चिंता का विषय बन रहे हैं बायोमेडिकल रिसर्च प्रकाशन kl

“इंस्टिट्यूट ऑफ़ ह्यूमन बेहेवियर एवं अलाइड साइंसेज (IHBAS), नई दिल्ली में कार्यरत डॉ प्रतिभा शर्मा ने जो प्रोफ. राजेंद्र के. धमीजा, डायरेक्टर के साथ मिलकर पार्किंसन, अल्झाइमर, स्ट्रोक, एवं मस्तिष्क से जुडी बिमारियों पर रिसर्च कर रही हैं उन्होंने इसका गहन विश्लेषण कर जताई है चिंता “

भास्कर समाचार सेवा

नई दिल्ली। बायोमेडिकल रिसर्च ( चिकित्सा अनुसंधान) और उस पर आधारित प्रकाशन एक महत्वपूर्ण विषय है जो कि मानव स्वास्थ्य पर व्यापक प्रभाव डाल सकता है | यह आतंरिक शारीरिक संरचना, उसकी कार्यप्रणाली तथा उसमें उत्पन्न विकारों एवं उनके निदान को समझने में सहायक होते हैं | इसी रिसर्च को आधार मानकर डॉक्टर्स वास्तव में बीमारियों का मूल्यांकन, निदान और उपचार करते हैं। किन्तु बढ़ती हुई तकनीकियों के साथ-साथ, रिसर्च में जिस प्रकार प्रकाशित लेख वापस लिए जा रहे हैं, यह गंभीर चिंता का विषय है | हाल ही में, डॉ. प्रतिभा शर्मा ने इस प्रकार के सभी वापस लिए गए (retracted) प्रकाशनों के करणों का उल्लेख अपने एक प्रकाशन में किया है| डॉ. प्रतिभा शर्मा ने पीएचडी (Ph.D.) साल 2016 में अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS), नई दिल्ली से की है एवं वह रिसर्च विभाग में पिछले बारह सालों से कार्यरत हैं | अभी वह इंस्टिट्यूट ऑफ़ ह्यूमन बेहेवियर एवं अलाइड साइंसेज (IHBAS), नई दिल्ली में प्रोफ. राजेंद्र के. धमीजा, डायरेक्टर के साथ मिलकर पार्किंसन, अल्झाइमर, स्ट्रोक, एवं मस्तिष्क से जुडी बिमारियों पर रिसर्च कर रही हैं | हाल ही में मीडिया समाचार के माध्यम से कई विश्वविद्यालयों और वैज्ञानिकों का नाम उजागर किया गया है | ऐसा न केवल बायोमेडिकल रिसर्च के विषय क्षेत्र में है बल्कि अन्य कई विषयों जैसे आर्ट्स, फिजिक्स, सोशियोलॉजी, हिस्ट्री, इत्यादि का वर्णन रिट्रैक्शन-वाच डेटाबेस में है | डॉ शर्मा के प्रकाशन (Springer Nature HSSCOMS 2023 (DOI: 10.1057/s41599-023-02095-x) में उन्होंने ऐसे 619 बायोमेडिकल रिसर्च निष्काषित प्रकाशनों का विश्लेषण किया है | ये सभी प्रकाशन पबमेड (PubMEd) डेटाबेस से सन 1990 से 2021 तक, भारत के लेखकों द्वारा लिखे गए लेख हैं, जो की 372 अन्य प्रकार के जर्नलों से निष्काषित किये गए हैं | इसमें साहित्यिक चोरी (plagiarism, 27%), मिथ्याकरण और निर्माण (falsification and fabrication, 26%), डुप्लिकेट प्रकाशन (21%), ग़लत डेटा (12%), लेखक संबंधी मुद्दे (4%),  झूठा पीयर रिव्यु (3%), एवं नैतिक और फंडिंग के मुद्दे (2%) शामिल हैं। आने वाले समय में  निष्काशन योग्य प्रकाशनों की वास्तविक संख्या इससे कहीं अधिक होगी | डुप्लिकेट प्रकाशन वो होते है जिसमें लेखक अपने पिछले प्रकाशन का उचित साइटेशन दिए बिना अपने स्वयं के लेखन, चित्र या डेटा को बार-बार प्रकाशित करता है और उसे एक नई सामग्री के रूप में प्रस्तुत करता है | साहित्यिक चोरी में लेखक यही अन्य लेखकों  के प्रकाशनों को ठीक प्रकार से साइट किये बिना करता है | हालाँकि अभी के समय में साहित्यिक चोरी में सुधार हेतु सॉफ्टवेयर लागू किये गए हैं, जिन्हे सभी संस्थानों में सख्ती से इस्तेमाल किया जा रहा है | किन्तु मिथ्याकरण और निर्माण अभी भी तेजी से बढ़ रहे हैं | मिथ्याकरण में लेखक रिसर्च द्वारा मिले डेटा जैसे चित्र, सामग्री एवं उपकरण में हेरफेर करता है या अपने परिणामों को उचित ठहराने के लिए जानबूझकर डेटा में छेड़छाड़ करता है | निर्माण में लेखक खुद से डेटा उत्पन्न करता है और प्रकाशनों में रिपोर्ट करता है | प्रकाशन वापसी में कुछ ऐसे मामले भी शामिल हैं जिसमें लेखक ने नकली ईमेल के उपयोग द्वारा पीयर रिव्यु प्रक्रिया के साथ छेड़छाड़ की | इस प्रकार के बढ़ते प्रकाशन न केवल अनुसंधान एवं वैज्ञानिक की गुणवत्ता पर संदेह करते हैं, बल्कि यह संसाधनों की बर्बादी है | जो कि विशेष रूप से भारत जैसे देश में दुर्लभ वित्तीय के वर्तमान माहौल को देखते हुए चिंतन का विषय है । लेखक ऐसा इसलिए करते हैं क्योकि हमारा सिस्टम उन्हें ऐसा करने के लिए वाद्य करता है | युवा लेखकों पर अनुसन्धान एवं डिग्री प्राप्ति के नियमों हेतु प्रकाशन करने के लिए दबाव डाला जाता है | कई बार वरिष्ठ वैज्ञानिकों या प्रोफेसेरों द्वारा उचित प्रूफ रीडिंग में अज्ञानता के कारण प्रकाशनों को वापस ले लिया जाता है। अनुसंधान में वरिष्ठ वैज्ञानिकों के प्रकाशनों की संख्या साथियों के बीच विद्वान होने का दावा, प्रतिष्ठा और उनकी प्रतिभा से जुड़ी होती है | इससे उन्हें संस्थान में समिति के सदस्य बनने के लिए आमंत्रित वार्ता, समीक्षक या संपादक के रूप में पत्रिका से निमंत्रण, प्रतिबिंबित विश्वसनीयता मिलती है | ये उनकी भर्ती या पदोन्नति में सहायक हैं | फंडिंग एजेंसियों के लिए वे सुलभ हो जाते हैं। हमारे सिस्टम मे एक प्रोजेक्ट से किये गए प्रकाशन का प्रभाव अगले प्रोजेक्ट के मिलने का आधार हैं, जो कि निर्धारित समय पर ही प्रकाशित करना होता है | यह भी एक वजह हो सकती है | इसके अलावा इन मुद्दों से बचने के लिए उचित दिशानिर्देशों का भी अभाव है।

(वैज्ञानिक इंस्टिट्यूट ऑफ़ ह्यूमन बेहेवियर एवं अलाइड साइंसेज (IHBAS), नई दिल्ली)

डॉ शर्मा ने विश्लेषण किया है कि, निष्काषित प्रकाशनों का प्रभाव उन सभी अन्य प्रकाशनों पर भी पड़ेगा जिन्होंने इन्हे आधार मानकर अपने अध्ययन में दर्शाया है | कुल मिलाकर, वापस लिए गए प्रकाशनों में वापसी नोटिस (journal retraction notice) जारी होने से पहले 5809 साइटेशन (citation) थे और नोटिस जारी होने के बाद 4027 साइटेशन प्राप्त हुए। निर्माण और मिथ्याकरण के आधार पर वापस लिए गए पत्रों में कुल 4752 साइटेशन थे (प्रति पेपर औसतन 27 साइटेशन), जबकि साहित्यिक चोरी के कारण वापस लिए गए पत्रों में कुल 3286 साइटेशन थे (प्रति पेपर औसतन 18 साइटेशन)। ऐसे सभी अध्ययन के निष्कर्ष संदेहजनक माने जा सकते हैं | इस विषय में प्रकाशन की ज़िम्मेदारी होनी चाहिए कि वह निष्काषित प्रकाशन की भली-भांति एवं निष्पक्षता के साथ उसके प्रकाशन के साथ ही संलग्न करे | 

(डॉ प्रतिभा शर्मा)

“डॉ प्रतिभा ने अपने निष्कर्षों के आधार पर निम्नलिखित सुझाव दिए हैं”

1. युवा छात्रों जैसे स्नातक, स्नातकोत्तर का प्रशिक्षण आवश्यक है। 

2. लेखकों को साइटेशन प्रकाशन को ठीक प्रकार से पढ़ने एवं वापसी की जाँच करने के बाद ही करना चाहिए |  

3. अंतर्राष्ट्रीय दिशानिर्देश COPE 2000, CSE 2021, ICMJE 2021 और राष्ट्रीय दिशानिर्देश ICMR और UGC का पालन किया जाना चाहिए। इनसे लेखन वापसी से बचा जा सकता है | किन्तु इन दिशानिर्देशों को नियमित रूप से अपडेट करने की आवश्यकता है |

4. बायोमेडिकल रिसर्च को शुरू करने से पहले ही नैतिक मंजूरी (ethical clearance) ली जानी चाहिए। रोगी के बारे में कुछ भी छापने से पहले ही उनकीं सहमति प्राप्त की जानी चाहिए।

5. विभिन्न कारणों से हुई प्रकाशन वापसी जैसे साहित्यिक चोरी, डुप्लिकेट प्रकाशन, मिथ्याकरण, निर्माण, लेखकीय मुद्दे, नैतिक मुद्दे और नकली पियर रिव्यु को अलग जानकार, उनका निवारण और दंड का निर्धारण उसके अनुसार ही किया जाना चाहिए।

6. जर्नल और संपादकों को वापसी के कारण लिखने अलर्ट जारी करने में पारदर्शिता और स्पष्टता अपनानी चाहिए।

7. प्रकाशन करने के समय लेखक के पिछले कामों की समीक्षा करके डुप्लिकेट प्रकाशन को रोका जा सकता है | साहित्यिक चोरी और मिथ्याकरण जैसे मुद्दों को रोकने के लिए ऐसे उपकरण जो इनका पता लगा सकते हैं सख्ती से इस्तेमाल किये जाने चाहियें |

8. प्रकाशन डेटा में वास्तविक गलती के कारण पूर्ण वापसी (full retraction) के बजाय नियमित रूप से प्रकाशितत्रुटि/सुधार (erratum/ correction) का मौका दिया जाना चाहिए।

9. UGC ने प्रीडेटरी जर्नल (predatory journal) में प्रकाशन से बचने के लिए दिशानिर्देश जारी किए हैं और ऐसे जर्नलों की एक सूची प्रदान की है |

 10. सभी संस्थानों में समय – समय पर वेबिनार, सेमिनार या कार्यशाला के रूप में जागरूकता प्रोग्रामों को नियमित रूप से आयोजित करना चाहिए और प्रतिष्ठित लेखकों को पुरस्कार भी दिए जाने चाहिए। भारत में किसी भी राष्ट्रीय अनुसंधान परिषद ने प्रकाशन वापसी के संधर्व मे कोई पुश्ता दिशानिर्देश जारी नहीं किये हैं | विज्ञान को अपने अंतर्निहित मूल्यों की सुरक्षा के लिए संपूर्ण प्रणाली की आवश्यकता होती है | विज्ञान में घटते विश्वास जैसी समस्या के लिए सत्यनिष्ठा, पारदर्शिता और बौद्धिक ईमानदारी के नवीनीकरण की आवश्यकता है। शिक्षा और जागरूकता द्वारा साहित्यिक चोरी, डुप्लिकेट प्रकाशन, लेखकत्व संबंधी मुद्दे, नैतिक मुद्दे, वापसी के बाद के साइटेशन जैसी समस्याओं से बचा जा सकता है | मिथ्याकरण और नकली सहकर्मी समीक्षा चिंता का विषय है, इससे निपटने के लिए आगे की जांच एवं समाधान की आवश्यकता है। लेखक द्वारा किया गया अध्ययन भविष्य की जांच और दिशानिर्देशों के लिए संदर्भित किया जा सकता है |

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