उ.प्र. बना लोकसभा चुनाव का रण केन्द्र, चलने लगे गठबंधन, सीबीआई, आईटी, ईडी के ब्रह्मास्त्र

नई दिल्ली । लोकसभा के चुनाव में दिल्ली की सत्ता का रास्ता उत्तर प्रदेश ही आसान बनाता है । वर्तमान परिस्थितियों और केन्द्रीय एजेंसियों की कारवाइयों से लगता है कि 2019 के लोकसभा चुनाव के लिए बड़ा रण केन्द्र उ.प्र. बन गया है। 2004 और 2009 लोकसभा चुनाव में उ.प्र. की बदौलत ही कांग्रेसनीत संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) के लिए दिल्ली की सत्ता की राह आसान हुई थी।

2014 के लोकसभा चुनाव में उ.प्र. ने ही भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को लोकसभा की 71 सीटें देकर दिल्ली पर राज करने लायक बनाया था । अब 2019 के लोकसभा चुनाव में उ.प्र की जनता क्या करती है, इस पर सबकी निगाह लगी हुई है। जहां तक राजनीतिक जोड़-तोड़, गणित का सवाल है तो 2014 के लोकसभा चुनाव में उ.प्र. में कांग्रेस , समाजवादी पार्टी (सपा), बहुजन समाज पार्टी (बसपा) अलग-अलग लड़े थे। भाजपा अपना दल के साथ गठबंधन करके चुनाव लड़ी थी। भाजपा को राज्य की 80 लोकसभा सीटों में से 71 सीटें और 42.6 प्रतिशत वोट मिले थे। बसपा 19.8 प्रतिशत और सपा को 22.3 प्रतिशत वोट मिले थे। इन दोनों (सपा व बसपा) को अलग-अलग जो वोट मिले थे उसे जोड़ने पर 42.1 प्रतिशत होता है।

इस बारे में उ.प्र. के पूर्व मंत्री सुरेन्द्र का कहना है कि यदि सपा और बसपा 2014 में लोकसभा चुनाव मिलकर लड़े होते तो इन दोनों के मतदाताओं के एकजुट होने व इससे माहौल बनने से इनके संयुक्त वोट 02 प्रतिशत के लगभग बढ़कर 44.1 प्रतिशत के लगभग हो गये होते। यह हुआ होता तो यह गठबंधन 2014 में ही भाजपा को उ.प्र. में 34 सीटों पर समेट दिया होता। सपा-बसपा गठबंधन को लगभग 36 सीटें मिल गयी होती । 2019 के लोकसभा चुनाव में दोनों यदि गठबंधन करके चुनाव लड़ें, तब राज्य की 80 लोकसभा सीटों में से लगभग 40 सीटें जीत सकते हैं। बसपा नेता ईश्वर मावी का कहना है कि बसपा ने 2014 के लोकसभा चुनाव में उ.प्र. में 45 सीटों पर जीत की मार्जिन से अधिक वोट पाई है। वरिष्ठ पत्रकार वशिष्ठ नारायण का कहना है कि यदि इसका गठबंधन 2019 में सपा से हो जाता है, तो उन लोकसभा सीटों पर जहां सपा दूसरे स्थान पर थी ,

वे सीटें वह आसानी से निकाल सकती हैं | और जिन सीटों पर बसपा दूसरे स्थान पर थी वे सीटें बसपा आसानी से निकाल लेगी। वरिष्ठ पत्रकार नवेन्दु का कहना है कि सपा प्रमुख अखिलेश यादव और बसपा प्रमुख मायावती ने आपसी राग-द्वेष भुलाकर 2019 का लोकसभा चुनाव मिलकर लड़ने के लिए जो पहल की है , यदि वह परवान चढ़ गई और ये दोनों थोड़ा झुककर कांग्रेस और रालोद से भी गठबंधन कर लें , तब तो जो माहौल बनेगा उसमें यह गठबंधन उ.प्र. में लोकसभा की 80 में से 70 से अधिक सीटें जीत सकता है। यही वजह है कि सभी लोग उ.प्र. में अगले दो माह में बनने – बिगड़ने वाले राजनीतिक समीकरण की तरफ देख रहे हैं । इस संभावना से डरी भाजपानीत केन्द्र सरकार ने अपना ब्रह्मास्त्र सीबीआई, ईडी,आयकर चलाना शुरू कर दिया है।

अध्ययन अवकाश पर गईं उ.प्र. की चर्चित आईएएस अफसर चन्द्रकला सहित 11 लोगों के यहां अवैध खनन मामले में शनिवार 5 जनवरी 2019 को सीबीआई ने 14 जगहों पर जो छापा मारा है वह इसका प्रमाण है। चन्द्रकला को यदि सीबीआई गिरफ्तार करती है, तो उनसे पूछताछ को आधार बनाकर तबके मुख्यमंत्री व खनन मंत्री अखिलेश यादव को भी पूछताछ के लिए नोटिस दिया जा सकता है | बसपा प्रमुख व पूर्व मुख्यमंत्री मायावती व उनके भाई से भी पूछताछ कर सकती है। नवेन्द् का कहना है, “अब देखना है कि इस डर से अखिलेश व मायावती गठबंधन क्या नहीं करते हैं? सपा व बसपा अकेले – अकेले लड़ते हैं |

या अपने अस्तित्व की अंतिम लड़ाई मानकर लड़ते हैं | अखिलेश व मुलायम दोनों को ही पता है कि इस बार यदि गठबंधन नहीं हुआ तो कांग्रेस से अधिक सपा व बसपा को नुकसान होगा, रालोद को भी नुकसान होगा । इस तरह चारो को ही बहुत अधिक नुकसान होगा। यदि चारो का गठबंधन हो गया तब तो भाजपा के चुनावी रथ के धुर्रे बिखर जायेंगे और उसको अकेले उ.प्र. में ही 60 से अधिक सीटों का नुकसान पहुंचाते हुए सपा-बसपा-कांग्रेस-रालोद व अन्य दलों के महागठबंधन का संयुक्त विजय रथ दिल्ली की सत्ता की राह ले सकता है |

 

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