विलांस व परिस्थितिजन्य साक्ष्य। इनके सिम, आईडी कार्ड और मोटर साइकिल फर्जी नाम और पते से थे।

ऐसे हुआ घटना का खुलासा

एटीएस अफसरों ने बताया कि मोबाइल सर्विलांस व स्थानीय अभिसूचना और मुखबिरों की सूचना से आरोपी पकड़ में आए। इनके मोबाइल नंबरों का परीक्षण किया गया तो इनकी वार्ता कश्मीर में हूजी के कमांडर से होना पाया गया। गिरफ्तार अभियुक्तों के पास से बरामद दस्तावेजों व विस्फोटक से इनकी संलिप्तता की पुष्टि हुई। पूछताछ में भी कई सूत्र प्रकाश में आए। ये घटना से इनका सीधा संबंध प्रमाणित कर रहे थे। अभियोग की प्रभावी पैरवी संयुक्त निदेशक अभियोजन सुभाष चन्द्र सिंह व पैरोकार आरक्षी रमाकान्त मिश्रा ने की। इनके प्रयासों से कोर्ट में इन्हें दोषी सिद्ध किया जा सका।

सम्मानित किए जाएंगे पुलिस अफसर
पुलिस महानिदेशक ने अभियोग की उत्कृष्ट विवेचना के लिए अपर पुलिस अधीक्षक राजेश श्रीवास्तव व प्रभावी पैरवी के लिए संयुक्त निदेशक अभियोजन सुभाष चंद्र सिंह व पैरोकार रमाकांत मिश्रा को प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित करने की घोषणा की है।

विशेष न्यायालय गठित करने की मांग
इस महत्वपूर्ण मुकदमे में अभियुक्तों का दोषी पाया जाना बहुत संतोष की बात है। आतंकवाद संबंधी मुकदमों के त्वरित निस्तारण के लिए विशेष न्यायालय गठित कराने के लिए शासन से अनुरोध किया गया है।
– डीजीपी ओपी सिंह

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