अब कोरोना वैक्सीन को लेकर मुस्लिम जगत में छिड़ी हराम-हलाल की बहस

  • वैक्सीन के हराम-हलाल को लेकर छिड़ी बहस, उलेमा और बुद्धिजीवियों ने इसे महज़ अफवाह बताया


नई दिल्ली,। एक तरफ दुनिया कोरोना महामारी से बचाव की जुगत में लगी है, दूसरी तरफ मुस्लिम जगत में कोरोना वायरस की रोकथाम के लिए विकसित हो रही वैक्सीनों को लेकर हराम-हलाल (सही-गलत) की बेकार बहस छिड़ गई है। सोशल मीडिया पर वैक्सीन को लेकर यह अफवाह फैलाई जा रही है कि इसमें सूअर की चर्बी, जींस और डीएनए का इस्तेमाल किया जा रहा है जोकि हराम है। जबकि वैक्सीन बनाने वाली कंपनियां स्पष्ट रूप से कह रही हैं कि इसमें किसी भी तरह की हराम वस्तु का इस्तेमाल नहीं किया गया है।

ब्रिटेन में फाइजर वैक्सीन लगाने का काम शुरू हो गया है। कंपनी का कहना है कि वैक्सीन में किसी भी तरह की ऐसी वस्तु का इस्तेमाल नहीं किया गया है जिसकी वजह से किसी के धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचे। जबकि इंडोनेशिया और मलेशिया ने चीन में निर्मित हो रही वैक्सीन को लेकर चिंता व्यक्त करते हुए कंपनी से हलाल सर्टिफिकेशन की मांग रखी है। दूसरी तरफ सऊदी अरब में भी यह दावा किया है कि उसके यहां भी एक कोविड-19 वैक्सीन पर ट्रायल चल रहा है जो की पूरी तरह से हलाल है।

भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश में रहने वाले करोड़ों मुस्लिम समुदाय में भी वैक्सीन को लेकर भ्रम फैलाया जा रहा है। अच्छी बात यह है कि इन देशों के धार्मिक संगठन, उलेमा और बुद्धिजीवी सामने आकर वैक्सीन को लेकर सोशल मीडिया पर फैलाई जा रही अफवाहों पर ध्यान नहीं देने की अपील कर रहे हैं। मुस्लिम उलेमा और बुद्धिजीवियों का कहना है कि हदीस और शरीयत में साफ तौर से कहा गया है कि जान बचाने के लिए अगर हराम चीज भी खानी पड़े तो इससे कोई परहेज नहीं है। इसलिए मुसलमानों को भ्रम में नहीं पड़ना चाहिए और जान बचाने के लिए वैक्सीन का इस्तेमाल बिना किसी परहेज के करना चाहिए।

ऑल इंडिया उलेमा बोर्ड की शरीआ कमेटी के सामने भी इस तरह के सवाल मुसलमानों के जरिए किए जा रहे हैं। बोर्ड के राष्ट्रीय महासचिव अल्लामा बुनई हसनी का कहना है कि बोर्ड की शरई कमेटी ने इस मामले को साफ करते हुए कहा है कि शरीयत में जान बचाने के लिए साफ तौर से कहा गया है कि मुर्दार (मृत) और हराम चीज भी खाई जा सकती है। अल्लामा का कहना है कि इसमें कोई ना नुकर की गुंजाइश नहीं है। शरीयत का हुक्म पूरी तरह से स्पष्ट है। इसलिए पूरी इंसानियत और दुनिया को कोरोना महामारी से बचाने के लिए वैक्सीन को लगाना ही चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि अगर किसी हराम वस्तु का इस्तेमाल किसी चीज में किया जाता है तो इस्तेमाल करने की प्रक्रिया के दौरान उसकी असल शक्ल बदल जाती है। इसको लेकर भी शरीयत का अलग हुकुम है जो हमें ऐसा करने की इजाजत देती है।

इस सिलसिले में जोधपुर विश्वविद्यालय के कुलपति और इस्लामी विद्वान प्रोफेसर अख्तरुल वासे का भी साफ तौर से कहना है कि मुसलमानों में वैक्सीन को लेकर के जो भ्रम फैलाया जा रहा है वह पूरी तरह से बेबुनियाद है। उन्होंने कहा कि इसी तरह का भ्रम पोलियो उन्मूलन अभियान के तहत पिलाई जाने वाली वैक्सीन को लेकर भी फैलाया गया था जिसके बाद उलेमा और बुद्धिजीवियों ने सामने आकर मुसलमानों को समझाया था। इसके बाद भारत जैसा देश पोलियो मुक्त हो गया है। मगर हमारे पड़ोसी देश पाकिस्तान में आज लाखों बच्चे धार्मिक अंधविश्वास के कारण पोलियो से ग्रस्त हैं।

ऑल इंडिया मुस्लिम मजलिस-ए-मुशावरत के महासचिव एवं दारुल उलूम देवबंद के हिंदुत्व विषय के शिक्षक मौलाना अब्दुल हमीद नोमानी का भी कहना है कि मुसलमानों को इस तरह की उलझनों में नहीं फंसना चाहिए। यह मामला इंसानियत को बचाने का है इसलिए मुसलमानों को वैक्सीन का इस्तेमाल करना चाहिए और हमें कंपनियों पर भरोसा करना चाहिए।

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