अभी भी व्यापारियों के गले नहीं उतर रहा जीएसटी, सुलगने लगी विरोध की चिंगारी

महोली-सीतापुर। केंद्र की मोदी सरकार जहां 1 वर्ष में वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) की सफलता का ढिंढोरा पीट रही है वही वास्तविक हकीकत कुछ और ही बयां कर रही है। प्रतिमाह 20 ता. को जमा किए जाने वाले रिटर्न की लेट फीस के नाम पर लाखों रुपए की कमाई वस्तु एवं सेवाकर विभाग के द्वारा की जा रही है।
मोदी सरकार के द्वारा जोरों-शोरों से पारित कराया गया जीएसटी, गुड्स एंड सर्विस टैक्स, एक देश एक टैक्स की तर्ज पर आरोपित किया गया था। देश में वेट प्रणाली के अंतर्गत माह की 20 तारीख तक तिमाही नक्शे का दाखिला किया जाता था। जिसमें निल के नक्शे के दाखिले पर कोई भी लेट फीस या अन्य शुल्क टैक्स को छोड़कर अदा नहीं करना पड़ता था परंतु अब देश में एक टैक्स के स्थान पर सरकार द्वारा प्रतिमाह 10 तारीख तक जमा होने वाले जीएसटी वन तथा 20 तारीख को जमा होने वाला जीएसटी 3 बी तरह के दो टैक्स लगाए जा रहे हैं।

रिर्टन में विलंब फीस की मनमानी से व्यापारी परेशान

रजिस्टर्ड व्यापारी द्वारा प्रतिमाह नक्शा देने का प्रावधान कर दिया गया है। जिसमें एक भी दिन लेट होने पर 50 से लेकर 20 रूप्या तक का जुर्माना प्रतिदिन के हिसाब से लगाया जाता है और इस पर कोई भी सुनवाई नहीं की जा रही है।

सरकार की जीएसटी के माध्यम से सरलीकरण के बजाय व्यापारियों को दोहरी मार पड़ रही है। सूत्रों की माने तो जीएसटी की साइड 10 से 20 तारीख तक अक्सर बद हो जाया करती है। जिसकी शिकायत के लिए स्थापित कस्टमर केयर, उसमें बैठे लोगों से बात की जाती है तो जिम्मेदार लोग संतुष्टि पूर्वक बात नहीं करते और पूर्ण जानकारी के लिए जीएसटी काउंसिल दिल्ली से संपर्क कर समाधान कराने की बात बताते हैं।

ऐसे में किसी भी व्यक्ति व्यापारी के पास पूंजी है या नहीं विभाग के जिम्मेदारों से इसका कोई भी मतलब नहीं है। जीएसटी में विभाग की ऐसी कार्य शैली से व्यापारियों को खूब चूना लग रहा है। जिससे उनमें जीएसटी व सरकार के प्रति हताशा व निराशा पैदा होती जा रही है। इस मामले में व्यापार कर अधिकारी हरिलाल प्रजापति से बात की गई तो उन्होंने बताया यह मामला सॉफ्टवेयर से कनेक्टेड है बिना पूरा पैसा जमा हुए हमारे पास नहीं आता जो हम इसमें कोई फेरबदल कर सकें।

जीएसटी की पुख्ता जानकारी से विभागीय अधिकारी भी अनभिज्ञ
गुड एंड सर्विस टैक्स (जीएसटी) में जमा की जाने वाली पेनाल्टी की पुख्ता जानकारी विभाग के जिम्मेदार अधिकारियों को भी नहीं है। नक्शा जमा करने वाले व्यक्ति के द्वारा जमा की गई पेनाल्टी में यदि एक भी रूपया कम रह जाता है तो रिटर्न जमा नहीं होता है सिस्टम ही नहीं उठाता है।

पैसा जमा करने के बाद भी वह डिफाल्टर साबित हो रहा है एक तरफ सरकार इंस्पेक्टर राज को कम करने की बात कहती है और दूसरी तरफ हर विभाग में उनकी तैनाती बढाकर व्यापारियों तथा आम जनता को राहत के बजाय परेशानी में डाल रही है।

देखना यह है ऐसे में इस फ्लॉप या सफल जीएसटी टैक्स के नक्शे का दायरा सरकार तिमाही, छमाही, या सालाना कर पाएगी अथवा ऐसे ही व्यापारी बैंक और विभाग के चक्कर लगाकर पिसते रहेंगे। ऐसे में मोदी सरकार संज्ञान लेकर चुनावी वर्ष में व्यापारियों के लिए साल भर में एक या दों बार नक्शे का दाखिला करा कर व्यापारियों को कितनी राहत दे पायेगी यह एक यक्ष-प्रश्न बना हुआ है?

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