–अपनाई गई मेडिकल परीक्षण प्रक्रिया में न्यायालय सामान्यत नहीं कर सकता बदलाव
–अग्निवीर भर्ती के अभ्यर्थी की विशेष अपील खारिज़
प्रयागराज । इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि किसी भर्ती बोर्ड द्वारा नियमानुसार गठित मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट पर न्यायिक हस्तक्षेप की गुंजाइश बहुत सीमित है। भारतीयों में अपनाई गई मेडिकल परीक्षण प्रक्रिया में सामान्यतया न्यायालय हस्तक्षेप नहीं कर सकता। वह भी तब जब यांची द्वारा बाहर से प्राप्त की गई मेडिकल रिपोर्ट के आधार पर भर्ती बोर्ड की मेडिकल रिपोर्ट को चुनौती दी गई हो।
सेना में अग्निवीर भर्ती के अभ्यर्थी शिवांश सिंह की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह आदेश न्यायमूर्ति बीके बिरला और न्यायमूर्ति वाई के श्रीवास्तव की खंडपीठ ने दिया है।
याची ने अग्निवीर भर्ती के लिए आवेदन किया था। लिखित और शारीरिक परीक्षा में सफल होने के बाद मेडिकल परीक्षण में उसे हाथ की एक उंगली में संक्रामक बीमारी होने के आधार पर सेना के मेडिकल बोर्ड ने अयोग्य घोषित कर दिया। सेना अस्पताल द्वारा दी गई रिपोर्ट में भी उसे अयोग्य बताया गया। इसके बाद यह याची ने मोतीलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज प्रयागराज के चर्म रोग विभाग से रिपोर्ट प्राप्त की। जिसमें उसकी बीमारी को असंक्रामक और ठीक होने योग्य बताया गया। इस आधार पर उसने इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की। एकल न्याय पीठ ने सेना द्वारा गठित मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया। इसके खिलाफ याची ने विशेष अपील दाखिल की।
खंडपीठ ने कहा कि मेडिकल एक्सपर्ट की राय के मामले में अदालत के हस्तक्षेप का अवसर बेहद सीमित है। विशेषज्ञों की राय पर न्यायिक आदेश पारित करते समय अदालत को बेहद सचेत रहने की आवश्यकता है। कोर्ट ने कहा कि याची ने मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट को मनमाना या प्रक्रिया के विरुद्ध नहीं बताया है। याची द्वारा बाद में प्राप्त की गई मेडिकल रिपोर्ट मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट पर प्रभावी नहीं हो सकती है। कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी।