प्रयागराज । इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि एक जनवरी 1977 से पहले हुए गोदनामे के लिए रजिस्ट्रेशन की जरूरत नहीं है। क्योंकि इसी तिथि से गोदनामा पंजीकृत करने का नियम लागू किया गया है।
कोर्ट ने कहा चकबंदी कार्यवाही को इस आधार पर खारिज नहीं किया जा सकता कि गोदनामे का रजिस्ट्रेशन नहीं हुआ है। कोर्ट ने चकबंदी अधिकारियों के याची के विरूद्ध पारित आदेश रद्द कर दिया हैं। यह आदेश न्यायमूर्ति चंद्र कुमार राय ने जगदीश की याचिका को स्वीकार करते हुए दिया है। याचिका पिछले 40 वर्ष से लम्बित थी।
याची जगदीश को उसके मामा ने गोद लिया था। ऐसे में याची के मामा (पिता) की मृत्यु के पश्चात याची और उसकी मौसियों ने उत्तर प्रदेश चकबंदी अधिनियम 1953 की धारा 12 के अंतर्गत उत्तराधिकार का आवेदन दायर किया। याची ने 25 अक्टूबर 1974 को किए गए गोदनामे के आधार पर स्वयं को मृतक का दत्तक पुत्र बताया और कहा कि वह अपने पिता की संपत्ति का हकदार है। मौसियों का पिता की सम्पत्ति में कोई हक नहीं। चकबंदी अधिकारी ने याची के पक्ष में आदेश पारित किया था।
मौसियों ने इसके विरुद्ध अपील की, जिसे स्वीकार कर लिया गया। याची ने अपील के खिलाफ पुनरीक्षण याचिका दायर की, जिसे खारिज कर दिया गया। जिसे याची ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर चुनौती दी गई थी।
याची के अधिवक्ता ने दलील दी कि एक जनवरी 1977 से पहले किया गया गोदनामा को रजिस्ट्रेशन की आवश्यकता नहीं थी। जब गोदनामा (दत्तक ग्रहण) हुआ तो उसके पिता की पत्नी मां ने कोई विरोध नहीं किया गया। आरोपित आदेश रिकॉर्ड पर मौजूद साक्ष्यों पर विचार किए बिना पारित किया गया।
वहीं प्रतिवादी पक्ष ने दलील दी कि गोद लेने की परिस्थितियां संदिग्ध थीं और उचित प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया। गोद लेने के समय मृतक की पत्नी जीवित थी। इसके बाद भी सहमति नहीं ली गई। ऐसे में याची का सम्पत्ति पर कोई अधिकार नहीं है।
न्यायालय ने पक्षों को सुनने के बाद कहा कि चकबंदी अधिकारी ने सभी साक्ष्यों को ध्यान में रखते हुए अपने आदेश पारित किए। उन्हें गोद लेने के कागजात के पंजीकरण की कोई आवश्यकता नहीं लगी। न्यायालय ने माना कि एक जनवरी 1977 से पहले के गोदनामा का पंजीकरण कराना आवश्यक नहीं है। न्यायालय ने कहा कि याची को मृतक की सम्पूर्ण चल और अचल सम्पत्ति का अधिकार है।