Birthday Special: थका थका सा बदन, आह! रूह बोझिल बोझिल, कहाँ पे हाथ से, कुछ छूट गया याद नहीं….

आज मीना कुमारी की जिंदगी पर मधुप शर्मा की लिखी किताब ‘आखिरी अढ़ाई’ दिन याद आ गई. दर्द का दरिया थी मीना कुमारी जो बहता ही चला गया. खून का एक- एक कतरा दर्द से भरा हुआ. प्यार भरा एक शब्द सुनने के लिए तरसता हुआ. इस दुनिया से रुख़सत हो गया.

टुकड़े-टुकड़े दिन बीता, 
धज्जी-धज्जी रात मिली. 
जिसका जितना आंचल था, 
उतनी ही सौग़ात मिली.. 
जब चाहा दिल को समझें, 
हंसने की आवाज़ सुनी. 
जैसे कोई कहता हो, लो 
फिर तुमको अब मात मिली.. 
बातें कैसी ? घातें क्या ? 
चलते रहना आठ पहर. 
दिल-सा साथी जब पाया, 
बेचैनी भी साथ मिली..

फाइल फोटो
31 मार्च 2018 को 46 साल हो गए मीना कुमारी, ट्रेजिडी क्वीन को दुनिया से अलविदा कहे हुए. लेकिन आज भी याद आती हैं. नाम के लिए तो आज जन्मदिन है उनका. लेकिन वो जिंदगी भर अपने जन्म को कोसती रहीं. जब जन्म लिया तो पिता अनाथलाय छोड़ आए. बेटा चाहते थे, हो गई बेटी. जब देखा मीना का रो-रोकर बुरा हाल है, तब जाकर घर लाए. गजब की खूबसूरत थी मीना कुमारी लेकिन किस्मत भी इतनी ही खूबसूरत होती तो बात ही क्या थी. खाने तक को लाले थे, सो चार साल की उम्र में काम करना शुरु कर दिया.

राह देखा करेगा सदियों तक, 
छोड़ जाएंगे यह जहां तन्हा

मीना कुमारी को सफेद रंग बेहद पसंद था. जिंदगी भी तो बेरंग थी. असली नाम माहजबीं बानो था. मीना कुमारी रील लाइफ में ‘ट्रेजडी क्वीन’ के नाम से मशहूर हुयी लेकिन रियल लाइफ में वह छह नामों से जानी जाती थीं. मीना कुमारी का जब जन्म हुआ तो पिता अलीबख्श और मां इकबाल बानो ने उनका नाम रखा ‘माहजबीं’. बचपन के दिनों में मीना कुमारी की आंखें बहुत छोटी थी इसलिये परिवार वाले उन्हें ‘चीनी’ कहकर पुकारा करते थे. ऐसा इसलिये कि चीनी लोगों की आंखे छोटी हुआ करती है. हिंदी सिनेमा में आईं तो पीछे मुड़कर नहीं देखा. मीना कुमारी की जीवनी लिखने वाले मशहूर पत्रकार विनोद मेहता एक जगह लिखते हैं, ‘बहुत से लोगों ने मीना कुमारी का शोषण किया और उनके दिल पर न मिटने वाले जख्मों के निशां हमेशा के लिए छोड़ गए.’

फाइल फोटो

प्यार सोचा था, प्यार ढूंढ़ा था 
ठंडी-ठंडी-सी हसरतें ढूंढ़ी 
सोंधी-सोंधी-सी, रूह की मिट्टी 
तपते, नोकीले, नंगे रस्तों पर 
नंगे पैरों ने दौड़कर, थमकर, 
धूप में सेंकीं छांव की चोटें 
छांव में देखे धूप के छाले

अपने अन्दर महक रहा था प्यार– 
ख़ुद से बाहर तलाश करते थे

मीना कुमारी को अपने से 15 साल बड़े और पहले से शादी-शुदा डायरेक्टर कमाल अमरोही से फिल्म की शूटिंग के दौरान प्यार हो गया. जिसके बाद सन् 1952 में दोनों ने शादी कर ली. अमरोही रुढ़िवादी थे. उन्हें मीना का उठना-बैठना. किसी से बात करना बिल्कुल पसंद नहीं आता. मीना कुमारी को इस बात दुख रहा कि वो अमरोही के बच्चे की मां नहीं बन सकी. किताबों में तो ये भी पढ़ने को मिला कि मीना का दो बार गर्भपात भी हुआ. अमरोही नहीं चाहते थे कि मीना मां बने. 10 साल के बाद धीरे धीरे मीना कुमारी और कमाल के बीच दूरियां बढ़ने लगीं और फिर 1964 में मीना कुमारी अपने पति से अलग हो गईं. इसकी वजह थी धर्मेंद्र. धर्मेंद्र उस वक्त एक स्ट्रगलिंग एक्टर थे. मीना ने उनका करियर बढ़ाने के लिए बहुत कुछ किया. दोनों का रिश्ता तीन साल तक चला लेकिन जब मतलब निकल गया तो धर्मेंद्र ने मीना को छोड़ दिया. दिल को एक और चोट लगी.

फाइल फोटो

थका थका सा बदन, आह! रूह बोझिल बोझिल, कहाँ पे हाथ से, कुछ छूट गया याद नहीं….

धर्मेंद्र की बेवफाई को मीना झेल ना सकीं और हद से ज्यादा शराब पीने की वजह से उन्हें लीवर सिरोसिस की बीमारी हो गई. कहते हैं कि दादा मुनि अशोक कुमार जिनके साथ मीना कुमारी ने बहुत सी फिल्में की थीं, से मीना कुमारी की यह हालत देखी नहीं गई और वो होमियोपैथी की गोलियां लेकर मीना कुमारी के पास गए तब मीना ने यह कहकर दवा लेने से इंकार कर दिया “दवा खाकर भी मैं जीउंगी नहीं, यह जानती हूं मैं. इसलिए कुछ तम्बाकू खा लेने दो. शराब की कुछ घूंट गले के नीचे उतर जाने दो.”

..जरा-सी कशिश महसूस करते ही मैं अपने आप पर काबू खो बैठती हूँ और बेतहाशा खिंचती चली जाती उसकी तरफ…इतनी करीब कि गैरियत और अलहदगी का अहसास ही मिट जाता…. पर जिंदगी में नजदीकियाँ होती हैं तो दूरियाँ भी बहुत दूर नहीं होतीं….मैंने जब भी किसी को अपने से अलहदा करके उसके वजूद में खुद को तलाशने की कोशिश की तो नाउम्मीदी ही हाथ लगी….सारे के सारे भरम खुलते चले गये….मेरी तो कोई जगह थी ही नहीं उसके आसपास…

फाइल फोटो

अस्पताल में भर्ती मीना कमारी के पास इतने भी पैसे नहीं थे कि बिल चुका सके. बस सांस चल रही थी, जैसे तैसे. पता नहीं किसके नाम के लिए अटकी हुई थी अभी तक. फिर एक दिन उम्मीद का सूरज डूब गया. हमेशा के लिए. पाकीजा 4 फरवरी 1972 को रिलीज हुई और 31 अगस्त 1972 को मीना चल बसी.

पर कुछ मुर्दे ऐसे भी होते हैं जिन्हें क़ब्र क़ुबूल नहीं करती और ज़िंदगी उनकी मौत पर अपने को लुटा बैठती है

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