डॉक्टरों को चाहिए कि वे मरीजों को जेनरिक दवाएं ही खिलाएं मगर वे नब्ज पकड़ते ही भूल जाते नाम

निरंकुश सरकारी डॉक्टरों पर लगाम कसने के सरकार लाख प्रयास कर ले, लेकिन डॉक्टर व अधिकारियों के बीच तू-तू डॉल तो मैं पात-पात का खेल चलता ही रहा है। सरकार चाहती है गरीबों को सस्ती दवाएं उपलब्ध हों, लेकिन डॉक्टरों को ब्रांडेड दवाएं लिखने की आदत जैसी हो गई है। जेनरिक दवाएं ब्रांडेड दवाओं से 80-90 फीसद सस्ती होती है। डॉक्टरों को चाहिए कि वे मरीजों को जेनरिक दवाएं ही खिलाएं, मगर वे नब्ज पकड़ते ही इनका नाम भूल जाते हैं। मरीज को चार रुपये की दवा 30, पांच रुपये की दवा 85, छह रुपये की दवा 150, सात रुपये की दवा 100 रुपये में खरीदनी पड़ती है।

सरकार तय करती है कीमत

रिसर्च व स्टडी के बाद तैयार रसायन (साल्ट) को हर कंपनी दवा के रूप में अलग-अलग नामों से बेचती है। एक विशेष समिति साल्ट के कंपोजिशन और बीमारी का ध्यान में रखते हुए साल्ट का जेनरिक नाम तय करती है, जो पूरी दुनिया में एक ही रहता है। इनकी कीमत सरकार तय करती है।

जेनरिक दवाओं की महंगी बिक्री

सूत्रों के अनुसार कुछ कंपनियां इस साल्ट को अपने नाम से पेटेंट कराकर लांच कर बेचती हैं। इन दवाओं को जेनरिक से कई गुना अधिक कीमत पर बेचा जाता है। ऐसे में डॉक्टरों की कलम जेनरिक दवाएं नहीं लिखती। शहर में खुले निजी जन औषधि केंद्रों पर पसरा सन्नाटा ब्रांडेड के खेल की गवाही देता नजर आता है।

डीपीसीयू से राहत

केमिस्ट एंड ड्रगिस्ट एसोसिएशन के पूर्व महामंत्री आलोक वात्सल्य का कहना है कि ब्रांडेड व पेटेंट दवा के असर में कोई अंतर नहीं। दोनों को बनाने की विधि एक ही होती है। सरकार ने 850 तरह की दवाओं को ड्रग प्राइज कंट्रोल ऑर्डर (डीपीसीयू) में शामिल किया है। इन दवाओं की कीमतें सरकार तय करती हैं,  कैंसर, डायबिटीज, बीपी, मानसिक समेत कई गंभीर व सामान्य बीमारियों की तमाम दवाएं डीपीसीयू में शामिल नहीं हैं। ऐसे में मरीज को एक रुपये की गोली 12 रुपये व डेढ़ रुपये की गोली 20 रुपये में खरीदनी पड़ती है।

ब्रांडेड व जेनिरक दवाओं पर नजर

बीमारी, साल्ट नेम, जेनरिक (रुपये), ब्रांडेड (रुपये)

एंटीबायोटिक, सिप्लोफ्लेक्स, 15, 120

कृमिनाशक, एलबेंडाजोल, 10, 120

शुगर, मेटफॉर्मिन-एसआर 1000,  11, 150

शुगर-बीपी, मेटफॉर्मिन (ग्लिमप्राइड 1एमजी),  18, 200,

रक्तचाप, रोच्युवास्टेटिन, 25, 400

हृदय रोग, क्लोपिडोग्रेल-75एमजी, 12, 100

बीपी,  रेमिप्रिल, 20, 60

न्यूरोपैथिक दर्द, प्रेगाब्लिन-75 एमजी, 40, 140,

एलर्जी-सांस, डेफ्लाजाकोर्ट-6 एमजी, 15, 50

एनीमिया, आयरन-फोलिक एसिड, 18, 150

एंटी एलर्जिक, फैक्सोफेनडिने एचसीएल-120 एमजी, 21, 142

खांसी, सीरप, 12-14, 70-80

(नोट-दवाओं की कीमत रुपये प्रति 10 गोली में दी गई है।)

आम लोगों का भरोसा नहीं

स्टेट सेक्रेटरी, इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के स्टेट सेक्रेटरी डॉ जयंत शर्मा का कहना है कि डॉक्टर जेनरिक दवाएं लिखें, ऐसी कोई गाइड लाइन नहीं। हां, ब्रांडनेम के साथ साल्ट का नाम भी लिखना चाहिए। अभी आम आदमी का जेनरिक दवाओं पर भरोसा नहीं है। रिटेलर्स केमिस्ट एंड ड्रगिस्ट एसोसिएशन के महामंत्री उमेश श्रीवास्तव का कहना है कि ये बात गलत है कि मरीजों का जेनरिक पर भरोसा नहीं। डॉक्टर जेनरिक लिखेंगे तो मरीज वहीं खाएंगे। दवा कंपनी से सांठगांठ के चलते ही ब्रांडेड दवा लिखी जाती हैं।

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