इंडियन एयरफोर्स की ओर से 22 साल पहले जो सपना देखा गया था, वो अब पूरा होने जा रहा है। इतने सालों की मेहनत के बाद एयरफोर्स को सोमवार को LCH (हल्का लड़ाकू विमान) मिलने जा रहा है। खास बात यह है कि नवरात्रि में अष्टमी के दिन यह एयरफोर्स के बेड़े में शामिल हो रहा है और सेना की शक्ति बढ़ाएगा।
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह जोधपुर पहुंच चुके हैं। रक्षा मंत्री की उपस्थिति में जोधपुर एयरबेस पर ये हेलिकॉप्टर शामिल करेंगे। राजनाथ सिंह जोधपुर एयरबेस पहुंचे। यहां लाइट कॉम्बैक्ट हेलिकॉप्टर को एयरफोर्स को सौंपने से पहले धर्मसभा का आयोजन किया गया। इस दौरान चारों समुदाय के धर्म गुरु मौजूद रहे।
इससे पहले एयरबेस पर सर्व धर्म सभा का आयोजन किया जाएगा। करीब 3885 करोड़ रुपए की लागत से बने 15 एलसीएच फौज में शामिल हो रहे हैं। तीन एलसीएच बेंगलुरु से जोधपुर पहुंच चुके है। बाकी 7 हेलिकॉप्टर भी अगले कुछ दिन में यहां पहुंच जाएंगे। इस स्क्वाड्रन के लिए एयरफोर्स के 15 पायलट्स को ट्रेनिंग दी गई है।
लेकिन, इंडियन एयरफोर्स के लिए यह सब कुछ इतना आसान नहीं था…इन 22 साल में 10 से ज्यादा बार ट्रायल हुए। सियाचिन से लेकर रेगिस्तानी इलाके तक के माहौल में इसे परखा गया और अब इसकी पहली स्क्वाड्रन राजस्थान को मिलने जा रही है।
पहले जानें आखिर क्यों पड़ी इसकी जरूरत
कारगिल में महसूस हुई थी कमी
1999 में कारगिल युद्ध के दौरान सेना को अधिक ऊंचाई वाले स्थान पर हमला करने वाले हेलिकॉप्टरों की बहुत कमी महसूस हुई थी। यदि उस दौर में ऐसे हेलिकॉप्टर होते तो सेना पहाड़ों की चोटी पर बैठी पाक सेना के बंकरों को उड़ा सकती थी।
इस कमी को दूर करने का बीड़ा उठाया एक्सपट्र्स ने और हिन्दुस्तान एयरोनोटिक्स लिमिटेड (HAL) परिसर में इसका निर्माण करने की चुनौती ली। सेना व एयरफोर्स की आवश्यकताओं के अनुरूप डिजाइन तैयार की गई और इस प्रोजेक्ट पर काम शुरू किया गया।
अब पढ़ें, 22 साल मैं कैसे तैयार हुआ LCH
2004: पहली बार सेना को बताया कि वह अपने यूटिलिटी हेलिकॉप्टर ध्रुव के फ्रेम पर हल्का लड़ाकू हेलिकॉप्टर बनाने पर काम कर रहा है।
2006: HAL ने पहली बार सार्वजनिक रूप से घोषणा की थी कि वह हल्का लड़ाकू हेलिकॉप्टर बनाने जा रही है। इस घोषणा के बाद विदेश से ऐसे हेलिकॉप्टर खरीदने की अपनी योजना को सीमित कर दिया।
2008: इसके प्रोटोटाइप (मॉडल) की पहली सफल उड़ान के बाद HAL ने घोषणा की थी कि हमने एलसीएच बनाने की दिशा में आधा रास्ता तय कर लिया है।
इसी दौरान तीसरी टेस्ट फ्लाइट भी सक्सेस रही और तय हो गया कि सेना जैसा लड़ाकू हेलिकॉप्टर चाह रही थी वह तैयार हो चुका है।
2011: फ्लाइट टेस्ट सफल होने के बाद इसे फाइनल ऑपरेशनल क्लीयरेंस मिल पाई।
1 जुलाई 2012: चैन्नई के पास इसका पहला फुल स्कैल ट्रायल शुरू हुआ।
– इसके कुछ दिन बाद HAL ने एलसीएच के दूसरे प्रोटोटाइप का ट्रायल समुद्र की सतह के ऊपर करना शुरू कर दिया। इस ट्रायल में फ्लाइट परफॉर्मेंस, भार वहन करने की क्षमता व इसके पंखों को परखा गया।
नवम्बर 2014: तीसरे प्रोटोटाइप का ट्रायल किया गया, जो पहले दोनों प्रोटोटाइप से काफी हल्का था। इसने करीब 20 मिनट की उड़ान भरी। इसके बाद केन्द्र सरकार ने चौथे प्रोटोटाइप के लिए 126 करोड़ का बजट स्वीकृत किया
2015: लेह के ठंडे मौसम में इसका ट्रायल शुरू किया गया। इसके तहत 4.1 किलोमीटर के एल्टीट्यूड व माइनस 18 डिग्री के सर्द मौसम में इसके इंजन स्टार्ट करने के लेकर इसकी बैटरी की क्षमता सहित अन्य सभी सभी ट्रायल में यह खरा उतरा।
– इस दौरान सियाचिन में 13,600 से लेकर 15,800 फीट की ऊंचाई पर पहली बार एलसीएच उतरा, जो इस पूरे ट्रायल की सबसे बड़ी कामयाबी थी।
– जून 2015: तपते रेगिस्तान में इसे परखने के लिए जोधपुर लाया गया। हाई टेम्प्रेचर में इसके हाइड्रोलिक प्रेशर समेत वेपन सिस्टम, लो स्पीड में उड़ान समेत कई सफल ट्रायल किए गए। गर्मी में भार उठाने की क्षमता सहित अन्य सभी ट्रायल पर यह खरा उतर चुका था।
– 1 दिसंबर 2015: HAL ने चौथा प्रोटोटाइप मैदान में उतार दिया
– मार्च 2016: HAL ने इसके बेसिक परफॉर्मेंस टेस्ट व आउट स्टेशन ट्रायल पूरे कर लिए और तीसरे प्रोटोटाइप ने तब तक फायर परफॉर्मेंस की ताकत दिखा दी।
दो महीने तक सारे सिस्टम का ट्रायल मार्च 2016 के बाद दो महीने तक इलेक्ट्रो ऑप्टिक सेंसर, हेलमेट पाइटिंग, एयर टू एयर मिसाइल, गन पावर व रॉकेट दागने तक अन्य वेपन सिस्टम का ट्रायल किया गया और इसे लाइसेंस मिला।
अगस्त 2017: तत्कालीन रक्षा मंत्री अरुण जेटली ने विधिवत रूप से इसके प्रोडक्शन की शुरुआत की। इसके बाद भी हथियार व रडार प्रणाली के विकास की प्रक्रिया जारी रही।
ऐसा लड़ाकू हेलिकॉप्टर जो सारी परिस्थितियों में खरा उतरा
कारगिल के दौरान हाई एल्टीट्यूड वाले पहाड़ी क्षेत्र में लड़ाकू हेलिकॉप्टर की कमी महसूस हुई। तय किया गया कि ऐसा हेलिकॉप्टर तैयार किया जाए जिनमें तीन चीजें प्रमुख हो।
पहली: ज्यादा से ज्यादा वेपन के साथ गोला-बारूद का भार उठा सके।
दूसरी: इसमें पर्याप्त फ्यूल हो ताकि अधिक समय तक हवा में रह सके।
तीसरी: रेगिस्तान की गर्मी के साथ ही हिमालय के बहुत ऊंचाई वाली पहाड़ियों पर पड़ने वाली कड़ाके की सर्दी में एक जैसी पॉवर हो।
आखिर क्यों चुना गया जोधपुर को
LCH के जोधपुर सिलेक्शन के पीछे कई कारण है। लेकिन, इनमें सबसे प्रमुख है पाकिस्तान बॉर्डर। दरअसल, अमेरिका निर्मित लड़ाकू हेलिकॉप्टर अपाचे की यूनिट कश्मीर क्षेत्र में पठानकोट में तैनात है। वहीं इस साल जून में सेना को मिले हल्के लड़ाकू हेलिकॉप्टर की यूनिट को अगले साल की शुरुआत में बेंगलुरु से चीन बॉर्डर के पास तैनात कर दिया जाएगा।
ऐसे में पश्चिमी सीमा (राजस्थान) पर लड़ाकू हेलिकॉप्टर की कमी महसूस हो रही थी। इधर, जोधपुर सबसे पुराना एयरबेस है। तय किया गया कि LCH की पहली स्क्वाड्रन जोधपुर में तैनात की जाए। राजस्थान में स्क्वाड्रन मिलने के बाद अपाचे और LCH दोनों बॉर्डर को आसानी से कवर कर सकेंगे।
एयरफोर्स के बेड़े में पहली बार देश में बना लड़ाकू हेलिकॉप्टर शामिल होने जा रहा है। खास बात यह है कि हल्के लड़ाकू हेलिकॉप्टर ( LCH लाइट कॉम्बेट हेलिकॉप्टर) की पहली स्क्वाड्रन की तैनाती जोधपुर में की जाएगी। LCH हवा से हवा में और हवा से जमीन पर गोलियों से लेकर मिसाइल तक दाग सकता है। दुश्मन के हमले पर यह पायलट व गनर को अलर्ट भी कर देगा।
बाड़मेर में बॉर्डर की सुरक्षा दांव पर लगाई जा रही है। देश के सबसे संवेदनशील सरहदी इलाके में जिन जमीनों पर सुप्रीम कोर्ट का स्टे है, वे भी धड़ल्ले से बिक रहीं हैं।
16 साल पहले प्राइवेट कंपनी द्वारा बेनामी तरीके से लाखों बीघा जमीन खरीद ली गई थी। सिक्योरिटी एंड एक्सचेंज बोर्ड ऑफ इंडिया (सेबी) ने ये जमीनें अपने नियंत्रण में ले ली थीं। सुप्रीम कोर्ट ने ऐसी जमीनों की खरीद फरोख्त पर रोक लगा दी थी। बावजूद इसके यहां खुलेआम सौदे हो रहे हैं।