अब यूपी को यह साथ नापसंद है….

योगेश श्रीवास्तव 
लखनऊ। यूपी मे विधानसभा चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की दोस्ती सपा मुखिया अखिलेश यादव को पंसद थी। तब यहीं नारा गूजंता था कि यूपी को यह साथ पसंद है।  लेकिन आज यह साथ नापंसद हो गया है। यहां के क्षत्रप राहुल गांधी को प्रधानमंत्री की कुर्सी पर कतई नहीं देखना चाहते। इसे लेकर जहां एक ओर कांग्रेस में जश्न का माहौल है वहीं विरोधी खेमेंं में बेचैनी गढ़ गयी है।
Image result for राहुल अखिलेश में दरार
इससे आगामी लोकसभा चुनाव में भाजपा को शिकस्त देने की रणनीति पर पानी फि र सकता है। मालूम हो कि कांग्रेस वर्किग कमेटी की हाल में हुई बैठक में राहुल गांधी को प्रधानमंत्री का चेहरा घोषित कर दिया गया है। सवाल यह है कि जब भाजपा के खिलाफ  समूचा विपक्ष एकजुट होने की कवायद कर रहा है ऐसे में कांग्रेस अकेले कैसे पीएम प्रत्याशी घोषित कर सकती है। इसी मुद्दे को लेकर विपक्षी दलों की बेचैनी बढ़ गयी है क्योंकि क्षेत्रीय दलों की महत्वाकांक्षा राष्ट्रीय दलों की तुलना में कहीं अधिक होती है। वहीं राहुल गांधी के पीएम कंडीडेट घोषित होने पर कांग्रेस में जश्न का माहौैल है। यूपी में चार बार सत्तासीन हो चुकी समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव पूर्व में दो टूक कह चुके हैं कि चुनाव में जीत के बाद पीएम प्रत्याशी तय किया जायेगा।
उन्होंने यह भी कहा कि मै पीएम की रेस में शामिल नहीं हूं यूपी का एक बार सीएम और बनना चाहता हूं। पार्टी प्रवक्ता राजेन्द्र चौधरी का कहना है कि जब बात गठबंधन की चल रही है तो ऐसे में गठबंधन में शामिल दलों को पीएम कडीडेट तय करना चाहिए। कांग्रेस अकेले कैसे पीएम का ऐलान कर सकती है। रही बात बसपा की तो पार्टी मुखिया मायावती की महत्वाकांक्षा किसी से छिपी नहीं हैं। पिछले दिनों बसपा के प्रदेशस्तर की बुलाई गई बैठक में एक स्वर में सभी ने एक स्वर में मायावती को पीएम बनाए जाने का संकल्प लिया।
गठबंधन के सहारे अपना जनाधार वापस लाने के लिए छटपटा रहे रालोद के प्रदेश अध्यक्ष डा मसूद अहमद का कहना है जब विपक्षी एका की बात हो रही है तो ऐसे में कांग्रेस का अकेले पीएम कंडीडेट घोषित करना गलत है। इससे क्षेत्रीय दलों को कम बल्कि कांग्रेस को अधिक नुकसान हो सकता है। इस तरह विपक्षी एकता में शामिल यूपी के अधिकांश दल यहीं चाहते है कि राजनीति में हर निर्णय सामूहिक रूप से लिया जाए। क्योंकि प्रधानमंत्री कांग्रेस का नहीं बल्कि पूरे देश का होगा।
गठबंधन में पड़ सकती है दरार 
राहुल गांधी के पीएम कंडीडेट के ऐलान होने से भाजपा को शिकस्त देने के लिए यूपी में तैयार हो रहे विपक्षी दलों के गठबंधन में दरार आ सकती है। क्योंकि यूपी में कांग्रेस का कोई खास जनाधार नहीं है। वह यहां अकेले भाजपा का सामना नहीं कर सकती। यहां पर सपा बसपा एवं रालोद के गठबंधन का फ ार्मूला लगभग तैयार हो चुका है। इसमें 2014 के चुनाव परिणाम को आधार बनाया गया है।
सूत्रों के अनुसार इसमें बसपा को 40, सपा को 35 और रालोद को 3 तथा कांग्रेस के लिए रायबरेली एवं अमेठी सीट छोडऩे का इरादा है। कांग्रेस यूपी में 15 सीटों से कम पर गठबंधन नहीं करना चाहती है जबकि विपक्ष उसे पांच सीटों से अधिक देने पर राजी नहीं है। ऐसे में कांग्रेस के खेमे में यह भी चर्चा है वह अकेले 50 सीटों पर चुनाव लड़ सकती है। जिन सीटों पर विपक्ष का प्रत्याशी मजबूत होगा वहां अपना कंडीडेट नहीं उतारेगी। वहीं सपा-बसपा ने कांग्रेस के समक्ष मध्य प्रदेश एवं राजस्थान की तर्ज पर यूपी में गठबंधन करने की शर्त रखी है। वहां पर कांग्रेस जितना सम्मान सपा एवं बसपा को देगी उसी तर्ज पर उसे यूपी में सम्मान दिया जायेगा। इस तरह कांग्रेस के समक्ष चुनौतियां बढ़ती जा रही है।
कामयाब होती भाजपा 
भाजपा को बीते कई माह से विपक्षी एकता अखरने लगी है जिसे तोडऩे के लिए वह हर स्तर पर किलाबंदी कर रही है। पीएम नरेन्द्र मोदी से लेकर आम कार्यकर्ता तक इस गठबंधन पर सीधा प्रहार कर रहे हैं। अब राहुल गांधी को पीएम कंडीडेट बनाये जाने के बाद विपक्षी किला दरकने की संभावना बढ़ गयी है। क्योंकि यहां के सपा बसपा जैसे दल कांग्रेस का नेतृत्व कतई स्वीकार नहीं करेंगे। इसका कारण उनका जनाधार भी है। विरोधी खेमे में गुटबाजी उभरने के आसार प्रबल होते जा रहे हैं। भाजपा भी यहीं चाहती है कि  किसी तरह विपक्षी एकता में दरके। यदि ऐसा हुआ तो इसका सीधा लाभ भाजपा को मिलेगा।

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