करीबियों पर जारी है माया का कहर….

योगेश श्रीवास्तव 
लखनऊ। विधानसभा चुनाव में शर्मनाक प्रदर्शन और तीसरी पायदान पर पहुंंंचने के बाद भी मायावती का रवैया जस का तस है। पार्टी से लोगों को जोडऩे के बजाए वे पार्टी के पुराने लोगों को एक-एक करके बाहर का रास्ता दिखा रही है। पिछले दिनों अपने राष्टï्रीय उपाध्यक्ष व नेशनल कोआर्डीनेटर जयप्रकाश और पूर्व राज्यमंत्री रामहेत भारती को राहुल गांधी पर आपत्तिजनक टिप्पणी करने पर पद से हटाने के साथ उन्हे पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया। मायावती का अपनों पर की गई कार्रवाई कोई नई नहीं है। इससे पूर्व उन्होंने अपने सबसे करीबी नसीमुद्दीन सिद्दीकी को बाहर का रास्ता दिखा दिया। नसीमुद्दीन सिद्दीकी के निष्कासन पर सबकों हैरत हुई है। निष्कासन होने के बाद दोनों ओर से आरोप-प्रत्यारोप का दौर काफी दिनों तक चला।
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बसपा से निक ले या निकाले गए लोगों द्वारा एक दूसरे को प्याज की तरह छीलने का सिलसिला जारी है। बसपा की प्रमुख मायावती  कांशीराम के बाद जब से मायावती ने बहुजन समाज पार्टी की कमान संभाली तब से पार्टी भले कभी नंबर एक या दो की पोजीशन में रही हो लेकिन पार्टी के पुराने नेता जो उसकी स्थापनाकाल से साथ थे उनके जो दुर्दिन शुरू हुए वो आज भी जारी है। पार्टी के  कांशीराम के वफ ादारों को जहां अनुशासनहीनता के आरोप में एक-एक करके बाहर का रास्ता दिखा दिया गया तो कुछ ने पार्टी की मुखिया मायावती की तानाशाही से आजिज कर स्वयं पार्टी से किनारा कर लिया। भाजपा सरकार में कैबिनेट मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य और बृजेश पाठक ने विधानसभा चुनाव से पहले ही निष्कासन की आशंका से बसपा से किनारा कर लिया था और भाजपा में शामिल हो गए थे। यही दो नेता ऐसे थे जिन्होंने बसपा छोड़ी वर्ना एक-एक करके सबकों निकाला ही गया। बसपा से निकले और निकाले गए लोगों की फेहरिस्त काफ ी लंबी है।
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पार्टी से जिन लोगों को बाहर का रास्ता दिखाया गया उनमें केन्द्र में विदेश मंत्री रहे नटवर सिंह,आरिफ मोहम्मद  खान,अखिलेश दास(दिवंगत)अरविंद नेताम सरीखे पुराने कांग्रेसी नेता शामिल है। प्रदेश स्तरीय जिन नेताओं को बाहर का रास्ता दिखाया गया उनकी फेहरिस्त तो और भी लंबी है। निकले और निकाले गए लोगों में कुछ की घर वापसी भी हुई। और कुछ वापस आए और फि र चलते बने। निकले और निकाले गए लोगों ने बसपा के समकक्ष पार्टियां भी बनाई लेकिन उनमें से किसी तो ऐसी कामयाबी नहीं मिली कि वह बसपा का विकल्प बन सकता। शायद यही गुमान पाले मायावती एक-एक करके पार्टी के कद्दावर नेताओं को बाहर करती चल रही है।  बसपा के गठन को 33 साल हो गए। इस दौरान उसने यूपी में चार बार सत्ता का स्वाद चखा और आज स्थिति यह है कि 2014 के लोकसभा चुनाव में उसका खाता नहीं खुला और 2017 के विधानसभा चुनाव में वह तीसरी पायदान पर पहुंच गई है। पार्टी में अनुशासन बनाए रखने के नाम पर जो लोगों को बाहर का रास्ता दिखाने की प्रक्रिया चल रही है। उसके साइड एफेक्ट क्या होंगे इससे बसपा नेतृत्व बेपरवाह है।
मायावती ने मुख्यमंत्री रहते हुए जहां कई कीर्तिमान स्थापित किए वहीं उन्होंने पार्टी से लोगों को बाहर करने का भी रिकार्ड बनाया है। आने वाले दिनों में पार्टी में कौन बचेगा कौन रहेगा इसकों लेकर बहस चल पड़ी है। सोने लाल पटेल (दिवंगत) और राजबहादुर जो कभी बसपा के संस्थापक कांशीराम के करीबियों में शामिल थे। पार्टी में मायावती का  वर्चस्व बढऩे के साथ इन लोगों की उपेक्षा शुरू हुई और आखिकार दोनों पार्टी से अलग हुए। सोनेलाल पटेल (दिवंगत) ने अपना दल बनाया तो राजबहादुर ने बसपा(रा) का गठन किया। सोने लाल पटेल के निधन के बाद उनकी पत्नी कृष्णा पटेल ने पार्टी की बागडोर संभाली तो राजबहादुर कांग्रेस में शामिल  हो गए। कांशीराम के ही करीबी रहे आरके चौधरी और बरखू राम वर्मा (दिवंगत) दोनेां को एक साथ पार्टी से निकाला गया। 2017 के विधानसभा चुनाव से पहले आरके चौधरी पुन:बसपा में लौटे लेकिन  मोहनलालगंज से रामबहादुर को उम्मीदवार बनाने के साथ ही उन्हे दुबारा निकाल दिया गया। मायवती के पिछले मुख्यमंत्रित्वकाल में
नंबर दो की पोजीशन पर रहे बाबू सिंह कुशवाहा के  एनआरएचएम घोटालें में जेल जाने के बाद पार्टी ने उनसे किनारा किया। इसी तरह सपा.बसपा गठबंधन सरकार में बसपा कोटे से शिक्षा मंत्री रहे मसूद अहमद को न सिर्फ मंत्री पद से हटवाया गया बल्कि रातोरात उनका सरकारी मकान भी खाली करा दिया गया। बसपा से बाहर होने के बाद मसूद अहमद नेशनल लोकतांत्रिक पार्टी का गठन किया। दल नहीं चला पाए तो पहले सपा फि र कांग्रेस में फि र रालोद में गए। इस समय रालोद में ही है। इसी तरह मायावती सरकार में राज्यमंत्री रहे भगवती प्रसाद सागर भी जब बसपा से बाहर हुए इस समय भाजपा के  विधायक है। मायावती ने इसके अलावा जिन लोगों को बाहर का रास्ता दिखाया गया उनमें पूर्व प्रदेशाध्यक्ष जंगबहादुर पटेल(दिवंगत) के अलावा बलिहारी बाबू, ईसम सिंह, रामरती बिन्द, सरदेश अंबेडकर, आरके पटेल मायावती (माया प्रसाद) शामिल है

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