‘नामकरण’, ‘इश्क में मरजावां’ और ‘मेरे साई’ फेम टीवी एक्ट्रेस अनाया सोनी की दोनों किडनी फेल हो चुकी हैं। अनाया ने इंस्टाग्राम पर एक नोट शेयर करके बताया ‘मेरी हालत गंभीर है और मैं हॉस्पिटल में एडमिट हूं। मेरा डायलिसिस होना है। किडनी ट्रांसप्लांट भी कराना पड़ सकता है। मेरे लिए प्रार्थना करें।’
अनाया 2015 से एक किडनी पर ही थीं। उनके पिता ने अपनी एक किडनी उन्हें दी थी। लेकिन इस किडनी ने भी काम करना बंद कर दिया है। इसके बाद से ही उनका इलाज फिर से शुरू किया गया है।
कुछ समय पहले ‘CID’ और ‘कृष्णा’ फेम रसिक दवे की किडनी फेल होने से मौत हो गई थी। इसी तरह दो साल पहले ‘ससुराल सिमर का’ टीवी सीरियल के एक्टर आशीष रॉय की भी किडनी फेल होने से मृत्यु हो गई थी।
क्रॉनिक किडनी डिजीज (CKD) दुनिया भर में बड़ी बीमारी के रूप में जानी जा रही है। 1990 से 2017 के बीच 27 साल में CKD के 41 प्रतिशत रोगी बढ़े हैं। ‘द ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज’ की रिपोर्ट में बताया गया है कि AIDS की तुलना में क्रॉनिक किडनी डिजीज (CKD) से अधिक लोग मर रहे। साल 2017 में पूरी दुनिया में 70 करोड़ लोग क्रॉनिक किडनी डिजीज से पीड़ित थे।जबकि किडनी में गड़बड़ी के कारण 13 लाख लोग हृदय से जुड़ी बीमारियों और स्ट्रोक के शिकार हुए। रिपोर्ट में बताया गया है कि 2017 में AIDS से करीब 10 लाख लोगों की मृत्यु हुई थी, जबकि CKD से मरने वालों की संख्या 12 लाख रही।
अब सवाल उठता है कि कम उम्र में ही किडनी खराब होने के क्या कारण हैं। पहले 60, 50 और 40 की उम्र में किडनी की गंभीर बीमारी से जूझते मरीज मिलते थे। लेकिन अब CKD के मरीज 20 साल की उम्र से लेकर 30 साल की उम्र में मिलने लगे हैं। कई बार तो बच्चों में भी किडनी फेल्योर के मामले देखे गए हैं।
किडनी के दो सबसे बड़े दुश्मन हैं- डायबिटीज और हाइपरटेंशन
जयपुर में एपेक्स हॉस्पिटल के कंसल्टेंट नेफ्रोलॉजिस्ट डॉ. अजय पाल बताते हैं कि किडनी की बीमारी के दो प्रमुख कारण हैं डायबिटीज और हाइपरटेंशन। लेकिन किशोरों या युवाओं में क्रॉनिक किडनी की बीमारी होने को CKDu कहा जाता है यानी क्रॉनिक किडनी डिजीज ऑफ अननोन इटिलॉजी। यानी ऐसी कंडीशन जिसमें डायबिटीज और हाई ब्लड प्रेशर ही रिस्क फैक्टर नहीं होते बल्कि हमारे खान-पान, रहन-सहन से भी किडनी प्रभावित होती है। जैसे-पीने वाले पानी में सिलिका, यूरेनियम, आर्सेनिक, फ्लोराइड और दूसरे हेवी मेटल्स का होना। गर्म इलाकों में काम करना (हीट स्ट्रेस), डिहाइड्रेशन, दवाइयों का हेवी डोज लेना, पेस्टिसाइड्स के इस्तेमाल आदि से किडनी की बीमारी होने का खतरा अधिक होता है। ये चीजें हमारी लाइफस्टाइल से भी जुड़ी हैं। इन कारणों से होने वाली बीमारी को क्रॉनिक किडनी डिजीज ऑफ अननोन इटिलॉजी कहते हैं। कुछ मामलों में यह जेनेटिक भी हो सकता है।
जीन में गड़बड़ी ट्रांसफर होने पर किडनी हो सकती है बीमार
‘द नेचर’ पत्रिका में 10 जनवरी 2020 को छपी रिपोर्ट ‘जेनेटिक वेरिएंट्स एसोसिएटेड विद क्रॉनिक किडनी डिजीज’ में बताया गया है कि कुछ खास जीन भी होते हैं जिनके कारण किडनी की बीमारियां हो सकती हैं।
GPX1, GSTO1, GSTO2, UMOD और MGP जीन का जुड़ाव किडनी की गंभीर बीमारियों से है। क्रीटनीन में GPX1, GSTO2, KL, MGP जीन की पहचान की गई। वहीं ग्लोमेरुलर फिल्टरेशन रेट (GFR) के लिए GPX1, GSTO1, KL, ICAM-1, MGP) और हीमोग्लोबीन के लिए ERCC2, SHROOM3 जीन में गड़बड़ी पाई गई।
राजेंद्र इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज की नेफ्रोलॉजिस्ट डॉ. प्रज्ञा पंत बताती हैं कि जीन में गड़बड़ी के कारण ऑटोसोमल डोमिनेंट पॉलिसिस्टिक किडनी डिजीज (ADPKD) भी होती है। किडनी की यह बीमारी जेनेटिक होती है। इस बीमारी में किडनी में सिस्ट बन जाते हैं। इन सिस्ट के बड़े होने पर किडनी ठीक से काम करना बंद कर देती है। यह भी कई बार CKD का कारण बन जाता है।
समय से पहले जन्म लेने वाले बच्चों में किडनी की बीमारी
प्री-मैच्योर जन्म लेने वाले बच्चों में आगे चलकर किडनी की बीमारी देखने को मिलती है। डॉ. अजय पाल बताते हैं कि सामान्य नवजातों में 10 लाख नेफ्रॉन होते हैं। यह एक तरह की छलनी है, जिसका काम खून को फिल्टर करना और टॉक्सिक चीजों को यूरिन के रास्ते बाहर करना है। लेकिन 37 हफ्ते से पहले की प्रेग्नेंसी में जन्म लेने वाले बच्चों में नेफ्रॉन की संख्या कम होती है। ऐसे बच्चों के बड़े होने पर क्रॉनिक किडनी डिजीज का खतरा अधिक होता है।
प्री-मैच्योर बच्चों को 35 से 40 की उम्र में पहुंचकर सामने आती है बीमारी
1 मई 2019 को ‘द ब्रिटिश मेडिकल जर्नल (BMJ)’ की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि समय से पहले जन्म लेने वाले बच्चों में किडनी का विकास ठीक से नहीं होता। उनमें नेफ्रॉन कम विकसित होते हैं। मुख्य रिसर्चर प्रोफेसर केसे क्रंप ने बताया कि कम नेफ्रॉन का संबंध हाई ब्लड प्रेशर और प्रोग्रेसिव किडनी डिजीज से है।
जब किडनी की बीमारी धीरे-धीरे बढ़ती जाती है तो उसे प्रोग्रेसिव किडनी डिजीज कहते हैं। जैसे-प्रेग्रेंसी के अर्ली स्टेज में नेफ्रोन की संख्या कम होती है जबकि मैच्युरिटी के समय नेफ्रोन की संख्या पूरी रहती है। जो बच्चे समय से पहले पैदा होते हैं उनमें नेफ्रोन कम होते हैं। उनकी किडनी पर फिल्टर करने का दबाव अधिक होता है। उम्र बढ़ने पर प्रेशर बढ़ता जाता है। प्री-मैच्योर बच्चे जब 35 से 40 की उम्र में पहुंचते हैं तो उनमें CKD होने का खतरा दोगुना हो जाता है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि हर साल पूरी दुनिया में डेढ़ करोड़ बच्चे प्री-मैच्योर पैदा होते हैं। अकेले भारत में 36 लाख बच्चे समय से पहले दुनिया में आते हैं। यानी भारत में जन्म लेने वाले हर 6 में से एक बच्चा प्री-मैच्योर होता है। डॉ. अजय पाल का कहना है कि भारत में हर साल किडनी के गंभीर मरीजों की संख्या बढ़ती जा रही है। इसमें प्री-मैच्योर बर्थ बड़ा रिस्क फैक्टर है।
कम पानी-कम सोना- ज्यादा जंक फूड खाना है परेशानी
डॉ. प्रज्ञा पंत एक उदाहरण देकर बताती हैं कि अगर 100 किडनी मरीज हैं तो इनमें 50 ऐसे मरीज होते हैं जिनमें शुगर लेवल अधिक होता है। इन मरीजों में हाई प्रोटीन डाइट लेने वाले, खाने में अधिक नमक लेने वाले, स्मोकिंग करने वाले होते हैं।
हैदराबाद स्थित उस्मानिया मेडिकल कॉलेज की प्रोफेसर और नेफ्रोलॉजी डिपार्टमेंट की एचओडी डॉ. मनीषा सहाय बताती हैं कि डायबिटीज और हाइपरटेंशन लाइफस्टाइल से जुड़ी बीमारियां हैं। जंक फूड खाना, कम पानी पीना, कम नींद लेना, एक्सरसाइज नहीं करना आदि सीधे-सीधे लाइफस्टाइल से जुड़ी हैं। ये सारी चीजें किडनी को खराब करती हैं।
डायबिटीज से किडनी कैसे डैमेज होती है
डॉ. मनीषा सहाय बताती हैं कि डायबिटिक मरीजों की किडनी के छोटे-छोटे ब्लड वेसल्स डैमेज हो जाते हैं। ऐसे में किडनी खून में मौजूद टॉक्सिन्स को बाहर निकाल नहीं पाती। इससे शरीर में पानी और नमक का स्तर भी बढ़ जाता है जिससे मोटापे का खतरा रहता है। डायबिटीज होने पर शरीर की दूसरी नसों को भी नुकसान पहुंचता है। डायबिटीज मरीजों में किडनी सही फंक्शन नहीं कर पाती, इसलिए यूरेनरी रूट में एल्ब्यूमिन प्रोटीन जाने लगता है। ये क्रॉनिक किडनी डिजीज का अंतिम चरण होता है।
खाने में ज्यादा नमक लेने से बढ़ता है रिस्क
हम अपने घरों में बुजुर्गों से यह सुनते आए हैं कि खाने में नमक कम लेना चाहिए। लेकिन खानपान की आदतों में बदलाव के कारण हमारे खाने में नमक की मात्रा अधिक होती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, किसी व्यक्ति को एक दिन में 5 ग्राम से ज्यादा नमक नहीं लेना चाहिए। लेकिन भारत में औसतन एक व्यक्ति एक दिन में 11 ग्राम नमक खाने में लेता है। डॉ. प्रज्ञा पंत बताती हैं कि अधिक नमक लेने से किडनी पर दबाव बढ़ता है। नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ आयरलैंड के वैज्ञानिकों ने एक सर्वे में बताया कि हर दिन 4.6 ग्राम नमक लेना भी हेल्थ के लिए ठीक नहीं है। शोध में वैसै प्रतिभागियों को शामिल किया गया जिन्होंने लंबे समय तक लगभग 5 ग्राम नमक खाने में लिया। इनमें किडनी की बीमारी होने का रिस्क अधिक था। जबकि 2.6 ग्राम नमक लेने वालों में CKD का रिस्क बिल्कुल नहीं था।
सिरदर्द-बदन दर्द की दवा खाने से फेल हो रही किडनी
डॉ. मनीषा सहाय का कहना है कि बिना प्रिस्क्रिप्शन दवा खाने (इसे टेक्निकली ओवर द काउंटर मेडिसिन कहा जाता है) और पेनकिलर खाने से हमारी किडनी को बड़ा नुकसान पहुंच रहा है। शरीर में दर्द होने पर लोग बिना सोचे-समझे पेनकिलर खा लेते हैं। इससे राहत तो तुरंत मिल जाती है लेकिन दवा का असर किडनी पर पड़ता है। गांवों में किराना की दुकानों पर ये पेनकिलर आसानी से उपलब्ध होते हैं। ‘इंटरनेशनल मेडिकल केस रिपोर्ट्स’ जर्नल में प्रकाशित एक रिसर्च के अनुसार, दो महीने तक हफ्ते में दो दिन भी पैरासिटामॉल और एनालजेसिक दवा लेने पर किडनी फेल हो सकती है।
राजस्थान के डायलिसिस को-ऑर्डिनेटर विश्वेंद्र सिंह चौहान बताते हैं कि ग्रामीण इलाकों में ही नहीं, शहरों में भी लोग मेडिकल स्टोर से दवा खरीद कर खा लेते हैं। वो बताते हैं कि राजस्थान के ही छोटे शहर बारां का उदाहरण लीजिए। इस यूनिट में 30 महिलाएं डायलिसिस करा रही हैं। इनकी उम्र 18 से 30 साल के बीच है। इन सभी ने बुखार या किसी तरह की तकलीफ होने पर रेगुलर पेनकिलर लिया था।
पांच साल के बच्चे की दोनों किडनियां हुईं फेल
इसी तरह पांच साल के मुकुट की सवाई माधोपुर जिला अस्पताल में डायलिसिस चला। उसे बुखार हुआ तो पेरेंट्स ने पेनकिलर दे दी। बच्चे की दोनों किडनी फेल हो गई। दो साल पहले उसकी मृत्यु हो गई। डॉ. अजय पाल बताते हैं कि पीड़ित लोगों में 15 से 20 प्रतिशत लोगों की पेनकिलर लेने के कारण किडनी खराब होती है। कई बार एलर्जिक रिएक्शन या किसी दवा के सिंगल डोज से भी किडनी खराब हो सकती है।
आप जो पानी पी रहे कहीं उसमें यूरेनियम तो नहीं
क्या दूषित पानी पीने से किडनी पर असर पड़ता है? इसे राजस्थान, गुजरात और पंजाब में हुई एक रिसर्च से समझा जा सकता है। ‘इन्वायरमेंट साइंस एंड टेक्नोलॉजी लेटर्स जर्नल’ में प्रकाशित शोध के अनुसार, 324 कुओं के पानी का सैंपल लिया गया। इसमें 226 कुएं राजस्थान में थे। इनमें से 75 कुएं के पानी में यूरेनियम पाया गया। जबकि गुजरात के 98 कुएं में से 5 में यूरेनियम पाया गया। इसी तरह पंजाब के भटिंडा, फरीदकोट, मनसा, अमृतसर में यूरेनियम की मात्रा विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानकों से अधिक पाई गई। यही नहीं, ग्राउंड वाटर में सैलिनिटी, फ्लोराइड और नाइट्रेट की मात्रा भी ज्यादा मिली। विशेषज्ञों के अनुसार, पीने के पानी में इन तत्वों के मिलने से किडनी फेल होने का रिस्क कई गुना बढ़ जाता है।