बढ़ रहा स्कूल के बच्चो पर दबाव, बस आपकी चाहिए मदद…

नयी दिल्ली : स्कूलों में साइकॉलजिस्ट की मांग अचानक से तेज होने लगी है। केंद्रीय विद्यालायों में तो साइकॉलजिस्ट्स को फुल टाइम जॉब में हायर किया जा रहा है। बच्चों में अचानक से बढ़े हिंसात्मक रवैये, तनाव और दबाव को देखते हुए स्कूलों में साइकॉलजिकल सपोर्ट के लिए मनोवैज्ञान‍िकों और मनोच‍िक‍ित्‍सकों की जरूरत बढ़ती जा रही है। ऐसे में स्कूलों में साइकॉलजिस्ट के रूप में नया करियर ग्राउंड भी तैयार हो रहा है।

वैसे स्‍कूलों में केवल स्टूडेंट्स को ही नहीं, बल्‍क‍ि टीचर्स को भी साइकॉलजिकल टेक्निक से पढ़ाने और बच्चों को समझने की जरूरत होती है। ऐसे में अगर स्कूल में साइकॉलजिस्ट मौजूद होंगे तो इससे न केवल स्कूल में बेहतर माहौल कायम होगा बल्कि बच्चों के साथ टीचर्स को भी मदद मिलेगी।

साइकॉलजिस्ट की जरूरत अब हर फील्ड में पड़ने लगी है। और स्कूल में करियर का ये नया क्षेत्र तैयार हो गया है। आपकी रुचि बच्चों के मनोभाव को जानने और उनके डिप्रेशन को दूर करने की दिशा में है तो आप स्कूल साइकॉलजिस्ट का करियर चुन सकते हैं। साइकॉलजिकल काउंसलिंग करके बच्चों के भविष्य अच्छा बनाया जा सकता है।

क्‍यों होती है स्कूल साइकॉलजिस्ट की जिम्मेदारी : 

  1. स्कूल मनोवैज्ञानिक बच्चों के विकास की विशेषताओं को समझने में शिक्षक की सहायता करता है।
  2. प्रत्येक छात्र विकास की कुछ निश्चित अवस्थाओं से गुजरता है जैसे शैशवास्था, बाल्यावस्था, किशोरावस्था और प्रौढ़ावस्था। विकास की दृष्टि से इन अवस्थाओं की विशिष्ट विशेषताएं होती हैं। यदि शिक्षक इन विभिन्न अवस्थाओं की विशेषताओं से परिचित होता है तो वह अपने छात्रों को भली प्रकार समझ सकता है और छात्रों को उसी प्रकार निर्देशन देकर उनको लक्ष्य प्राप्ति में सहायता कर सकता है। इस बारे में पूर्ण जानकारी भी स्कूल साइकॉलजिस्ट ही टीचर को देता है।
  3. बच्चों के नेचर को जानने की कोशिश करता है।
  4. शिक्षा की प्रकृति एवं उद्देश्यों को समझने में सहायता प्रदान करता है।
  5. बच्चों की वृद्धि और विकास के बारे में शिक्षकों को ज्ञान देता है। बच्चों के अच्छे समायोजन में मदद करता है और कुसमायोजन से बचाता है।
  6. स्कूल मनोवैज्ञानिक कुछ खास बच्चों की समस्याओं एवं आवश्यकताओं की जानकारी शिक्षक को देता है, जिससे शिक्षक उन बच्चों को अपनी क्लास में पहचान सकें और उनकी आवश्यकतानुसार मदद कर सकें। उनके लिए विशेष कक्षाओं का आयोजन कर सकें और फिर उन्हें परामर्श दे सकें।
  7. मानसिक रूप से स्वस्थ बच्चों के लक्षणों को पहचानना और ऐसा प्रयास करना कि उनकी इस स्वस्थता को बनाए रखा जा सके, यह कार्य भी स्कूल साइकॉलजिस्ट का ही होता है।

कैसे बनाएं इस लाइन में करियर 
एजुकेशनल क्‍वालिफिकेशन की बात करें तो साइकॉलजी में आपका ग्रेजुएट होना जरूरी है। इसके अलावा अगर आपका स्पेशलाइजेशन चाइल्ड साइकॉलजी में हो तो ये आपके लिए एडिशनल पॉइंट होगा। पोस्ट ग्रेजुएशन करने के बाद पीएचडी या एमफिल किया जा सकता है। ये सब आपके रिज्‍यूमे को बेहतर ही बनांएगे और आपको आपके काम में दक्ष भी।

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